10 मई 2011
नई दिल्ली। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अमेरिका तथा पाकिस्तान के सम्बंधों में जमी बर्फ के बीच अफगानिस्तान से भारत के सम्बंधों को और बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अफगानिस्तान यात्रा की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है।
पाकिस्तान को यह यात्रा हालांकि परेशान कर सकती है, क्योंकि अफगानिस्तान के पुननिर्माण में भारत की प्रभावी भूमिका रही है और भारत की ओर से इस दिश में उठाए गए हर कदम को वह संदेह की नजर से देखता है। बहरहाल, अधिकारियों के अनुसार इस यात्रा का मकसद काबुल में पाकिस्तान के प्रभाव को कम करना नहीं है।
अगस्त, 2005 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा होगी। प्रधानमंत्री की यात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी अभी जाहिर नहीं की गई है। सुरक्षा कारणों से इसे गुप्त रखा जा रहा है।
अधिकारियों के मुताबिक, उन्हें यात्रा की तिथि की जानकारी नहीं है। सिंह की रवानगी से 36 घंटे पहले इसकी घोषणा की जाएगी।
अफगानिस्तान में कई रचनात्मक कार्यो में भारत सक्रिय योगदान दे रहा है। राजधानी काबुल में दूतावास के अतिरिक्त अफगानिस्तान में भारत के चार वाणिज्य दूतावास हैं।
अफगानिस्तान में सड़क, रेल, शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में निर्माण कार्य पर भारत हर साल 1.3 अरब डॉलर खर्च करता है। वह काबुल में नई संसद भी बना रहा है। सैकड़ों भारतीय यहां विभिन्न परियोजनाओं में संलग्न हैं।
पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान में निर्माण कार्य के बहाने भारत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आतंकवादियों की मदद कर रहा है।
वहीं भारत और अफगानिस्तान पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा आतंकवादियों को आश्रय देने का आरोप लगाते रहे हैं।