भारत की तरफ से शांति प्रस्ताव स्वीकार न होने के चलते, भारत सरकार रॉ एजेंट विक्रम सिंह को श्रीलंका भेजती है, ताकि वो अन्ना भास्करन की ताकत को तोड़ सके और शांति कार्य को आगे बढ़ने दे। यहां एजेंट विक्रम की मुलाकात ब्रिटिश रिपोर्टर जया से होती है। उसकी मदद से विक्रम सिंह अंत में धोखा, पावर, लालच और षड्यंत्र की इस गुत्थी को तो सुलझा लेता है, लेकिन अपने ही सिस्टम में कमियों के चलते, अपने ही लोगों के धोखे के चलते, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री को नहीं बचा पाता। यानी पॉलिटिकल एक्सपोज़ की भी कहानी है मद्रास कैफे।
बढ़िया स्क्रीनप्ले के चलते ही कहानी ने हर मोड़ पर दर्शकों को बांधकर रखा है और आगे क्या होगा, यह जानने की इच्छा जगाई है। सोमनाथ डे और शुभेंदु भट्टाचार्य ने फिल्म की कहानी लिखी है।
तारीफ की बात है कि डायरेक्टर शुजीत ने हर किरदार को दिल से चुना है, क्योंकि उन्होंने अभिनय भी दिल से ही किया है। हर एक्टर अपने कैरेक्टर में फिट दिखा, फिर चाहे वो अजय रत्नम् हों, जिन्होंने फिल्म में अन्ना भास्करन का किरदार निभाया है और जिनकी शकल भी काफी हद तक वेलुपिल्लई प्रभाकरण से मिलती है, या फिर सिद्धार्थ बसु जो कहानी में विक्रम सिंह के बॉस और रॉ के प्रमुख मेंबर रॉबिन दत्त बने हैं। कोई भी किरदार कहानी के हिसाब से भटक नहीं रहा और इतनी परफेक्ट एक्टिंग की है कि आप एक बार के लिए इन्हें ही सच मान लेंगे। जैसे की Tinu Menachery जिन्होंने कहानी में सुसाइड बॉम्बर (मानव बम ) की भूमिका निभाई है।
बात करें जॉन की एक्टिंग की तो, इस फिल्म के प्रोड्यूसर जॉन ही हैं। ऐसे में उनका इतनी बेहतरीन स्क्रिप्ट के चलते लीड रोल में होना तय था। जॉन के करियर में भी यह नया एक्सपेरिमेंट है। डैशिंग और सेक्सी जॉन के लिए यह रोल इतना आसान नहीं था। हालांकि, जॉन के पास रॉ एजेंट वाली बॉडी तो है, लेकिन एक्सप्रेशन्स और दमदार हो सकते थे।
इस फिल्म का श्रेय सिर्फ एक्टर्स नहीं, बल्कि हर यूनिट मेंबर को जाता है, जिन्होंने एक सच्चे हादसे को ड्रामा बनाए बिना ही पेश किया। बात करें नरगिस की तो ब्रिटिश रिपोर्टर होने के चलते नरगिस के सारे डायलॉग्स अंग्रेज़ी में थे। ऐसे में नरगिस ने भी यह रोल आसानी से खींच लिया। फिल्म में जॉन की पत्नी का किरदार निभाया है न्यू कमर राशि खन्ना ने। इन्हें अपनी एक्टिंग क्लासेस और लेने की ज़रूरत है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी के लिए कमलजीत नेगी की तारीफ बिल्कुल होनी चाहिए। फिल्म की शूटिंग श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड, लंदन और भारत में हुई है। जाफना और भीतरी श्रीलंका के बड़े हिस्सों का निर्माण भारत में ही किया गया। श्रीलंका में शूट करना इतना आसान नहीं था, इसलिए तमिलनाडु और केरल में सबसे ज़्यादा शूटिंग हुई।
फिल्म के सेकेंड पार्ट की शूटिंग ज़्यादातर भारत में ही हुई। फिल्म का पहला भाग दक्षिण भारत में शूट किया गया। बाद का भारत के बाहर, दक्षिण भारत के कुछ भागों में और मुंबई में भी।
चंकि भारत में लाइट मशीनगनों से फायरिंग की अनुमति नहीं मिली, ऐसे में युद्ध के कई दृश्य बैंकॉक में शूट किए गए।
असली एके -47, 9 मिमी Berettas और M60s के इस्तेमाल के लिए विशेष अनुमति स्थानीय अधिकारियों से प्राप्त की गई।
इस सीरियस फिल्म का म्यूज़िक दिया है शांतनु मोइत्रा ने।
5 वजहें, क्यों देखें मद्रास कैफे
1- फिल्म में श्रीलंकन सिविल वार दिखाई गई है जो एक सच्ची घटना है और 27 साल तक चली थी। इसके बारे में जानना और इसकी फिल्म के ज़रिए कल्पना करने का बेड़ा उठाया है शुजीत ने। शुजीत ने फिल्म के लिए रिसर्च में कोई कमी नहीं छोड़ी। हर बारीकी को ध्यान में रखा है।
2- फिल्म के डायरेक्टर शुजीत सरकार ने इससे पहले सुपरहिट फिल्म विकी डोनर बनाई थी।
3- अगर आप लव स्टोरीज़ और बे-सिर पैर की कॉमेडी से बोर हो गए हैं, तो मद्रास कैफे इस हफ्ते ज़रूर देखने जाएं।
4- फिल्म में कहीं पर भी राजीव गांधी नाम नहीं लिया गया, लेकिन शुजीत खुद मानते हैं कि इस कहानी का वास्तविक संदर्भ है।
5- रॉकस्टार के बाद नरगिस को लोग दूसरी बार देखेंगे। इस बार नरगिस ने अपनी ग्लैमरस छवि से हटकर किरदार निभाया है।