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'पहली बार सदन में आए हैं, बोलने दीजिए न अध्यक्ष जी'

first time came in sadan please let the speak  president

19 जून 2012

लखनऊ । उत्तर प्रदेश में चल रहे मौजूदा विधानसत्र के दौरान सदन में पहली बार पहुंचे नए माननीयों को समझाने में ही विधानसभा अध्यक्ष काफी परेशान हो जाते हैं। कभी-कभार तो नौबत डांटने तक की आ जाती है, तब नए विधायकों के तेवर कुछ नरम पड़ते हैं। "अध्यक्ष जी..पहली बार चुनकर सदन में आया हूं। मुझे बोलने का मौका तो दीजिए।"- एक नवनिर्वाचित सदस्य विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय से बोलने देने का आग्रह करते हैं लेकिन बदले में विधायक जी को डांटते हुए अध्यक्ष जी कहते हैं, "अरे कैसे खड़े हो गए? किस नियम के तहत बोल रहे हैं? ऐसा थोड़े ही होता है। पहले नियमावली पढ़िए।"

विधानसभा में इस तरह के परिदृश्य अक्सर देखे जा सकते हैं। दिनभर में कई विधायक खड़े होकर अध्यक्ष से बोलने की अनुमति मांगते हैं लेकिन अध्यक्ष जी की फटकार के बाद वे चुपचाप बैठ भी जाते हैं।

उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा में इस बार 167 सदस्य पहली बार चुनकर आए हैं। उन्हें विधानसभा में चलने वाली कार्यवाही की नियमावली के बारे में कुछ पता नहीं है। लेकिन समस्या यह है कि उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याएं भी उठानी होती हैं। लिहाजा वे अपनी बात कहने का मौका तलाशते रहते हैं।

विधानसभा में पहली बार चुनकर आए नए सदस्यों में महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं हैं। वह भी बोलने का मौका पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाती हैं लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल पाता है।

कुछ दिन पहले ही भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक उपेंद्र तिवारी बोलने की अनुमति न मिलने पर सदन में ही धरने पर बैठ गए थे। उनकी शिकायत थी कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा है। बाद में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर हालांकि उन्होंने अपना धरना समाप्त कर दिया था।

उपेंद्र तिवारी की तरह ही सैकड़ों विधायक सदन में पहली बार चुनकर आए हैं। वह चाहते हैं कि प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री के सामने उन्हें भी बोलने का मौका मिले लेकिन अफसोस उनकी हसरत अधूरी ही रह जाती है।

सदन में पहली बार पहुंचने वाले माननीयों को नियमों का ध्यान नहीं रहता लेकिन जब उन्हें यह मालूम पड़ता है कि बात अब हद से बाहर जा रही है तो वे वरिष्ठों के इशारे पर शांत भी हो जाते हैं। और फिर नियम पता करने की दुहाई देने लगते हैं। इससे बात नहीं बनती है तो अध्यक्ष जी की डांट उन्हें शांत करा देती है।

विधानसभा में पहली बार सदन में आए एक माननीय ने विधानसभा अध्यक्ष की ओर मुखातिब होकर शिकायत भरे लहजे में कहा, "अब पहली बार चुनकर आए हैं, मौका दीजीएगा तभी तो सीखेंगे। अब बोलने ही नहीं दिया जाएगा तो क्या सीखेंगे।"

विधानसभा में बोलने की अनुमति के अलावा सत्र की सीधी कार्यवाही के प्रसारण की मांग भी नए विधायकों ने उठायी है। विधानसभा में बसपा के एक सदस्य ने अध्यक्ष से मांग की कि संसद की कार्यवाही की तरह ही विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण दिखाया जाना चाहिए ताकि राज्य के लोगों को भी पता चले की उनके प्रतिनिधि सदन में क्या कर रहे हैं।

विधायक के इस सवाल के जवाब में अध्यक्ष ने कहा कि यहां संसद की तरह बजट नहीं है कि अलग से चैनल खोलकर सीधी कार्यवाही दिखाई जा सके।

उल्लेखनीय है कि विधानसभा सत्र की शुरुआत से पहले ही मई के तीसरे सप्ताह में विधानसभा सचिवालय की ओर से नए माननीयों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें भाजपा की राष्ट्रीय नेता सुषमा स्वराज सहित कई दिग्गज नेताओं ने नए विधायकों को सदन की कार्यवाही बारीकियों के बारे में बताया था लेकिन नए विधायकों पर बोलने का सुरूर इस कदर छाया हुआ है कि वे हमेशा मौके की तलाश में ही रहते हैं।


 

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