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विवाद के लिए शरारती तत्व जिम्मेदार : सेना प्रमुख

7 अप्रैल 2012

नई दिल्ली |  सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने अपने और रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के बीच किसी तरह के मतभेद से इंकार करते हुए मौजूदा विवादों के लिए नौकरशाही में मौजूद शरारती तत्वों को जिम्मेदार ठहराया है।

जनरल सिंह ने काठमांडू में समाचार पत्र 'द हिंदू' से कहा, "कुछ भी गड़बड़ी नहीं है। मेरा वही रुख है, जो सरकार का है। हमारे अच्छे सम्बंध हैं और मंत्री के साथ मेरे कोई मतभेद नहीं हैं।"

अखबार ने कहा है कि सेना प्रमुख ने विवाद भड़काने के लिए नौकरशाही में मौजूद शरारती तत्वों को जिम्मेदार ठहराया है।

जनवरी में सेना की दो इकाइयों के कथितरूप से बिना सूचना के दिल्ली कूच करने से सम्बंधित विवाद के बाद जनरल सिंह ने किसी अखबार से पहली बार विशेष बातचीत की है।

जनरल सिंह ने कहा कि 16-17 जनवरी को सेना की दो इकाइयों का दिल्ली के लिए कूच करना एक नियमित गतिविधि थी और सरकार को इसके बारे सूचित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

जनरल सिंह ने कहा, "किस लिए सूचना दी जाती? क्या हो रहा था? हम ऐसा अक्सर करते रहते हैं।" उन्होंने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस में बुधवार को प्रकाशित रपट बेतुकी और दुखद थी।

यह पूछे जाने पर कि आखिर इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है, जनरल सिंह ने कहा कि वह इस बारे में सोचकर समय बर्बाद नहीं करना चाहते। लेकिन उन्होंने नौकरशाही के एक वर्ग की ओर उंगली उठाई।

सिंह ने कहा, "कई कहानियां चर्चा में हैं। एक अखबार में खबर थी कि यह सब एक केंद्रीय मंत्री के इशारे पर हो रहा है। नौकरशाही का एक वर्ग गलत सूचनाएं दे सकता है। उन्होंने राई का पहाड़ बना दिया है.. ईश्वर ही जानता है कि इसमें कौन लोग लिप्त हो सकते हैं, मैं इस बारे में सोचकर समय बर्बाद नहीं करना चाहता।"

जनरल सिंह ने अपनी जन्म तिथि को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के समय और सैनिकों के कूच के बीच किसी तरह का सम्बंध होने की बात भी खारिज कर दी। उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि सेना सरकार को डराने के लिए दिल्ली आ रही थी।

सिंह ने कहा, "आप सर्वोच्च न्यायालय जाते हैं। इसमें सरकार को डराने के लिए क्या है? ये सब रुग्ण मानसिकता की उपज है। जिस भी व्यक्ति को इसमें कोई सम्बंध दिखाई देता हो, उसे किसी मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए। मैंने लोकतांत्रिक संविधान में निहित नियमों का पालन किया और सर्वोच्च न्यायालय गया। इसमें संदेह की बात कहां बचती है?"


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