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हिन्दी ब्लॉग सम्मेलन के बहाने

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सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक और ट्विटर की अपार लोकप्रियता के दौर में अंतराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन की ख़बर अचानक महत्वपूर्ण लग रही है। दिल्ली में 30 अप्रैल को प्रकाशन संस्थान हिन्दी साहित्य निकेतन की स्वर्ण जयंती के अवसर इस सम्मेलन को आयोजित किया गया है। चर्चित ब्लॉग समूह परिकल्पना और नुक्कड़ डॉट कॉम के संयुक्त प्रयास से आयोजित इस सम्मेलन में हिन्दी ब्लॉगिंग पर एक पुस्तक का लोकार्पण होगा। कई श्रेणियों में हिन्दी ब्लॉगरों को सम्मानित किया जाएगा। देश को जागरुक करने में न्यू मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठि होगी और कई अन्य दूसरे कार्यक्रम होंगे। इस सम्मेलन को लाइव वेबकास्ट किया जाएगा। आयोजकों का कहना है कि कार्यक्रम में देश-विदेश के 400 से अधिक हिन्दी ब्लॉगर शामिल होंगे।
 
ऐसा नहीं है कि हिन्दी ब्लॉग की दशा-दिशा पर चिंतन के लिए पहले कोई सम्मेलन नहीं हुआ। लेकिन, इतने भव्य स्तर पर आयोजन का संभवत: यह पहला प्रयास है। लेकिन, इस आयोजन की अहमियत सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि यह हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़ा है, बल्कि महत्व इसलिए अधिक लग रहा है क्योकि यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता के दौर में ब्लॉग के प्रति कम होते रुझान के बीच आयोजित हो रहा है।
 
सवाल सिर्फ हिन्दी ब्लॉग से जुड़े एक अदद आयोजन का नहीं है। सवाल है हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य का। साफ साफ कहें तो ब्लॉगिंग के भविष्य का। पिछले डेढ़-दो साल में ब्लॉगिंग के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है। कई शोध एवं सर्वेक्षणों में इस बात के संकेत मिले हैं। पिछले साल नवंबर में ब्लॉग के सबसे बड़े सर्च इंजन टेक्नोरती की सालाना ब्लॉगिंग रिपोर्ट में कहा गया था कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता उफान पर है और ब्लॉगिंग अपने सूक्ष्मतर रुप में लोकप्रिय हो रही है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के कुल ब्लॉग के महज सात फीसदी पूरे एशिया पैसिफिक क्षेत्र में है। हालांकि, हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़ा कोई सीधा निष्कर्ष इस रिपोर्ट में नहीं था, लेकिन यहां का परिदृश्य संपूर्ण ब्लॉग जगत के परिदृश्य से अलग नहीं है। कुछ प्रमुख हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटरों का बंद होने, हिन्दी ब्लॉगिंग के आर्थिक मॉडल के विकसित न होने, सेलेब्रिटी ब्लॉगरों की हिन्दी से दूरी बने रहने और हिन्दी भाषियों को फेसबुक-ट्विटर पर अपनी भाषा में लिखने की सुविधा मिलने से हालात बदल गए हैं।
 
दरअसल, बात सोशल नेटवर्किंग साइट की लोकप्रियता बनाम ब्लॉगिंग के प्रति उपेक्षा के भाव की नहीं है। फेसबुक-ट्विटर पर अभिव्यक्ति भी ब्लॉगिंग का एक रुप ही है। लोग इन साइट्स पर हिन्दी और यहां तक कि देवनागरी लिपी में खूब लिख रहे हैं। महत्वपूर्ण बात ब्लॉग के मुख्य स्वरुप के प्रति उपेक्षा की है, जहां लेखक से लिखने से पहले विचार को एक खांचे में ढालने की न्यूनतम मांग होती है। फेसबुक-ट्विटर की तरह ब्लॉग पर लेखक एक झटके में कुछ भी नहीं लिख सकता। क्योंकि ब्लॉग पोस्ट न्यूनतम विचार प्रक्रिया की मांग करती है। उल्लेखनीय है कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर बिना सोचे या एक पल में आए विचार को झटके में लिख देने से उत्पन्न विवाद की फेहरिस्त लंबी है।
 
आवश्यक यही है कि इस बात पर विचार हो कि ब्लॉग के रुप में गंभीर और विचार पूर्ण लेखन कहीं सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता के आगे पस्त न हो जाए। मिस्र से लेकर लीबिया और भारत में अन्ना हजारे के आंदोलन की सफलता के बीच न्यू मीडिया का पर्यायवाची सोशल नेटवर्किंग साइट्स बन रही है और ब्लॉग की चर्चा नदारद है।
 
उम्मीद की जानी चाहिए अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के बहाने हिन्दी ब्लॉगर समुदाय मीडिया का ध्यान उन मुद्दों की तरफ खींचने की भी कोशिश करेगा, जिन पर व्यापक चर्चा आवश्यक है। इनमें हिन्दी ब्लॉगिंग की लोकप्रियता के लिए नए विकल्पों की तलाश, मोबाइल ब्लॉगिंग में हिन्दी के लिए जगह बनाने की जरुरत और हिन्दी ब्लॉग के लिए आर्थिक मॉडल तैयार करने की जरुरत जैसे मुद्दे मुख्य हैं।

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