7 सितम्बर 2011
ढाका। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को तीस्ता जल मुद्दे पर सम्बंधित अधिकारियों से एक ऐसा व्यावहारिक फार्मूला तलाशने के लिए प्रयास तेज करने को कहा, जिससे दोनों देशों को कोई अनावश्यक कठिनाई न हो।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तीस्ता नदी जल बंटवारे सम्बंधी समझौते के मसौदे पर नाखुशी के बाद भारत व बांग्लादेश ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए।
सिंह दो दिवसीय यात्रा पर मंगलवार को ढाका पहुंचे थे। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सहित कई मुद्दे सुलझने और उन पर समझौते होने की उम्मीद थी।
उन्होंने बुधवार को ढाका विश्वविद्यालय में अपने सम्बोधन में कहा, "मुझे उम्मीद थी कि इस यात्रा के दौरान हम तीस्ता नदी जल बंटवारे पर सहमति बना सकेंगे।"
उन्होंने कहा, "दोनों ही पक्षों ने एक ऐसा समाधान निकालने का बहुत प्रयास किया था, जो सभी को स्वीकार्य हो। दुर्भाग्य से उपलब्ध समय में इन प्रयासों को सफलता नहीं मिल सकी।"
सिंह ने कहा, "मैंने सम्बंधित अधिकारियों से समझौते के लिए एक ऐसा फार्मूला निकालने की दिशा में प्रयास तेज करने को कहा है जिससे भारत या बांग्लादेश में जो लोग इस नदी पर निर्भर हैं उन्हें कोई परेशानी न हो।"
तीस्ता नदी सिक्किम से निकलती है और उत्तरी बंगाल से होती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है। भारत व बांग्लादेश के बीच 54 नदियां बहती हैं।
सिंह ने कहा कि समय-समय पर तिपाईमुख बांध परियोजना पर चिंताएं जताई गई हैं। यह परियोजना मणिपुर में चल रही है।
उन्होंने कहा, "मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारत ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा जिनका बांग्लादेश पर प्रतिकूल असर हो।"
भारत व बांग्लादेश ने मंगलवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय व ढाका विश्वविद्यालय के बीच सहयोग के एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए।
सीमा मुद्दे पर सिंह ने कहा, "हमारे द्विपक्षीय सम्बंधों के विकास में शायद हमारी सीमाओं का प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है।"
उन्होंने कहा, "दोनों देशों की सरकारों ने लेन-देन की भावना के साथ सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की है। परिक्षेत्रों, कब्जे वाले क्षेत्रों और विवादित क्षेत्रों जैसे अनसुलझे मुद्दों को सुलझाने के लिए मंगलवार को एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वहां से हटाए बिना इन मुद्दों का समाधान निकाला जाएगा।"
आतंकवाद के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि भारत व बांग्लादेश दोनों ही इससे प्रभावित हैं और इस चुनौती से निपटने के लिए दोनों देशों द्वारा मिलजुलकर प्रयास किया जाना महत्वपूर्ण है।