29 जून 2012
नई दिल्ली/अटारी (पंजाब)। पाकिस्तान की जेल में दशकों से कैद सरबजीत सिंह की रिहाई तो अंतिम क्षणों में टल गई, मगर सुरजीत सिंह को गुरुवार तड़के रिहा कर दिया गया। सुरजीत के परिवार और गांव में जहां जश्न का माहौल है, वहीं गम में डूबा सरबजीत का परिवार दिल्ली जंतर मंतर पर अनशन पर है। लोगों में संतोष इस बात का कि है कि पंजाब के रहने वाले दो शख्सों में से एक ही सही, स्वदेश तो लौट आया। अपने गृह प्रदेश में प्रवेश करने के लिए सुरजीत ने पाकिस्तान और भारत के बीच की निर्जन पट्टी को जैसे ही पार किया, सीमा पर अधिकारियों और बेटे कुलविंदर सिंह, बेटियां तथा अन्य रिश्तेदारों सहित परिवार के अन्य सदस्यों ने उनकी अगवानी की। उन्हें मालाएं पहनाई गईं और परिवार के सदस्यों तथा फिरोजपुर जिले के फिड्डे गांव के ग्रामीणों ने उन्हें गले लगाया। इस क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए दर्जनों फोटोग्राफर और मीडियाकर्मी वहां पहुंचे थे।
उधर, मृत्युदंड का सामना कर रहे भारतीय कैदी सरबजीत सिंह के परिवार ने गुरुवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन शुरू कर दिया। परिजनों ने सरबजीत की वापसी के प्रयास तेज करने के लिए सरकार से आग्रह किया और विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा से भी मुलाकात की। मंत्री ने पाकिस्तान की जेल से सरबजीत की रिहाई के लिए सरकार की तरफ से हरसम्भव उपाय किए जाने का आश्वासन दिया।
सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने गुरुवार को कृष्णा से मुलाकात के बाद कहा, "विदेश मंत्री ने बताया कि इस मुद्दे को कई बार पाकिस्तान के समक्ष उठाया गया है और अगले महीने होने वाली विदेश सचिव स्तर की वार्ता के दौरान भारत इस मामले को फिर उठाएगा। उन्होंने कहा कि भारत उन्हें पाकिस्तानी जेल में नहीं रहने देगा और मेरा भाई जल्दी ही रिहा हो जाएगा।"
वहीं, कृष्णा ने संवाददाताओं से कहा, "मुझे खुशी है कि सुरजीत सिंह रिहा हो गए हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि पाकिस्तान सरबजीत की रिहाई पर भी गम्भीरता से विचार करेगा।"
सरबजीत के परिवार के करीबी लोगों सहित 200 सौ से अधिक समर्थक जंतर मंतर पर जुटे। प्रदर्शन का आयोजन गाजियाबाद के सचकंद नानक धाम में रहने वाले सिख समुदाय के लोगों ने किया है। वे पोस्टर लिए हुए थे, जिन पर लिखा था, "पाकिस्तान, सरबजीत की रिहाई से पलटा क्यों?" प्रदर्शनकारी धरना स्थल पर गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ कर रहे हैं। आयोजकों ने कहा कि सरबजीत की रिहाई होने तक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा।
गौरतलब है कि पाकिस्तान मंगलवार रात सरबजीत की रिहाई की अपनी बात से पलट गया था। पूर्व में घोषणा की गई थी कि जरदारी ने सरबजीत की मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है और उसे रिहा किया जाएगा। बाद में राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा था कि सरबजीत के स्थान पर एक अन्य भारतीय कैदी सुरजीत सिंह को रिहा किया जाएगा। सुरजीत जासूसी के आरोपों में तीन दशक से पाकिस्तानी जेल में कैद थे।
पाकिस्तान की जेल से तीन दशक बाद छूटे सुरजीत सिंह का भारतीय सीमा में स्वागत के बाद उन्हें अमृतसर ले जाया गया, जहां उन्होंने स्वर्ण मंदिर यानी हरमिंदर साहिब के दरबार में मत्था टेका। उस वक्त उनका बेटा कुलविंदर और दोनों बेटियां व रिश्तेदार भी उनके साथ थे।
लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहाई के बाद यात्रा से थके 69 वर्षीय सुरजीत ने कहा, "30 साल बाद घर वापसी और अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों से मिलकर मैं बहुत खुश हूं।" उन्होंने परिवार के सदस्यों, मित्रों और समर्थकों के अलावा पाकिस्तानी सीमा के उन अधिकारियों को धन्यवाद दिया, जिन्होंने अटारी स्थित अतंर्राष्ट्रीय सीमा पर शून्य रेखा तक आकर उन्हें विदाई दी।
भारत की सरजमीं पर कदम रखने के तुरंत बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "मैं रॉ (अनुसंधान एवं विश्लेषण ईकाई) का एक एजेंट था। मेरी गिरफ्तारी के बाद किसी ने मेरी सुध नहीं ली। मुझसे ज्यादा सवाल न करें..।"
उन्होंने पत्रकारों से कहा, "पाकिस्तानी जेलों में भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार होता है। सरबजीत सिंह भी वहां अच्छे से हैं। उन्होंने मेरे साथ कोई संदेश नहीं भेजा है। यह मेरे ऊपर छोड़ दीजिए, मैं उन्हें रिहा कराऊंगा.. कृपया और प्रश्न न करें।"
रिहाई के मुद्दे पर पैदा हुई गलतफहमी को तूल न देते हुए उन्होंने कहा, "उर्दू में सरबजीत और सुरजीत की लिखाई लगभग एक जैसी होती है। इसी वजह से गलतफहमी हुई। अन्यथा, सभी को पता था कि मसला सिर्फ मेरी रिहाई का था।" उन्होंने कहा कि सीमा के दोनों तरफ की सरकारों को अपने यहां बंद कैदियों को रिहा कर देना चाहिए।
सुरजीत के 1982 में फिरोजपुर सेक्टर में सीमा के नजदीक से गायब हो जाने के बाद से उनके परिवार ने उन्हें दोबारा देखने की उम्मीद छोड़ दी थी और उन्हें मृत मान लिया था। फिरोजपुर जिले के फिड्डे गांव में सुरजीत की घर वापसी की खुशी में जश्न मनाया जा रहा है।