इस वर्ष शारदीय नवरात्रों का शुभारम्भ 28 सितंबर 2011 दिन बुधवार को तथा 6 अक्तूबर 2011 दिन गुरुवार को समापन है। चैत्र और शारदीय नवरात्रो मे 6-6 महीने का अन्तर होता है। ये दोनो पर्व रितुओ के सन्धि काल में पड़ते हैं। यह तो सर्वविदित है कि सन्धिकाल उपासना के लिये सर्वाधिक उपयुक्त होता है अतः रितु सन्धिकाल के ये नौ-नौ दिन दोनो नवरात्रियो में विशिष्ट रूप से साधना- अनुष्टानों के लिये, मन्त्र जाप, मन्त्र सिद्धि, एवमं पुरुषार्थ सिद्धि के लिये महत्वपूर्ण माने गये हैं।
मां दुर्गा की उपासना के लिये नवरात्रों से बेहतर वक्त कोई नहीं हो सकता। शक्ति उपासना के क्षेत्र में नवरात्रियों का महत्व अनादिकाल से ही है। पुराणों में भी नवरात्रियों की उपासना का उल्लेख है। वैसे तो नवरात्रि प्रत्येक वर्ष चार बार होती है परन्तु प्रसिद्धि में चैत्र और अश्विन के नवरात्र प्रमुख माने जाते हैं। चैत्र, आषाढ, आश्विन और माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन नवरात्र कहे जाते हैं। इनमे भी चैत्र नवरात्रों को वासन्ती नवरात्र और आश्विन नवरात्रों को शारदीय नवरात्र भी कहते है। शारदीय नवरात्रों का विशेष महत्व है।
देवी भागवत में देवी की असीम,असाधारण शक्ति की कथा का वर्णन इस प्रकार है। एक बार महा शक्ति की कृपा से देवताओं को असुरो पर विजय मिलने से उन्हे अपनी वीरता पर घमन्ड हो गया। घमन्ड से पतन निश्चित है अतः देवताओ को पतन से बचाने के लिये आद्य शक्ति ने एक यक्ष का रूप धारण करके क्रमशः वायु, अग्नि तथा वरुण देव आदि देवो की शक्ति को कुन्ठित कर दिया। जब अग्नि देव तथा वायु देव अपनी पूरी शक्ति लगा कर भी एक तृण को जलाने तथा उड़ाने मे सफल नही हुये तथा लज्जित हुये तब इन्द्र ने यक्ष के बारे मे जानना चाहा। तो आद्य शक्ति रूपी यक्ष ने कहा कि में वही परा शक्ति भगवती हूं, वही परब्रह्म हूं। तब स्भी देवताओ ने देवी भगवती की स्तुति की और वरदान पाया।
इस कथा से सिद्ध होता है कि शक्ति ही सब कुछ है। इसके बिना कुछ नही हो सकता। दुर्गा सप्त्शती में, भगवती देवी की असीम शक्तिओ का वर्णन है। इसमे राक्षसों के संहार का विस्तार से वर्णन है। इसी परम शक्ति के अनेक नाम हैं। यथा-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चन्द्रघन्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम
पंचमम स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः.
ये देवी की नौ मूर्तिया हैं। इनका नवरात्रियो मे पूजन किया जाता है। प्रथम दिन कलश स्थापन, ध्वजा रोहन आदि भक्ति पूर्वक करने चाहिये। घट्स्थापन के समय चित्रा तथा बैधृति योग हो तो त्याग देना चाहिये। नवरात्रि प्रयोग प्रारम्भ करने से पहले मंगल स्नान करके नित्य कर्म करे और स्थिर शान्ति के पवित्र स्थान में (यदि हो सके तो उत्तर पूर्व दिशओ मे) पवित्र मिट्टी से वेदी बनाये। उसमे जौ और गेहू मिलाकर बोयें। वहीं सोने चान्दी तावे या मिट्टी के कलश को स्थापित करके उसके ऊपर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके विधि पूर्वक गणेश जी का पूजन पुन्याह वाचन करे और देवी के समीप शुभासन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुह करके बैठ कर ”मम महामाया भगवती प्रीतये आयुर्बलावित्तारोग्य समादरा हि प्राप्तये नवरात्र व्रतमहं करिष्ये” से संकल्प करके निराहार, अल्पाहार, फलाहार या बिना नमक का एक बार भोजन या जैसा सुबिधानुसार नियम बन पडे बैसा लें। और प्रत्येक दिन क्रमशः निम्न देवियो की पूजा षोडसोप्चार से करें।
प्रथम दिन देवी शैल पुत्री की पूजा करें
द्वितीय दिन देवी ब्रह्मचारिणी की
तृतीय दिन देवी चन्द्रघण्टा की
चतुर्थ दिन देवी कुष्माण्डा की
पंचम दिन देवी स्कन्दमाता की
षष्ट्म दिन देवी कात्यायनी की
सप्तम दिन देवी कालरात्री की
अष्टम दिन देवी महागौरि की
और नवम दिन देवी दुर्गा की पूजा करें
इन नौ दिनो के दौरान पृथ्वी शयन, ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिये। दुर्गा सप्तशती का पाठ जागरण आदि मंगल कार्य करने चाहिए।
इन देवी व्रतों मे कुमारी पूजन परमावश्यक बताया गया है। यदि समार्थ्य हो तो प्रत्येक दिन कुमारी पूजन नौ दिनों तक और अगर सामर्थय न हो तो नवमी के दिन कुमारी कन्याओं के चरण धोकर उनकी गंध आदि पुष्पादि से पूजन करके मिष्टान आदि भोजन कराना चहिये। इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र व्रत करके दशमी को दशांश हवन, ब्राह्मण भोजन और विसर्जन करें। यह अपनी अपनी परम्परा अनुसार करें।
नवदुर्गा की उपासनाओ का म्हत्व सर्वोपरि है। जरूरत है श्रद्धा एवमं विश्वास की।
इन चमत्कारी मन्त्रों द्वारा विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है-
१.विपत्ति नाश के लिये
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते
२. रोग नाश के लिये
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्यश्रयतां प्रयान्ति
३ सन्तान प्राप्ति के लिये
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्य सुतान्वितः
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः
४. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरमां देहि मनो वृत्तानुसारिणीम
तारिणीम दुर्ग्संसारसागरस्य कुलोद्भवाम
५ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखं
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।