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भारतीय रेल-कितनी सुरक्षित, कितनी असुरक्षित?

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भारतीय रेल नेटवर्क को विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क कहा जाता है। प्रतिदिन लगभग सवा करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाने की जि़म्‍मेदारी निभाने वाली रेल कभी-कभी असुरक्षा व संदेह की नज़रों से भी देखी जाने लगती है। खासतौर पर उस समय जबकि अप्रत्याशित ढंग से कुछ ऐसे हादसे पेश आ जाएं जिनकी रेल यात्री उम्‍मीद तक न कर रहे हों अथवा स्वयं रेल प्रशासन भी ऐसी संभावित दुर्घटना से बेखबर हो। रेल हादसे भारतीय रेल नेटवर्क के लिए बेशक कोई नई बात नहीं है। परंतु जब मात्र 48 घंटे के भीतर तीन रेल दुर्घटनाएं घटित होने लग जाएं ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होना लाज़मी है। पिछले दिनों दुर्भाग्यवश भारतीय रेल को ऐसे ही लगातार होने वाले तीन बड़े हादसों से दरपेश होना पड़ा। पहली घटना 7 जुलाई को देर रात उस समय घटी जबकि छपरा-मथुरा एक्सप्रेस ट्रेन ने इटावा के समीप एक फाटक रहित रेलवे क्रासिंग पर एक खचाखच भरी यात्री बस को रौंद डाला। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार रेलगाड़ी इस यात्री बस को आधा किलोमीटर दूर तक-अपने साथ खींच कर ले गई। नतीजतन 37 बस यात्री दुर्घटना में मारे गए जबकि अनेक बस यात्री बुरी तरह ज़ख्‍मी हो गए। इस हादसे के दूसरे दिन गोवाहाटी-पुरी एक्सप्रेस पटरी से उतरकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में आतंकवादी कार्रवाई होने का भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। और इस दुर्घटना के मात्र कुछ ही घंटों बाद हावड़ा-कालका मेल इलाहाबाद रेल संभाग के अंतर्गत पडऩे वाले मलवां रेलवे स्टेशन के  पास एक बड़े हादसे का शिकार हो गई। तीव्र गति से जा रही कालका मेल के 14 डिब्बे अचानक रेल पटरी से नीचे उतर गए। और काफी दूर तक रगड़ते हुए चले गए। इस दर्दनाक हादसे में 80 लोगों के मारे जाने का समाचार है जबकि 100 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं।

ग़ौरतलब है कि इलाहाबाद रेल मंडल के अंतर्गत होने वाले उपरोक्त दोनों ही हादसे इसलिए और भी अधिक चौंकाने वाले हैं क्योंकि इलाहाबाद रेल मंडल, रेल ट्रैक के रख-रखाव के मामले मे कई बार अन्य रेल मंडलों में सबसे अग्रणी रह चुका है। बेशक आज भारतीय रेल, शताब्दी, दूरंतो, संपर्क क्रांति तथा स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस जैसी कई तीव्रगामी रेल गाडिय़ों से आरास्ता है परंतु जब भारतीय रेलयात्री उक्त समस्त रेल गाडिय़ों से परिचित नहीं थे उस समय देश में इकलौती सुपरफास्ट रेलगाड़ी के रूप में सबसे प्रतिष्ठित रेलगाड़ी के रूप में राजधानी मेल को ही देखा जाता था। दिल्ली से हावड़ा तथा दिल्ली से मुंबई आने जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों में से दिल्ली-हावड़ा-दिल्ली राजधानी मेल इसी इलाहाबाद मंडल के रेल ट्रैक को अपनी तीव्रगति से पार कर गुजऱा करती थी। परंतु इस प्रकार का हादसा इस ट्रैक पर कभी सुनने को नहीं मिला कि तेज़ गति से चल रही गाड़ी के इंजन के पीछे के 14 डिब्बे लगभग पूरी की पूरी ट्रेन ही पटरी से उतर कर उलट गई हो। निश्चित रूप से इस प्रकार के हादसे भारतीय रेल सुरक्षा मानदंडों पर न सिर्फ प्रश्र चिन्ह खड़ा करते हैं बल्कि इससे स्वयं को विश्वस्तरीय कहने वाली भारतीय रेल की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है।

हालांकि रेलमंत्री के पद को लेकर भारतीय रेल राजनैतिक खींचातानी का भी शिकार रहती है। इसके बावजूद इस विभाग ने यात्रियों तथा व्यवसायियों की ज़रूरतों के मद्देनज़र गत् 10 वर्षों के भीतर कई ऐसे महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं जो हमारे देश की रेल व्यवस्था को विश्वस्तरीय बनाने के साथ-साथ रेल यात्रियों की सुविधा, माल भाड़े की समय पर ढुलाई तथा कम समय में ज्य़ादा दूरी तय करने से संबंधित हैं। जैसे पूर्वी व पश्चिमी रेल कॉरिडोर योजना, हज़ारों किलोमीटर की नई रेल लाईनें बिछाना, जम्‍मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्य में बारामुला व उधमपुर जैसे दुर्गम इलाक़ों में रेल लाईन बिछाना, अनेक नई सुपर फास्ट ट्रेनों का संचालित करना, तमाम रेलवे स्टेशन का आधुनिकीकरण करना तथा इन्हें यात्रियों हेतु और अधिक सुविधाजनक बनाना तथा देश के अधिकांश रेलवे स्टेशन क पयूटरीकृत साधारण रेल टिकट व रेल आरक्षण प्रणाली से जोडऩा जैसी तमाम बातें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त यात्री डिब्बों को भी सुविधाजनक बनाया गया है, तमाम रेलगाडिय़ों में कोच की सुविधा बढ़ाई गई है तथा तमाम ट्रेनों की गति में भी इज़ाफा किया गया है। परंतु जब ट्रेन हादसे या चलती रेलगाडिय़ों की सुरक्षा की बात आती है तो बिल्कुल वही स्थिति होती है जैसे कि गोया 'नाचते हुए मोर ने अपने पांव देख लिए हों'।

रेल हादसों के बाद तो रेल सुरक्षा विभाग को ऐसे उपाय करने चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार के हादसे पेश न आएं परंतु इसके बजाए लगभग प्रत्येक हादसे के बाद यही देखा जाता है कि रेल विभाग के कर्मचारी तथा इसके अंतर्गत् आने वाले अलग-अलग सेक्शन के लोग एक-दूसरे पर जि़म्‍मेदारियां मढऩे का काम करने लग जाते हैं। ऐसे समय में प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी की यही कोशिश होती है कि वह आरोप-प्रत्यारोप के बीच स्वयं को किस प्रकार हादसे की जि़म्‍मेदारी से मुक्त रखे। विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों की मामले की लीपापोती करने की यह नीति भी कतई अच्छी नहीं है। कायदे से तो हादसे के सही-सही कारणों का पता चलना चाहिए तथा इसके लिए जि़म्‍मेदार लोगों को बेनकाब कर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। हज़ारों व्यक्तियों को तीव्रगति से लाने व ले जाने वाली भारतीय रेल इस प्रकार 'राम भरोसे' छोडऩा या अपनी कमियों को छुपा कर अगले हादसे को दावत देना कतई मुनासिब नहीं है।

बेशक रेल विभाग, रेल डिब्बों, माल गाडिय़ों के डिब्बों तथा रेल इंजन के रखरखाव की व्यवस्था करता है। परंतु इस प्रकार की देखभाल के लिए देश में कुछ ही स्थान निर्धारित हैं जहां पहुंचकर रेल के डिब्बों की जांच-पड़ताल व देखभाल की जाती है। परंतु लंबी दूरी पर चलने वाली रेलगाडिय़ों के रैक की मशीनी व तकनीकी देखभाल के लिए तथा उसकी गड़बडिय़ों की जांच करने हेतु रास्ते में कोई व्यवस्था नहीं की जाती। सिवाए इसके कि कहीं-कहीं स्टेशन पर ट्रेन के ब्रेक शू केवल नज़रों से चैक किये जाते हैं अथवा वैक्यूम पाईप या बिजली या पानी जैसी आपूर्ति के बाधित होने संबंधी शिकायतें दूर की जाती हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दो डिब्बों के जोड़ तथा कमानी व व्हील एक्सेल आदि की जांच पड़ताल की कोई व्यवस्था स्टेशन पर नहीं होती। लंबी रेलगाड़ी होने के नाते बोगियों में अथवा डिब्बों के नीचे होने वाली गैर ज़रूरी आवाज़ की भी जानकारी ड्राईवर अथवा गार्ड को चलती गाड़ी में नहीं मिल पाती। और यदि इस प्रकार की गड़बड़ी का कुछ एहसास ड्राईवर या गार्ड को हो भी तब भी वे इस प्रकार की तकनीकी गड़बडिय़ों से नावाकिफ होने के कारण आसानी से न तो त्रुटि को समझ पाते हैं न ही उसका निवारण कर सकते हैं। लिहाज़ा तेज़ रफ्तार चलने वाली रेलगाडिय़ों को बीच रास्ते में तीव्र गति में ही जांच किए जाने का प्रबंध भी रेल सुरक्षा विभाग को करना चाहिए।

उदाहरण के तौर पर यदि कोई तेज़ रफ्तार ट्रेन किसी एक स्टेशन से छूटकर अगले निर्धारित स्टेशन पर पहुंचने के लिए अपना सफर तय करती है उस दौरान इस यात्रा के बीच के किसी ऐसे रेलवे स्टेशन पर उस समय जांच की जानी चाहिए जबकि वह अपनी निर्धारित तीव्र गति से स्टेशन को पार कर रही हो। उस समय तेज़ रफ्तार से आने वाली इस ट्रेन के दोनों ओर तैनात कुशल तकनीशियन द्वारा दूर से आ रही रेलगाड़ी की चाल उसकी लहर व उसके नीचे से निकलने वाली अवांछित आवाज़ों तथा ईंजन व गार्ड के मध्य के सभी डिब्बों के बीच के झटकों व उनके परस्पर खिंचाव आदि पर पैनी नज़र रखनी चाहिए। साथ ही साथ जिस ट्रैक से वह तीव्र गति ट्रेन गुज़र रही हो उस पर भी पूरी चौकस नज़र रखी जानी चाहिए। और यदि इस रेल के गुज़र जाने पर यह कुशल रेल तकनीशियन यह महसूस करते हैं कि इस रेलगाड़ी में कुछ तकनीकी खराबी होने का संदेह है तो इसकी सूचना अगले उस स्टेशन को दे देनी चाहिए जहां अमुक रेलगाड़ी को रुकना है। इतना ही नहीं बल्कि कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि ट्रेन के प्लेटफार्म पर पहुंचने व रुकने से पहले ही रेल तकनीशियन उस प्लेटफार्म पर पहुंच जाएं जहां वह ट्रेन रुकने वाली है। फाल्ट के संबंध में ट्रेन ड्राईवर को भी अवश्य बता देना चाहिए।
 
इस प्रकार के उपायों से हावड़ा-कालका मेल जैसे डिरेलमेंट अर्थात् रेल के पटरी से नीचे उतरने वाले हादसों में कमी लाई जा सकती है। रेल विभाग का ऐसा सोचना हरगिज़ मुनासिब नहीं है कि यदि उसने रैक की धुलाई-सफाई कर किसी ट्रेन को एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए रवाना कर दिया तो रास्ते में उसे कोई तकनीकी समस्या आ ही नहीं सकती। लाखों कलपुर्जों तथा हज़ारों टन वज़न लेकर दौडऩे वाली यह रेलगाड़ी जहां यात्रियों को उनकी मंजि़लों तक पहुंचाती है तथा पूरे देश में लगभग सभी प्रकार की मानव की ज़रूरतों संबंधी सामग्रियां इधर-उधर पहुंचाती है वहीं यह व्यवस्था पूरी ईमानदारी, समर्पण, चौकसी, पूरी जि़म्‍मेदारी, भरपूर कौशल तथा उच्च श्रेणी के निरंतर तकनीकी रखरखाव की भी मोहताज है। लिहाज़ा यदि भारतीय रेल को विश्व स्तरीय रेल का तमगा देना ही है तो सुरक्षा व्यवस्था जैसे सबसे ज़रूरी मानदंडों पर भी इसे विश्वस्तरीय ही बनाना होगा। 

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