4 अगस्त 2012
नई दिल्ली। ज्यादातर फिल्मकार महसूस करते हैं कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) अब फिल्मी सामग्री को लेकर ज्यादा सख्त हो गया है, लेकिन निर्देशक दिबाकर बनर्जी मानते हैं कि अब बोर्ड ज्यादा उदार रवैया रखता है। दिबाकर ने यहां चल रहे 12वें ओशियंस सिनेफैन फिल्म महोत्सव से इतर आईएएनएस से कहा, "मुझे नहीं लगता कि सेंसर बोर्ड या सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सख्त हुए हैं। मैं उन्हें अधिक उदार होते हुए देख रहा हूं।"
सेंसर बोर्ड अंतरंग दृश्य, गालियों वाले दृश्य व उत्तेजित करने वाले दृश्य दिखाने के खिलाफ रहा है।
दिबाकर ने कहा कि बोर्ड ने उनकी पिछली फिल्म 'शंघाई' सिर्फ एक स्वैच्छिक कट के अलावा बिना किसी काट-छांट के जारी कर दी थी।
वह मानते हैं कि समस्या यह है कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले कुछ सामाजिक कार्यकर्ता उस पर खुद सेंसरशिप लगाने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि सेंसर बोर्ड फिल्मों को उतना सेंसर करता है जितना कि अन्य कार्यकर्ता करते हैं। यह हमारा अपना समाज है और हम खुद ही खुद को रोकते हैं।"
दिबाकर ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि हम सरकार की भूमिका को दोष दे सकते हैं और खुद को रुढ़िवादी, प्रतिक्रियावादी या खुद के पतन से डरने वाला बताने से बच सकते हैं।"
दिबाकर ने वर्ष 2006 में आई 'खोसला का घोसला' से बॉलीवुड में शुरुआत की थी। बाद में उन्होंने 'ओय लकी लकी ओय', 'लव सेक्स और धोखा' और 'शंघाई' जैसी फिल्में दीं।
दिबाकर स्वीकार करते हैं कि उनकी फिल्में बॉक्सऑफिस पर कमाल नहीं करतीं लेकिन उन्हें लगता है कि उनकी फिल्मी सामग्री को दर्शकों की प्रतिक्रिया मिलती है।
उन्होंने कहा कि उनकी फिल्में बॉक्सऑफिस पर ज्यादा सफल नहीं होतीं लेकिन जब लोग उनसे कहते हैं कि उन्हें फिल्म पसंद आई तो वह अकेलापन महसूस नहीं करते।
दिबाकर ने कहा, "लोग पैसा बनाने और लोकप्रियता के लिए फिल्में बनाते हैं और मैं उनसे अलग नहीं हूं। मैं अलग होना चाहता हूं। लेकिन कुछ ऐसा है जो 'शंघाई' या 'एलएसडी' जैसी फिल्मों से मिलना चाहिए।"
वर्तमान में दिबाकर दो पटकथाओं पर काम कर रहे हैं। इनमें से एक जासूसी रोमांचक फिल्म है।