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गूगल प्‍लस डिगा पाएगा फेसबुक का सिंहासन ?

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सोशल मीडिया की जंग में फेसबुक की बादशाहत को चुनौती देने के लिए गूगल कुछ नया लेकर आया है. नया यानी पहले से ज्‍यादा, 'प्‍लस'. जी, गूगल ले अपनी नयी सोशल नेटवर्किंग साइट 'प्‍लस' लॉन्‍च कर दी है. इसमें कुछ-कुछ फेसबुक जैसा है, तो कुछ अलग. हालांकि, तकनीकी दुनिया के जानकार मान रहे हैं कि असल में गूगल की इस सारी कवायद के पीछे उसका अपने सर्च इंजन को बूम देने का मकसद भी है. फेसबुक की बढ़ती लोकप्रियता ने गूगल सर्च इंजन के लिए भी चुनौती पेश की है. समय-समय पर ऐसे आंकड़े आते रहते हैं, जो फेसबुक को इंटरनेट का बादशाह करार देते हैं. फेसबुक पर बिताया जाने वाला समय गूगल सर्च के मुकाबले ज्‍यादा होता है. ऐसे में गूगल को विज्ञापन से होने वाली कमाई पर असर पड़ना लाजमी है.

 
जब गूगल ने सर्च इंजन की शुरूआत की, तब मोटे तौर पर सर्च से अर्थ वेबसाइट सर्च करने से लगाया जा सकता है. यह कई मायनों में आज भी सही है. इंटरनेट पर किसी विषय संबंधी ढेर सारी जानकारी हासिल करने के लिए गूगल बेहरतीन जरिया है. लेकिन, आज कई जगह सर्च का दायरा सिमटकर व्‍यक्ति केंद्रित हो गया है, ऐसे में फेसबुक कई बार गूगल से बीस साबित होता है. आज दुनिया की लगभग हर बड़ी कंपनी फेसबुक पर अपना पेज चलाती है, खुद गूगल के नाम से फेसबुक पर एक पेज है, जिसे पसंद करने वालों की तादाद 33 लाख से ज्‍यादा है. इसके साथ ही जिस किसी व्‍यक्ति से आप  मिलना या बात करना चाहते हैं, उसे फेसबुक पर तलाश करना गूगल के मुकाबले आसान होता जा रहा है. फेसबुक पर दोतरफा संवाद की संभावना भी ज्‍यादा है. केवल परिचित लोग ही नहीं, बल्कि आपके कॉलेज या स्‍कूल के किसी पुराने दोस्‍त को तलाशने में भी फेसबुक काफी मददगार साबित होता है. इन्‍हीं खूबियों के चलते सोशल नेटवर्किंग साइट्स कहीं न कहीं 'सर्च' की नयी परिभाषा और जरूरत में खुद को फिट करने में लगी हैं.
 
 
गूगल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट ऑफ प्रोडक्‍ट ब्रेडली होरोविट्ज भी इस बात को मानते हैं, उनकी बातों में इस बात का पछतावा भी नजर आता है कि इस बात को समझने में काफी समय लगा दिया. कुछ दिन पहले ही उन्‍होंने कहा, '' अब वक्‍त आ गया है कि हमें वास्‍‍तविकता का अंदाजा हो गया है. अगर आप लोगों को जानते नहीं हैं, तो आप उनके बारे में जानकारी हासिल नहीं कर सकते.'' 

हालांकि, तकनीकी दुनिया से जुड़े लोग मानते हैं कि गूगल को अपने इस निर्णय में पहुंचने में काफी समय लग गया है, लेकिन फिर भी प्‍लस को बिलकुल ही खारिज करने का जोखिम वे भी नहीं उठाना चाहते.

 
गूगल का यह भी कहना है कि उसने बेहतर सेवाएं देने के लिए अपने इंन्‍फ्रॉस्‍टक्‍चर में भी काफी इजाफा किया है. इसी के साथ ही गूगल की कोशिश फेसबुक की रणनीति पर भी है. हालांकि, कंपनी की पूरी कोशिश प्‍लस को एक अलग पहचान देने की है. गूगल यह नहीं चाहता कि प्‍लस की तुलना फेसबुक से की जाए. हालांकि, यह भी कहा जा सकता है कि गूगल अपने सर्च इंजन की जानकारियों में इजाफा करना चाहता है. खुद गूगल के अधिकारी भी इस बात को मान रहे हैं.
 
गूगल इंजीनियरिंग के उपाध्यक्ष विक गुंदोतरा मानते हैं कि लोग बहुत जीवंत तरीके से सम्पर्क करते हैं. लेकिन उपलब्ध आनलाइन साधन हमें बहुत कठोर सेवाएं उपलब्ध कराते हैं.
 
 
उन्होंने कहा कि उपलब्ध सोशल नेटवर्किंग साधनों के जरिए छोटे समूहों के बीच चुनिंदा सूचनाएं साझा करने में अक्‍सर मुश्किल होती है. वर्तमान सोशल नेटवर्किंग साइट बारीकियों की इजाजत नहीं देते. लोग अपनी सोशल नेटवर्किंग में ऐसी बारीकियां चाहते हैं क्योंकि इंटरनेट के जरिए सम्पर्क कायम करने वाले इसके जरिए अपने तमाम मित्रों से सम्पर्क में रहते हैं.

उदाहरण के लिए फेसबुक इस्तेमाल करने वाले लोग अपनी स्थिति अपडेट को अपने मित्रों के छोट समूह तक ही सीमित रखना चाहते हैं ताकि उनके सहकर्मी उनके अकाउंट पर लगी पार्टी फोटो न देख सकें या उनके अभिभावक उस पर की गई इश्कबाजी वाली टिप्पणियां न देखें.

 
हालांकि, खुले बाजार में कूदने से पहले गूगल ने 'ट्रॉयल' चला रहा है. इस ट्रॉयल के लिए उसने चुने हुए पत्रकारों, ब्‍लॉगर्स और अन्‍य संसस्‍थाओं को चुना है. कंपनी की ओर से इस बात का खुलासा भी नहीं किया गया है कि 'प्‍लस' सबके लिए कब उपलब्‍ध होगा. जीमेल के शुरुआती दौर की तरह ही इनवाइट भेजकर लोग औरों को भी इससे जोड़ सकेंगे.

इस बार गूगल प्‍लस के साथ. गूगल की कोशिश फेसबुक की बादशाहत को टक्‍कर देने की है, जो बेशक इस दुनिया का बेताज बादशाह है. हालांकि, प्‍लस से पहले भी गूगल की ओर से 'वेव' और 'बज' के जरिए ऐसी कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन मोटे तौर वे नाकाम ही साबित हुईं. इंटरनेट मार्केटिंग रिसर्च कंपनी कॉमस्कोर के मुताबिक गत मई में 18 करोड़ लोग यू-ट्यूब समेत गूगल साइट्स पर गए जबकि अकेले फेसबुक को लगभग 16 करोड़ लोगों ने समय दिया. गूगल यूजर्स ने 46 सौ करोड़ पन्नों को देखा और उन पर औसतन 231 मिनट खर्च किए. वहीं फेसबुक यूजर्स  10,300 करोड़ पन्नों पर गए और औसतन 375 मिनट दिए.

क्‍या है प्‍लस में खास

1. सर्कल :  यह अपने कॉन्टैक्ट्स को अलग-अलग श्रेणी में रखने की आजादी देता है, मसलन फैमिली, फ्रेंड्स, ऑफिस आदि. हर सर्कल के अपडेट उसी से जुड़े लोगों तक जाएंगे. यानी आप फैमिली के साथ जो अपडेट शेयर करेंगे वे ऑफिस के लोगों या दोस्तों को नहीं दिखेंगे.

2. स्पार्क : यह कुछ उसी तरह है जिस तरह फेसबुक में न्यूज फीड दिखाई देती है. यहां आपको हर सर्कल की फीड अलग दिखेगी.

3. हैंगआउट : इसकी मदद से आप दोस्तों के साथ वीडियो चैट कर सकते हैं. एक साथ करीब 10 लोग चैट कर सकते हैं.

4. इंस्टैंट अपलोड्स : इसमें आपके मोबाइल पिक्चर आदि फौरन अपलोड हो जाते हैं, यह आप बाद में तय कर सकते हैं कि इन्हें किसके साथ क्या शेयर करना है.

5. हडल : यह ग्रुप मेसेजिंग जैसी सर्विस है, जिसमें आप फौरन कई लोगों को मेसेज भेज सकते हैं.

फेसबुक भी कर रहा है तैयारी

फेसबुक की सबसे बड़ी खासियत है कि इसने वक्‍त के साथ खुद को लगातार अपडेट किया है. नए-नए एप्‍लीकेशन्‍स और गेम्‍स के साथ इसने उपयोक्‍ताओं की रुचि को न सिर्फ बनाए रखा है, बल्कि बढ़ाया भी है. और फेसबुक के संस्‍थापक मार्क जकरबर्ग ने घोषणा की है कि अगले हफ्ते वे उपयोक्‍ताओं के लिए 'कुछ नया' लेकर आने वाले हैं. अब यह कुछ नया क्‍या होगा इस पर सस्‍पेंस बरकरार है. लेकिन, यह घोषणा उस समय हुई है जब गूगल अपनी प्‍लस सेवा को लॉन्‍च करने का ऐलान कर चुका है.

भविष्‍य पर है गूगल की नजर

गूगल प्‍लस के साथ एक बड़ा फायदा यह है कि यह उसके ऑपरेटिंग सिस्‍ट एनड्रायड को ध्‍यान में रखकर बनाया गया है. अभी तक आ रहीं खबरों के अनुसार प्‍लस के सभी फीचर्स एन्‍ड्रॉयड बेस

मोबाइल फोन्‍स पर बेहतरीन तरीके से काम कर रहे हैं. जानकार मानते हैं कि यह गूगल के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा. इसके साथ ही एन्‍ड्रायड और आईफोन प्‍लेटफॉर्म पर यह किसी

अन्‍य एप्‍लीकेशन की ही तरह मौजूद रहेगा यानी इसकी पहुंच उपयोक्‍ताओं तक आसानी से होगी. क्‍या प्‍लस बनेगा फेसबुक के लिए चिंता का सबब तो, क्‍या गूगल का यह हथियार फेसबुक पर भारी पड़ेगा. क्‍या फेसबुक जिसके खातेदारों को अगर एक मुल्‍क मान लिया जाए, तो चीन और भारत के बाद यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला मुल्‍क होगा. 75 करोड़ से ज्‍यादा उपयोक्‍ताओं वाले फेसबुक के लिए प्‍लस कोई बड़ा खतरा बन पाएगा, कम से कम अभी तो ऐसा नहीं लगता. असल में गूगल के इस नए अवतार से ब्‍लैको और माइक्रोसॉफ्ट के स्‍काइप को खतरा है. गूगल प्‍लस के 'हैंगआउट' जैसे ऑप्‍शन स्‍काइप के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.  

एक बात और है कि सर्च इंजन पर गूगल पर लगभग एकछत्र का वर्चस्‍व है और बिंग के आने से भी गूगल की लोकप्रियता के साथ कोई नाटकीय परिवर्तन नहीं हुआ. गूगल आज भी शीर्ष पर है. तो ऐसे में गूगल प्‍लस के आने से लोग अचानक फेसबुक छोड़कर आ जाएंगे ऐसा होने की संभावना काफी कम नजर आती है.

 
 
 
दसंडेइंडियनडॉटकॉम से साभार
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