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नेशनल अवॉर्ड बाया एनएसडी !
25 मार्च 2013

नई दिल्ली। 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में यह बात फिर से खुलकर सामने आ गई कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) आज भी अभिनय में प्रशिक्षण प्रदान करने वाला सबसे सक्रिय संस्थान है। एनएसडी अपने विद्यार्थियों को न सिर्फ फिल्म नगरी मैं कैमरे के सम्मुख तथा पीछे, बल्कि रंगमंच पर भी उनकी प्रतिभा में निखार लाता है। 

हाल ही में हुए 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में एनएसडी के पांच विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

वर्ष 2012 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म 'पान सिंह तोमर' के लिए जहां निर्देशक तिग्मांशु धूलिया को सम्मानित किया गया, वहीं फिल्म के मुख्य अभिनेता इरफान खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान मिला। सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता तथा अभिनेत्री का सम्मान भी एनएसडी के दो विद्यार्थियों अन्नू कपूर तथा डॉली अहलुवालिया को मिले और विशेष ज्यूरी सम्मान से एनएसडी के ही नवाजुद्दीन सिद्दीकी को दिया गया।

फिल्म उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह ने एनएसडी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया है। एनएसडी अपने व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम, जिसके अंतर्गत निर्माण कार्य पर विशेष बल दिया जाता है तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय रंगमंच के परस्पर समन्वय के साथ-साथ पारम्परिक रंगमंच पर केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए जाना जाता है।

एनएसडी अपने छात्रों को स्टेज पर तथा परिकल्पना में किताबों से बाहर निकलकर मौलिक एवं नवीनतम प्रयोग करने तथा प्रयोगों के प्रति सजग रहने की दृष्टि प्रदान करता है।

संस्कृति मंत्रालय के अधीन 1975 में एनएसडी की स्थापना हुई। एनएसडी अपने छात्रों को तीन वर्ष का कोर्स कराता है जिसमें शारीरिक हाव-भाव, मार्शल आर्ट, अभिनय की सांस्कृतिक एवं पश्चिमी पद्धति तथा पारंपरिक रंगमंच में प्रशिक्षित किया जाता है।

एनएसडी की निदेशक अनुराधा कपूर ने आईएएनएस से कहा, "हम अपने छात्रों को अधिक से अधिक अभिनय प्रस्तावों तथा निर्देशन प्रस्तावों को सहजता एवं सजगता से स्वीकार करने के प्रति आश्वस्त करते हैं। एनएसडी का कोई बना-बनाया घराना नहीं है। यहां सभी छात्रों को स्वतंत्र रूप से अपनी कार्यकुशलता विकसित करनी तथा समझ बनानी पड़ती है। भारत में कई प्रकार की भाषाएं तथा परंपराएं हैं..आपके पास चुनाव करने के लिए बहुतेरे विकल्प हैं।"

कपूर बताती हैं कि एनएसडी से निकले हुए अधिकतर छात्रों ने जहां फिल्मों तथा टेलीविजन का रुख किया है, वहीं कई छात्र-छात्राएं देश के दूरदराज के इलाकों में जाकर वहां की क्षेत्रीय रंगमंच एवं नाट्य परंपरा को बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर रंगकर्म आंदोलन खड़ा कर रहे हैं।

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