पोस्टर है नेताजी के जन्मदिन का। लिखा हुआ है-फलां नेताजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं। पोस्टर में सिर्फ जन्मदिन की तारीख लिखी हुई है। नेताजी कितने साल के हुए, यह नहीं बताया गया है। अभिनेत्रियों की उम्र के मामले में तो आम तौर पर साफगोई नहीं बरती जाती थी। पर अब ये नेताओं के मामले में भी होने लगा है। कल को सवाल ना उठे कि 78 साल के नेताजी कैसे चीफ मिनिस्टर बन सकते हैं, जब नब्बे साल के नेता जीवित मौजूद हैं। इस टाइप के सवाल उठ सकते हैं। उम्र को लेकर कई लेकर सवाल हैं, कई बवाल हैं।
कवियों में ऐसे ऐसे कवि हैं, जो पिछले तीस सालों से युवा माने जा रहे हैं। सत्तर की उम्र में बाल रंगा के कवि युवा हुए जा रहे हैं। और सच्ची के युवा परेशान हो रहे हैं कि युवा कवियित्रियां सत्तर के साल के युवाओं से ही काव्य का मार्गदर्शन क्यों लेती हैं। व्यंग्यकारों में भी ऐसा चलन हो लिया है। करीब सत्तर वर्ष के व्यंग्यकार सन 1970 से खुद को युवा व्यंग्यकार माने जा रहे हैं।
नेताओं में साठ सत्तर साल तो युवा ही माने जाते हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेट्री के तौर पर जब प्रकाश करात ने कमान संभाली थी, तब उन्हे युवा कम्युनिस्ट नेता कहा गया था, हालांकि उनकी उम्र उस समय करीब पचपन साल थी। कम्युनिस्ट पार्टी में नये नेताओं का नंबर बहुत देर से आता है, क्योंकि नब्बे, अस्सी साल के कई नेता मौजूद होते हैं। तमाम तरह के कुटैवों से दूर कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बहुत लंबे समय तक चलते हैं, इसलिए वहां पचपन साल का बंदा युवा माना जाता है।
फिल्म अभिनेत्री रेखाजी भी करीब पचपन के पास ऐसे लगती हैं, जैसे पैंतीस वगैरह के आसपास हो। रेखाजी फैमिली, बच्चों के टेंशन से दूर हैं। बंदा इन बवालों से दूर रहे, तो बहुत लंबे समय तक यंग बना रह सकता है। परिवार की चिंताएं कैसे परेशान करती हैं, यह पता लगता है रघुवीर यादवजी को देखकर करीब साठ सत्तर के लगते हैं, अलबत्ता वो हैं नहीं इतने के।
मसला उम्र का नहीं है, प्रतिबद्धता का है, बेसिक कैरेक्टर का है। शक्ति कपूर साठ के आसपास हैं, पर उतने ही छिछोरे लगते हैं, जैसा अपनी युवावस्था में लगते थे। हाल में आयी पिक्चर डर्टी पिक्चर में नसीरुद्दीन शाह पर्याप्त छिछोरे लगे हैं, यद्यपि वह साठ के आसपास हैं। बंदा अगर तय कर ले कि छिछोरा दिखना है, तो उम्र आड़े नहीं आती। बिल क्लिंटन भी तब पचपन साठ के आसपास के थे, जब मोना लेवेंस्की प्रकरण में धऱे गये थे। छिछोरत्व का मामला ग्लोबल है, यह सिर्फ भारतीय विशेषता नहीं है। एक वरिष्ठ छिछोरे हिंदी फिल्मों में कादिर खान हुआ करते थे और यह छिछोरत्व उन्होने उम्र के आगे के पड़ावों पर हासिल किया था। पहले वो सिर्फ विलेन हुए करते थे।
उम्र आड़े नहीं आती, अगर बंदा प्रतिबद्ध हो, तो।
नारायण दत्त तिवारी की बात हम इस मौके पर नहीं करेंगे, क्योंकि तब चर्चा के भटकने के खतरे हैं। अस्सी के पार तिवारीजी की हिम्मत और हौसला देखकर नौजवान तक पानी पानी हो सकते हैं। उम्र के बढने के बाद भी बंदा प्रेरणा देना बंद नहीं करता है, यह साफ होता है कि नारायण दत्त तिवारीजी को देखकर। उम्र कोई बंधन नहीं है, बंदा तय तो करे कुछ।
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