23 सितम्बर 2011
नई दिल्ली। मंसूर अली खान नवाब पटौदी आज अपने पैतृक गांव पटौदी में सुपूर्द-ए-ख़ाक हो जायेंगे। और इसी के साथ भारतीय क्रिकेट का एक जाबांज इंसान, प्रतिभाशाली खिलाड़ी और दूरदर्शी कप्तान हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में चला जाएगा। 'टाइगर' नाम से मशहूर पटौदी ने सर गंगाराम अस्पताल में गुरुवार शाम को अंतिम सांल ली। वह फेफड़े के गम्भीर संक्रमण से पीड़ित थे। वह 70 वर्ष के थे।
पटौदी उन चंद खिलाड़ियों में से एक रहे हैं, जिन्होंने सबसे पहले क्रिकेट और बॉलीवुड के बीच सीधा रिश्ता कायम किया। अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के साथ विवाह करने वाले पटौदी ने अपने पिता नवाब पटौदी सीनियर के माध्यम से बचपन से लेकर जवानी तक क्रिकेट को जितना जिया, उससे कहीं अधिक उन्होंने अपनी अभिनेत्री पत्नी, अभिनेता पुत्र सैफ अली खान और पुत्री सोहा अली खान के माध्यम से बॉलीवुड को महसूस किया।
पटौदी को भारतीय क्रिकेट का दूरदर्शी कप्तान माना जाता है। यही कारण है कि 1961 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने के साथ कप्तानी की जिम्मेदारी स्वीकार करने वाले पटौदी ने कुल 46 मैच खेले और 40 में टीम का नेतृत्व किया। अपने चौथे ही टेस्ट मैच में कप्तान बनाए जाने वाले पटौदी को भारतीय क्रिकेट का सबसे अच्छा कप्तान कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
पटौदी 21 वर्ष की उम्र में बारबाडोस में वेस्टइंडीज के खिलाफ 1962 में कप्तान बनाए गए थे क्योंकि नियमित कप्तान नारी कांट्रेक्टर तेज गेंदबाज चार्ली ग्रिफिथ की एक गेंद पर चोटिल होने के कारण अस्पताल में इलाज करा रहे थे। इस तरह पटौदी को भारतीय क्रिकेट का सबसे युवा कप्तान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनका यह रिकार्ड 2004 तक कायम रहा।
काउंटी क्लब ससेक्स और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय टीम की कप्तानी कर चुके पटौदी की एक आंख की रोशनी दुर्घटना में चली गई थी लेकिन नकली आंख के बावजूद पटौदी ने कभी भी किसी स्तर पर हथियार नहीं डाला और भारतीय क्रिकेट का विलक्षण, बुद्धिजीवी और दूरदर्शी चेहरा बने रहे।
पटौदी की देखरेख में भारतीय टीम ने कुल नौ टेस्ट मैच जीते थे। वह उनका ही कार्यकाल था, जब भारतीय टीम को यह यकीन हो चला था कि वह भी जीत हासिल कर सकती है। यह काफी कुछ सौरव गांगुली के कप्तानी के कार्यकाल जैसा था, जब भारतीय टीम ने देश और विदेश में सभी टीमों को हराया।
पटौदी ने भारतीय क्रिकेट को उसकी सबसे बड़ी ताकत स्पिन कला पर आश्रित होने का आत्मविश्वास दिया। पटौदी मानते थे कि भारतीय स्पिनर किसी भी टीम को धराशायी कर सकते हैं और यही कारण है कि उन्होंने एक मैच में एक से अधिक स्पिनर को खिलाने की नीति को बढ़ावा दिया।
बतौर बल्लेबाज पटौदी ने बहुत बड़ी उपलब्धि तो हासिल नहीं की लेकिन एक कप्तान के तौर पर उन्होंने जिस स्तर का प्रेरणादायी काम किया, उसे देखते हुए उनके आंकड़े और भी प्रभावशाली दिखते हैं। पटौदी ने 46 टेस्ट मैचों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए, जिनमें छह शतक शामिल हैं। 203 रन, जो 1964 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ बनाए थे, उनका श्रेष्ठ स्कोर बना रहा।
ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में पढ़े पटौदी में शालीन कुल के सभी गुण थे। वह 1971 तक हरियाणा के करीब स्थित पटौदी के नवाब थे। 1971 में जब भारत सरकार ने संविधान में संशोधन के जरिए राजघरानों की शक्ति भंग कर दी तब तक पटौदी का सम्मान राजा की तरह होता था लेकिन इसके बाद पटौदी ने क्रिकेट के माध्यम से भारतीय जनमानस पर राज किया।