दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का अपना विशिष्ट महत्व है। दूसरे शब्दों में दीपावली का मुख्य अर्थ ही लक्ष्मी पूजन है। लेकिन, लक्ष्मी पूजन यदि सही विधि विधान से न हो, तो फल प्राप्ति मुश्किल हो जाती है। अष्टसिद्धि और नवनिधि की देवी महालक्ष्मी का पूजन सभी भौतिक काम में सफलता के लिए किया जाता है।
पूजा क्यों : दीवापली के मौके पर महालक्ष्मी और गणेश की पूजा का विशेष विधान है। कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जब सूर्य और चंद्र दोनों तुला राशि में होते हैं, तब दीवाली का त्योहार मनाया जाता है।
व्यापारी वर्ग अपनी दुकान या प्रतिष्ठान पर दिन में लक्ष्मी का पूजन करता हैं। दूसरी ओर गृहस्थ सांय प्रदोष काल में महालक्ष्मी का आह्वान करते हैं। गोधूलि लग्न में पूजा आरंभ करके महानिशीथ काल तक अपने-अपने अस्तित्व के अनुसार महालक्ष्मी के पूजन को जारी रखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि जहां गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक षटकर्म करते हैं।
पूजन का वक्त : लक्ष्मी पूजन स्थिर लग्न में ही करना उचित माना गया है। पूजन के वक्त सबसे अहम बात यह है कि प्रतिमाएं खंडित नहीं होनी चाहिए। चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गणेश जी के दाईं तरफ लक्ष्मी जी की स्थापना करें। गणेश जी को दुर्वा का और लक्ष्मी जी को कमल के फूल का आसन दें। गणेश जी को सफेद वस्त्र और लक्ष्मी जी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
इससे पहले, एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनाएं अथवा नवग्रह का यंत्र स्थापित करें। इसके साथ ही तांबे के कलश में गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढककर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें। जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया है वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति अथवा मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां अथवा चित्र सजा लें।
पूजन की सामग्री : महालक्ष्मी पूजन में केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए। सामग्री कितनी हो-इसका कोई विधान नहीं है। ये सब भक्त अपने सामर्थ के मुताबिक रखें।
दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि : लक्ष्मीपूजन करने वाले भक्त पूजा से पहले आचमन करें और तिलक लगाएं। सिर पर लाल रुमाल रखें। लाल रंग के ऊनी कंबल को आसन के रुप में इस्तेमाल करें। पूजा का संकल्प लें और सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें।
ऊं सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ:
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
ऊं गजाननं भूत गणादि सेवितं
कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम्
उमासुतं शोक विनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वर याद पंकजम्।
गणेश जी की पूजा अर्चना के बाद नवग्रहों का पूजन करें। हाथ में चावल और फूल लेकर नवग्रह का ध्यान करें-
ओम् ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशि भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।।
नवग्रह देवताभ्यो नम: आहवयामी स्थापयामि नम:।
इसके बाद कलश का पूजन करें-
इसके बाद शिव-पार्वती और अन्य देवताओं का ध्यान करें। फिर एक थाल में श्री यंत्र, कुबेर यंत्र और कनकधारा यंत्र व लक्ष्मी गणेश के चांदी के सिक्के रखकर उन पर फूल माला चढाएं। और महालक्ष्मी का आह्वान करें।
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे।
पूजन के बाद लक्ष्मी जी की आरती करना न भूलें। आरती के बाद प्रसाद का भोग लगाएं। इसी वक्त दीप का पूजन करें। तेल का दीया बाईं और घी का दीया दाईं तरफ रखें। दीप पूजन करने के बाद पहले मंदिर में दीपदान करें और फिर घर में दीए सजाएं। दीवाली की रात लक्ष्मी जी के सामने घी का दीया पूरी रात जलना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें।