4 जून 2011
सिद्धार्थनगर। बाल विवाह जैसी कुरीति को समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में छात्रों और युवाओं का एक समूह लोगों को जागरूक करने में जुटा है।इस समूह में अलग-अलग गांवों के करीब 200 छात्र-छात्राएं शामिल हैं, जो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
कक्षा 11वीं का छात्र प्रभात कुमार (16) उसी समूह का हिस्सा है। बढ़नी गांव निवासी प्रभात ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों और स्थानीय लोगों को समझ्झाना है कि वे अपने बेटे और बेटी की शादी क्रमश: 21 और 18 की वर्ष की उम्र से पहले न करें। वह कहता है कि वह कोई महान काम नहीं कर रहा है। यह तो समाज के प्रति सामान्य-सी जिम्मेदारी है।
कुमार के मुताबिक, "मेरे हमउम्र विद्यार्थियों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि वे इस सामाजिक बुराई के सबसे ज्यादा शिकार हैं। ऐसे में बिना उनके सहयोग और समर्थन के इसे खत्म नहीं किया जा सकता है।" कुमार व उसके जैसे अन्य छात्रों और युवाओं को इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट करने का श्रेय एक गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) शोहरतघाट एनवायरमेंटल सोसाइटी (एसईएस) को जाता है।
एसईएस के सचिव बी.एस.श्रीवास्तव ने कहा कि 15 से 20 साल के विद्यार्थी ग्रामीणों को बाल विवाह के बुरे प्रभावों के बारे में जागरूक कर रहे हैं। उन्हें सामाजिक सरोकार के लिए काम करने में बहुत गर्व की अनुभूति होती है।
श्रीवास्तव ने बताया कि दो साल पहले इन विद्यार्थियों को बाल विवाह और कम उम्र में गर्भधारण करने से पैदा होने वाली समस्याओं के बारे में परामर्श कार्यक्रम के माध्यम से जानकारियां देकर प्रशिक्षित किया गया, ताकि ये लोगों को जागरूक कर सकें। श्रीवास्तव के मुताबिक करीब 200 छात्र-छात्राएं मित्र समूह के रूप में सामाजिक सरोकार का यह काम करते हैं और इनका लक्ष्य मुख्य रूप से 15 से 20 साल के लोग होते हैं।
200 छात्र-छात्राओं के मित्र समूहों की मदद से एसईएस जिले के 65 गावों में इस कुरीति के खिलाफ अभियान चल रहा है। बाड़गून गांव निवासी बारहवीं के छात्र राकेश राय ने कहा, "हम दरवाजे-दरवाजे जाते हैं..जन सम्पर्क व अन्य गतिविधियों के जरिए ग्रामीणों को खासकर अपनी उम्र के युवाओं को बाल विवाह के बारे में जागरूक करते हैं।"
मित्र समूह के विद्यार्थियों का मानना है कि सरकारी एजेंसियां और सामाजिक कार्यकर्ता तो अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं, लेकिन अगर विद्यार्थी भी इस लड़ाई में शामिल हो जाएं तो वे समाज में अधिक सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।