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मनोरथ पूरा करने वाली पटना की पटन देवी

3 अक्टूबर 2011
 
पटना। नवरात्र आरम्भ होने के साथ ही मां दुर्गा के मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगने लगती है। देश के शक्तिपीठों में भक्तों का नवरात्र के समय जनसैलाब उमड़ पड़ता है। पटना में ऐसा ही एक शक्ति पीठ हैं- 'पटन देवी'।

पटना में पटन देवी के दो मंदिर हैं। छोटी पटन देवी और बड़ी पटन देवी।

मान्यता है कि महादेव के तांडव के समय सती के शरीर के 51 खंड हुए थे। ये अंग जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित किए गए। इन्हीं शक्तिपीठों में एक है पटना में भगवती पटनेश्वरी। इन्हें छोटी पटन देवी के नाम से भी जाना जाता है। यहां मंदिर परिसर में मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की स्वर्णाभूषणों से जड़ित प्रतिताएं विद्यमान हैं।
छोटी पटन देवी ग्राम देवी के रूप में यहां पूजी जाती हैं, और प्रत्येक हिन्दू परिवार मांगलिक कार्य के बाद यहां अवश्य आता है। मान्यता के मुताबिक इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसे पटनदेवी खंदा कहा जाता है। कहा जाता है कि यहीं से निकालकर देवी की तीन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया था।

बड़ी पटन देवी भी शक्तिपीठों में से एक हैं। कहा जाता है कि यहां सती का दाहिना जांघ गिरा था। गुलजारबाग क्षेत्र में स्थित बड़ी पटन देवी मंदिर परिसर में काले पत्थर की बनी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा स्थापित है। इसके अलावा यहां भैरव की प्रतिमा भी है।

बुजुर्गो का कहना है कि अशोक काल में यह मंदिर काफी छोटा था। मंदिर की मूर्तियों को सतयुग का बताया जाता है।

मंदिर परिसर में ही योनिकुंड है, जिसके विषय में मान्यता है कि इसमें डाली गई हवन सामग्री भूगर्भ में चली जाती है। यहां हर रोज दिन में कच्ची और रात में पक्की का भोग लगता है। यहां प्राचीन काल से आ रही बलि की परंपरा आज भी विद्यमान है।

भक्तों की मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से यहां आकर मां की अराधना करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है। मंदिर के महंत विजय शंकर गिरी बताते हैं कि यहां वैदिक और तांत्रिक विधि से पूजा होती है।

वैदिक पूजा सार्वजनिक होती है, जबकि तांत्रिक पूजा मात्र आठ-दस मिनट की होती है। इस मौके पर विधान के अनुसार भगवती का पट बंद रहता है। वह बताते हैं कि सती का यहां दाहिना जांघ गिरा था, इस कारण यह शक्ति पीठों में एक है। वह कहते हैं कि यह मंदिर कालिक मंत्र की सिद्घि के लिए प्रसिद्घ है।

गिरी के अनुसार नवरात्रि में यहां महानिशा पूजा की बड़ी महत्ता है। उनका कहना है कि जो व्यक्ति अद्र्घरात्रि की पूजा के बाद पट खुलते ही 2.30 बजे आरती होने के बाद मां का दर्शन करता है, उसे साक्षात भगवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि की महाष्टमी और नवमी को दोनों मंदिरों में हजारों श्रद्घालु अपना मनोरथ पूरा करने के लिए आते हैं।


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