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शक्ति स्तंभ की तरह थे अशोक मेहता : अपर्णा सेन

20 अगस्त 2012

मुंबई। जाने-माने सिनेमैटोग्राफर अशोक मेहता के साथ कुछ बेहतरीन फिल्म परियोजनाओं पर काम कर चुकीं प्रख्यात फिल्म निर्माता अपर्णा सेन ने मेहता के निधन को सिने उद्योग के लिए झटका करार दिया है। उनकी नजर में मेहता सिने उद्योग के एक शक्ति स्तंभ थे।


सेन ने कहा, "अंतिम बार उनसे मुलाकात मुंबई में अपनी फिल्म 'द जापानीज वाइफ' के प्रीमियर के दौरान हुई थी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि वे हमारे बीच नहीं रहे। मुझे पता ही नहीं था कि मेहता लंग कैंसर के मरीज थे। मुंबई से ज्यादा करीबी सरोकार न होने के कारण ही मैं मेहता के नियमित संपर्क में नहीं रह पाई। इसका मुझे हमेशा मलाल रहेगा।'


उन्होंने उनके निधन पर दु:ख जताते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे मैंने अपने अस्तित्व का एक अहम हिस्सा खो दिया है। सेन को मेहता के साथ काम करने का मौका 1981 में तब मिला जब उन्होंने '36 चौरंगी लेन' से अपने फिल्ममेकर करियर का आगाज किया।


वे कहती हैं, "उनके साथ काम करने का यह पहला मौका था। बाद में 'पैरोमा' और 'सती' के लिए भी हम दोनों ने साथ-साथ काम किया। हम कुछ और फिल्में एक साथ कर सकते थे, पर उस वक्त बंगाली फिल्मों का बजट सीमित होने के कारण उनकी सेवा जारी रखना कठिन था। मुझे मालूम था कि वे मेरे लिए अपनी फीस भी कम करने में नहीं हिचकते, तो भी हमारा बजट छोटा होता था।"


वे बताती हैं कि इस फिल्म के सिनेमैटोग्राफर के तौर पर गोविंद निहलानी पहली पसंद थे, पर उस वक्त वे रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' में उलझे थे। वे कहती हैं, "हमारे प्रोड्यूसर शशि कपूर ने मेरी राय जाननी चाही। हमने पहले ही निहलानी के लिए काफी इंतजार कर लिया था। शशि कपूर की सलाह पर मैंने कई और विकल्पों पर गौर किया। मेहता द्वारा शूट की गई फिल्म 'विटनेस' ने हमें खूब प्रभावित किया और मेहता हमारी पसंद बन गए।"


वे कहती हैं कि मेहता गहन सूझ-बूझ वाले सिनेमैटोग्राफर थे। उन्होंने कहा, "मैं फिल्म निर्माण के तकनीकी पक्षों से पूर्णत: अनभिज्ञ थी, वहीं मेहता इसकी बारीकियों से बखूबी परिचित थे। तब वे हमारे लिए शक्ति स्तंभ बनकर उभरे। उन्होंने हमारी पसंद का खाका दिमाग में बना लिया और हर डिटेल को बखूबी कैमरे में पूरी जीवंतता के साथ कैद किया। मैं उन्हें और उनके विजन को कभी नहीं भुला पाऊंगी। इस फिल्म को यादगार बनाने में उनकी खास भूमिका थी।"

 


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