18 जनवरी, 2011
नई टिहरी (उत्तराखण्ड)। हिन्दुओं के सबसे पवित्र माने जाने वाला माघ मास का स्नान पौष पूर्णिमा बुधवार से शुरू हो रहा है। इस पर्व पर हरिद्वार में देश विदेश से आने वाले श्रद्घालुओं को डुबकी लगाने के लिए जल तो मिलेगा पर इसमें भगीरथ के पुरखों को तारने वाली गंगा की मूल धारा भागीरथी का पानी न होगा।
टिहरी जनपद के कोटेश्वर बांध की क्षतिग्रस्त डायवर्जन टनल की मरम्मत के कारण टिहरी बांध में भागीरथी का प्रवाह रोक लिए जाने से ऐसी नौबत आई है।
उल्लेखनीय है कि नए वर्ष के पहले सूर्य ग्रहण और मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्घालुओं को देवप्रयाग, प्रयागराज इलाहाबाद और गंगासागर सहित कई प्राचीन स्थानों पर श्रद्घालुओं को भागीरथी विहीन जल पर ही स्नान करना पड़ा था। कल से प्रारंभ हो रही पौष पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक मुख्य स्नान तो प्रयाग में ही होता है लेकिन हरिद्वार में भी श्रद्घालु पूरे महीने स्नान के लिए यहां पहुंचते हैं।
वैसे तो देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलने के बाद ही भगीरथी गंगा बनती है पर कथित तौर पर पौराणिक महत्व भगीरथी का सबसे ज्यादा है। कोटेश्वर में बांध की डायवर्जन टनल धंस जाने के बाद टिहरी बांध के अधिकारियों ने भागीरथी को टिहरी बांध में कैद किया हुआ है।
इस समय टिहरी और कोटेश्वर बांध की डायवर्जन टनल से मुश्किल से 10 से 14 क्यूमेक्स पानी निकल रहा है। जो रास्ते में पड़ने वाले अन्य पहाड़ी नालों गदेरों से मिलकर देवप्रयाग पहुंच रहा है। इसलिए गंगा स्नान करने वाले श्रद्घालुओं को केवल अलकनंदा का ही पानी मिल पा रहा है। देवप्रयाग से लेकर गंगा सागर तक दर्जनों पौराणिक स्थानों पर अन्य नदियां भागीरथी विहीन बह रही हैं और इन्ही पर श्रद्घालु स्नान कर रहे हैं।
कोटेश्वर बांध परियोजना के डीजीएम ए.के. श्रीवास्तव का कहना है कि श्रद्घालुओं की आस्था को देखते हुए डायवर्जन टनल का कार्य तेजी से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दिन और रात कार्य किया जा रहा है। इस समय कोटेश्वर बांध की डायवर्जन टनल से 10 से 14 क्यूमेक्स तक पानी निकल रहा है।
उधर, शंकराचार्य बद्रीपीठाधीश्वर माधवाश्रम जी महाराज ने कहा कि समस्त धार्मिक कार्य स्नान, पूजन, अभिषेक आदि के लिए भागीरथी का जल भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि पर्व कालों पर भागीरथी का जल मिलना चाहिए।