23 अप्रैल 2011
नई दिल्ली। आपको याद होगा पचास करोड़ की फिल्म 'देवदास' का वो भव्य सेट, जिसमें शाहरुख खान, एश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित ने अपनी अदायगी के जलवे बिखेरे थे। याद कीजिए माधुरी का वो लाखों का लहंगा और गहने जिसने फिल्म को भव्यता प्रदान की। उस समय इस फिल्म की कामयाबी का एक कारण शानदार अभिनय के साथ ही भव्य सेट, महंगे गहने और कपड़ो को भी माना गया। इसके बाद तो निर्माता-निर्देशकों और दर्शकों, सभी को ये लगने लगा था कि फिल्म का बडा बजट और भव्यता ही किसी फिल्म की सफलता का राज़ हो सकते है।
'देवदास' की सफलता के बाद तो जैसे बड़े बजट की फिल्मों का दौर शुरू हो गया। लेकिन पचास करोड़ की 'देवदास' ने जहां जबरदस्त बिजनेस किया वहीं गदर फेम निर्देशक अनिल शर्मा की फिल्म 'द हीरो' औंधे मुंह गिर पड़ी। इस फिल्म का बजट सौ करोड़ था लेकिन व्यवासाय के नाम पर फिल्म फ़लॉप रही। अब नजर डालते है संजय लीला भंसाली की अगली फिल्म पर। जहां देवदास ने बिजनेस के रिकॉर्ड तोड़ दिए थे वहीं भंसाली की अगली बड़े बजट की फिल्म 'सांवरियां' ने टिकट खिड़की पर पानी तक नहीं मांगा। बड़े बजट की फिल्मों के इस हश्र से निर्माता-निर्देशकों को जल्दी ही समझ में आ गया कि फिल्म की सफलता का राज़ भव्यता और बड़ा बजट नहीं होता, बल्कि एक कसी हुई कहानी, शानदार अभिनय और कर्णप्रिय संगीत मिलकर किसी फिल्म की सफलता की कहानी लिखते है।
फिल्म निर्माताओं को ये समझ आ गया है कि अब दर्शकों के लिए फिल्मों की भव्यता ज्यादा मायने नहीं रखती। यही वजह है कि कम और औसत बजट की फिल्मों को भी खूब दर्शक मिलने लगे हैं। इसके साथ ही ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर 16 से 40 करोड़ रुपये तक का व्यवसाय करने में भी समर्थ हैं। जाहिर है कि दर्शक फिल्मों में बड़े सितारे नहीं बल्कि कहानी में दम देखना चाहते हैं।
फिल्मकार किरण राव के निर्देशन में पांच करोड़ रुपये की लागत से बनी 'धोबी घाट' ने बॉक्स ऑफिस पर 16 करोड़ रुपये का व्यवसाय किया तो रोमांसप्रधान हास्य फिल्म 'तनु वेड्स मनु' ने 40 करोड़ रुपये का व्यवसाय किया। 'तनु वेड्स मनु' का निर्माण 16 करोड़ रुपये में हुआ था।
वास्तविक जिंदगी की कहानी पर आधारित राजकुमार गुप्ता की 'नो वन किल्ड जेसिका' इस साल प्रदर्शित होने वाली पहली फिल्म है जिसने टिकट खिड़की पर 28 करोड़ रुपये की कमाई की। इस फिल्म में नौ करोड़ रुपये का निवेश हुआ था।
पिछले साल प्रदर्शित हुईं 'उड़ान' और 'पीपली लाइव' भी औसत बजट की फिल्में थीं लेकिन इन दोनों ही फिल्मों ने अच्छा व्यवसाय किया।
यूटीवी मोशन पिक्चर्स के सीईओ सिद्धार्थ रॉय कपूर कहते हैं, "कम बजट की फिल्मों की सफलता बताती है कि आजकल के दर्शक मनोरंजन के साथ सामग्री की गुणवत्ता भी देखते हैं। यदि आप उनके लिए रोचक ढंग से कोई कहानी पेश करें तो वे बड़े कलाकार न होने पर भी फिल्में देखने आते हैं।"
साल के पहले चार महीनों में धर्मेद्र और उनके बेटों सन्नी व बॉबी देओल की 'यमला पगला दीवाना' और विशाल भारद्वाज की '7 खून माफ' भी प्रदर्शित हुई। 'यमला पगला दीवाना' जहां दर्शकों को गुदगुदाने में कामयाब रही वहीं '7 खून माफ' को मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली। दूसरी ओर 'पटियाला हाउस' और 'गेम' जैसी बड़े बजट की फिल्में बॉक्सऑफिस पर पिट गईं।
कपूर कहते हैं, "दर्शक आज बड़े बजट की बेकार फिल्मों को देखने की बजाए कम बजट की अच्छी फिल्में देखकर खुश हैं।"