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भारतीय अदालतों में हास्य भी : सुभाष कपूर
15 फरवरी 2013

नई दिल्ली। पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने सुभाष कपूर की आने वाली फिल्म 'जॉली एल.एल.बी.' भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक व्यंग्य है। कपूर कहते हैं कि भारतीय अदालत कक्षों के हास्य के क्षण आसानी से मिल जाते हैं। 90 के दशक में राजनीतिक पत्रकार रहे कपूर खबरों के सिलसिले में कई बार अदालत परिसरों में पहुंचे हैं।

कपूर ने मुम्बई से फोन पर आईएएनएस से कहा, "सालों से हिंदी फिल्मों में अदालत कक्ष का अलग संस्करण दिखाया जाता रहा है, जो 'गीता पे हाथ रख के कसम' के इर्द-गिर्द ही होता है. लेकिन मैंने वहां कभी भी गीता नहीं देखी। अदालतों के कक्ष लोगों से भरे हुए होते हैं। वहां अक्सर काम के बोझ से दबा एक न्यायाधीश होता है और अदालती प्रक्रियाओं से ऊब महसूस करने वाले कई अन्य लोग होते हैं।"

अदालत कक्षों की इसी वास्तविकता ने कपूर को एक फिल्म लिखने व उसका निर्देशन करने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने कहा, "मुझे यह स्वीकार करना पड़ा कि इन अदालत कक्षों में काफी मनोरंजन और हास्य होता है. इसलिए मैंने इसके इर्द-गिर्द एक व्यंग्य लिखने का निर्णय लिया। अदालतों में कभी-कभी स्थिति मजाकिया हो जाती है। न्यायाधीश रक्तचाप नियंत्रित करने की दवाएं लेते दिखते हैं तो लोग यहां-वहां दौड़ रहे होते हैं। वहां कई प्रकार के किरदार होते हैं जिनके बीच आप गम्भीर हास्य खोज सकते हैं।"

कपूर इससे पहले 2010 में 'फस गया रे ओबामा' बना चुके हैं। उनकी यह फिल्म वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर चुकी मंदी के गम्भीर प्रभावों पर एक व्यंग्य है।

'जॉली एल.एल.बी.' में अभिनेता अर्शद वारसी व बोमन ईरानी ने अभिनय किया है।

कपूर ने बताया कि फिल्म के 40 से 50 प्रतिशत हिस्से में अदालत कक्ष ही दिखाए गए हैं।

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