10 जनवरी, 2011
बेंगलुरू। भारत में स्वनिर्मित और कई प्रकार की भूमिकाएं निभाने में सक्षम लड़ाकू विमान 'तेजस' प्रारंभिक परिसंचालन मंजूरी (आईओसी) मिलने के साथ ही सोमवार को भारतीय वायु सेना में शामिल हो गया। इसके साथ ही भारत हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) बनाने वाले दुनिया के गिने-चुने देशों की श्रेणी में शामिल हो गया।
रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने रक्षा और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के एयर चीफ मार्शल पी. वी. नाइक को दुनिया के इस सबसे छोटे सैन्य लड़ाकू विमान का सेवा प्रमाण पत्र प्रदान किया। चौथी पीढ़ी के सुपरसोनिक लड़ाकू विमान तेजस का वायुसेना में 200 विमानों का बेड़ा रहेगा। ये विमान रूस के पुराने पड़ चुके मिग-21 विमानों का स्थान लेंगे।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के एक अधिकारी के. जयप्रकाश राव ने बताया, "यह पहली बार हुआ है कि स्वदेश में तैयार व विकसित सैन्य लड़ाकू विमान को वायु संचालन के लिए मंजूरी दी जा रही है।"
प्रारंभिक परिसंचालन मंजूरी में परीक्षण की वैद्यता और इस लड़ाकू विमान को नियंत्रित करने, रफ्तार, शस्त्रीकरण, राडार प्रणाली सहित इसकी अन्य सभी पहलुओं से जांच करना शामिल है। गौरतलब है कि एरोनॉटिकल डिफेंस एजेंसी (एडीए) और हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड(एचएएल) द्वारा निर्मित इस सुपरसोनिक लड़ाकू विमान को तैयार करने में देरी की वजह से इसकी लागत काफी बढ़ गई है।
इस देरी की कई वजहें हैं। एक दशक पहले मई 1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण इसकी लागत 5,778 करोड़ रुपये बढ़ गई जबकि शुरू में 1980 के दशक में इसके निर्माण पर 3,300 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया था।
राव ने कहा, "तेजस को सेवा प्रमाण पत्र मिलना भारतीय अंतरिक्ष उद्योग और आईएएफ के लिए ऐतिहासिक है। वायु सेना के लिए यह स्वदेशी विमान मील का पत्थर साबित होगा। " लड़ाकू विमानों की निर्माण श्रृंखला के तहत मंजूरी लेने के लिए एचएएल ने आठ विमान तैयार किए हैं। उम्मीद है कि जल्द ही 20 लड़ाकू विमान वायु सेना को सौंपे जाएंगे।