Guest Corner RSS Feed
Subscribe Magazine on email:    

महात्वाकांक्षी है गूगल का ‘भाषा बचाओ’ कार्यक्रम

google endangered language program

इंटरनेट कंपनी गूगल की तमाम व्यवसायिक महात्वाकांक्षाओं के बीच लुप्त होती भाषाओं को बचाने का कार्यक्रम कंपनी की एक नयी छवि निर्मित करता है। गूगल ने दुनिया भर की हज़ारों मरती भाषाओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक बड़ी पहल की है इनडैंजर्डलैंग्वेजेस परियोजना के तहत। इसी कवायद के तहत 21 जून को इनडैंजर्डलैंग्वेजेसडॉटकॉम नाम की साइट शुरु की गई है। अस्तित्व के संकट से जूझती भाषाओं को बचाने के गूगल के अभिनव प्रोजेक्ट को 29 संस्थानों का समर्थन है। इस प्रोजेक्ट को आरंभ करने के बाद इसकी तमाम गतिविधियों पर गूगल नज़र रखेगा लेकिन जल्द ही पूरा प्रोजेक्ट फर्स्ट पीपुल्स कल्चरल काउंसिल, द इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज इनफोरमेशन एंड टेक्नोलॉजी और इस्टर्न मिशिगन यूनिवर्सिटी की देखरेख में संचालित होगा। इनडेंजर्डलैंग्वेजेसडॉटकॉम पर उन 3054 भाषाओं का संक्षिप्त उल्लेख है, जिन्हें बचाने की कवायद शुरु की गई है।

इन भाषाओं में भारत की ‘कोरो’ जैसी भाषाएं भी हैं, जो देश के उत्तर पूर्वी राज्यों के पहाड़ों में बोली जाती है और अब बमुश्किल एक हजार लोग ही इस भाषा को जानते हैं। ‘पोइटेविन’ भाषा को फ्रांस के मध्य भाग में रहने वाले चंद बड़े बुजुर्ग ही बोलते हैं। ‘शोर’ भाषा को बोलने वाले रूस में दस हजार से भी कम लोग बचे हैं, जबकि आस्ट्रेलिया की ‘पुतिजारा’ भाषा को बोलने वाले तो सिर्फ चार लोग ही शेष हैं। इस साइट के मुताबिक दुनिया की करीब आधी भाषाओं का अस्तित्व संकट में है और अभी बोले जाने वाली 7000 भाषाओं में 3500 मर रही हैं।

गूगल इंटरनेट की दुनिया का बादशाह कंपनी की है, जिसके पास सबसे बड़ा सर्च इंजन है तो यूट्यूब के रुप में सबसे बड़ी वीडियो शेयरिंग साइट भी। उसके पास एंड्रॉयड के रुप में सबसे लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम और सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली ई-मेल सेवा जीमेल भी। गूगल अपनी इन्हीं कई तकनीकी श्रेष्ठता के बूते दुनिया की लुप्त होती भाषाओं को बचाने की कवायद में है। गूगल का मानना है कि लुप्त होती भाषाओं को तकनीक की मदद से बचाया जा सकता है, लिहाजा वेबसाइट पर सुविधा दी गई है कि लोग मर रही भाषाओं-बोलियों के बारे में जानकारी पाने के अलावा उनसे जुड़ी पांडुलिपियां, ऑडियो-वीडियो फाइल आदि शेयर कर सकते हैं अथवा जमा कर सकते हैं। लोगों से अपील की गई है कि वे ऐसी भाषाओं से संबंधित कोई भी जानकारी यहां बाँटें। इस साइट के माध्यम से लुप्त होती भाषाओं का संरक्षण, प्रचार और सिखाने की कोशिश है। हालांकि, उन भाषाओं की पूरी सूची साइट पर है, जो खतरे में हैं, लेकिन इनमें से कई भाषाओं से जुड़ा कोई ऑडियो-वीडियो और यहां तक कि पाठ्य भी उपलब्ध नहीं है। गूगल ने उपयोक्ताओं से आग्रह किया है कि वे इन भाषाओं के नमूने उपलब्ध कराने में मदद करें। इस कार्यक्रम के तहत मृतप्राय भाषाओं को चार श्रेणियों में रखा है। जोखिम में, खतरे में, भयंकर खतरे में और पूरी तरह अंजान।

मृतप्राय भाषाओं को बचाने की परियोजना में अभी तक उन देशों में खासी दिलचस्पी नहीं होती थी, जिनके पास फंड की कमी है अथवा जिनके फंड का प्राथमिक उपयोग शिक्षा और संचार के दूसरे माध्यमों को विकसित करने में होना था। अब भाषा बचाओ कार्यक्रम का अगुआ गूगल के बनने से फंड की कमी नहीं होने की उम्मीद है। लेकिन, सवाल यही है कि क्या गूगल की इस महात्वाकांक्षी परियोजना को आम लोगों का सहयोग मिलेगा? गूगल की भाषा बचाओ परियोजना कंपनी के वैश्विक आर्ट प्रोजेक्ट अथवा ऑनलाइन लाइब्रेरी परियोजना सरीखी नहीं है, जहां सफलता की बड़ी जिम्मेदारी कंपनी की संचालन नीतियों और उससे जुड़ी कुछ संस्थाओं की है। इंनडैंजर्डलैंग्वेजेसडॉटकॉम की सफलता बिना आम लोगों के जुड़े संभव ही नहीं है। सवाल यह भी है कि जिन मृतप्राय भाषाओं को बचाने की कवायद हो रही है, उन भाषाओं को जानने वाले इस प्रोजेक्ट से कैसे और कब जुड़ते हैं। इनडैंजर्डलैंग्वेज प्रोजेक्ट के सामने बड़ी चुनौती इसलिए भी है कि जिन भाषाओं को बचाने की कोशिश है, वे रोजगार या व्यापार की भाषा नहीं है। आखिर कोरो के मरने से भले एक सांस्कृतिक विरासत खत्म हो जाए पर क्या बाजार को कोई फर्क पड़ेगा?

महत्वपूर्ण बात यह है कि तकनीकी रथ पर सवार होकर दुर्लभ भाषाओं को बचाने की कवायद में युवाओं की भूमिका उल्लेखनीय है। और इस प्रोजेक्ट से उन युवाओं की कोशिशों को बड़ा कैनवास मिल सकता है,जो निजी स्तर पर अपनी भाषा को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। मसलन चिली की दुर्लभ भाषा हुलीचे और अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली बोली अका में स्थानीय युवाओं ने हिप-हॉप शैली में कई गीत बना डाले। वे लोकप्रिय भी हुए लेकिन अब उन्हें पूरी दुनिया जान-समझ सकती है। इसी तरह कई देशों में युवाओं के बीच दुर्लभ भाषाओं में संदेश भेजने का अनूठा काम हो रहा है। 

निश्चिति तौर पर मानवता की सबसे बड़ी खोज संभवत: भाषा है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक-एक करके भाषाएं मरती रहीं और देश-दुनिया का समाज इतना बड़ा ‘हादसा’ होते देखता रहा। गूगल का यह महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सफल हुआ तो दुनिया की अद्भुत सांस्कृतिक विरासत को बचाने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है। लेकिन, इस दिशा में गूगल और उसकी सहयोगी संस्थाओं को बड़ी और लंबी लड़ाई लड़नी है। इस जंग की जीत तभी होगी, जब इस कार्यक्रम की सफलता का कोई भी कोण व्यवसायिक सफलता से जोड़कर नहीं देखा जाए।

More from: GuestCorner
31514

ज्योतिष लेख

मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।

Holi 2020 (होली 2020) दिनांक और शुभ मुहूर्त तुला राशिफल 2020 - Tula Rashifal 2020 | तुला राशि 2020 सिंह राशिफल 2020 - Singh Rashifal 2020 | Singh Rashi 2020