आचार्य राम हरी शर्मा
वास्तुशास्त्र के वैज्ञानिक आधार हैं, और कई बार यह बात साबित हो चुकी है। वास्तु शास्त्र का मूलाधार पांच तत्व हैं। इन पांच तत्वों का आवासीय या व्यावसायिक भवन निर्माण करते समय कैसे ध्यान रखा जाये इसका विवेचन करूंगा। अगर इन पांचों तत्वों का सामंजस्य भवन निर्माण करते समय रखा जाये तो प्रकृति की अनन्त शक्तियों का उपहार हमें अनायास ही प्राप्त हो जाता है।
१. आकाश तत्व; आकाश असीम अगम्य है। आकाश से ही शब्द की उत्पत्ति होती है। आकाश द्वारा प्रदत्त ध्वनि के उपहार ने हमारे जीवन को समृद्ध बना दिया है। अतः मकान बनाते समय दीवार की ऊंचाई से हमें यथेष्ट आकाश की प्राप्ति होती है। मन्दिरों के गुम्बज एवं मसजिदों के मेहराव आकाश शक्ति की विपुलता के प्रतीक हैं। इसलिए मकान का निर्माण करते समय दीवारों की ऊंचाई उचित होनी चाहिये/ कम ऊंची दीवार वाले मकान में घुटन महसूस होगी।
२. वायु तत्व: सारे प्राणी वायु से ही जीवन प्राप्त करते हैं। वायु में ७८% नाइट्रोजन तथा २१% ऑक्सीजन होती है। इस २१ प्रतिशत आक्सीजन पर ही यह पूरा ब्रह्मांड जीवित है। अतः भवन बनाते समय वायु के उचित आवागमन का ध्यान रखते हुये काफी संख्या में रोशन दान तथा खिड़कियां होनी चाहिये। हवा के लिये उत्तर दिशा खुली रखनी चाहिये और केन्द्रीय भाग खुला होना चाहिये।
३. अग्नि तत्व: हम जानते है कि सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। अग्नि की ऊर्जा हमें सूर्य से आने वाले प्रकाश से प्राप्त होती है। अतः हमारे घर में खिड़कियों की ऐसी व्यवस्था हो कि प्रातःकालीन सूर्य की पवित्र रश्मियां अवश्य प्रवेश करें। व्यस्था ऐसी करें कि समुचित मात्रा मे ही प्रकाश प्रवेश करे अन्यथा ज्यादा देर तक सूर्य की तेज किरणें आने से घर गर्म हो जायेगा तथा अग्नि तत्व का आनुपतिक विश्लेषण बिगड़ जाएगा,जो हानिकारक होगा।
४. जल तत्व: जल का स्थान घर में शुद्ध होना चाहिये। पानी का नल, जल संग्रह एवम छत की टंकी सही स्थान पर होनी चाहिए। सैप्टिक टैंक एवं वर्षा के जल का निष्कासन सही दिशा मे होना चाहिये।
५. पृथ्वी तत्व: पर्यावरण तथा वायु मंडल की अनंत शक्तियों से पृथ्वी का गहरा सम्बंध है। पृथ्वी तथा अन्य तत्वों से जीवन क्रम का आरम्भ हुआ इसलिए पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है। इसी कारण गृह निर्माण के समय पृथ्वी पूजन करते हैं। अत: पृथ्वी तत्व को भी उचित स्थान भवन बनाते समय देना चाहिये।
इन पांच तत्वों को यथोचित मान देते हुये ही भवन निर्माण करना चाहिये। अब इन पांच तत्वों की दिशाये बताते हैं, जो कि निम्न तालिका से स्पष्ट हैं-
तत्व दिशायें
जल उत्तर-पूर्व
अग्नि दक्षिण-पूर्व
आकाश दक्षिन- पश्चिम
वायु उत्तर-पश्चिम
पृथ्वी भवन का केन्द्रीय स्थान/ ब्रह्म स्थान
अतः हम सभी को वास्तु के इन मूल नियमों को अवश्य जानना चाहिये। अगर वास्तु विशेषज्ञ अनुपलब्ध है अथवा उसकी सलाह नहीं ली गई है तो निम्न बातों का जरूर ध्यान रखें।
कदापि न करें
१. उत्तर-पूर्व दिशा मे शौचालय तथा रसोईघर का निर्माण
२. दक्षिण-पूर्व दिशा में जल संग्रहण,ओवरहैड टैंक का निर्माण
३. पूर्व दिशा में भारी सामान
सदैव करें
१. उत्तर-पूर्व दिशा मे. जल सग्रहण, मन्दिर का निर्माण, टैंक निर्माण
२. दक्षिण पूर्व दिशा में रसोईघर, बिजली उपकरण आदि रखें
३. सीढियां पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर चढ्ती हुईं
उपर्युक्त विवेचन केवल वास्तु के सामान्य नियमों की जानकारी प्रदान करता है, वास्तु विज्ञान तो समुद्र के समान है। लेकिन,इतनी जानकारी भी कम नहीं है।