26 अगस्त 2013
नई दिल्ली|
टेलीविजन और फिल्मी हस्ती जयंत कृपलानी के सफेद और भूरे रंग के बाल सभी को आकर्षित करते हैं। अपने हास्य से वह सभी को हंसाते हैं। लेकिन 'जी मंत्री जी' के अभिनेता जयंत से हास्य कार्यक्रमों के बारे में बातचीत में उन्होंने इन हास्य कार्यक्रमों को खारिज करत हुए कहा कि वे सिर्फ चुटकुले सुनाते हैं यह हास्य नहीं है।
एक साक्षात्कार में जयंत ने आईएएनएस से कहा, "यहां कोई हास्य नहीं होता। यहां सिर्फ नए चुटकुले सुनाए जाते हैं और चुटकुले सुनाना हास्य नहीं होता। एक चुटकुला, चुटकुला ही होता है। हास्य तो वह चीज है जो हमारे जीवन के किसी हिस्से से आता है।"
उन्होंने कहा, "एक कार्यक्रम में तीन मेजबान हैं जो आपको चुटकुला सुनने से पहले ही हंसाना शुरू कर देते हैं और चुटकुला खत्म होने तक लगातार हंसते रहते हैं और उसके बाद पता चलता है कि चुटकुले में हंसने लायक कुछ था ही नहीं! वह खराब हास्य होता है। हास्य एकदम अलग चीज है।"
जयंत का कहना है कि लोगों को हंसाने के लिए पहले खुद पर हंसने की योग्यता होनी चाहिए।
जयंत ने कहा, "वास्तविक जीवन पर हास्य बनाने वाले आखिरी कलाकार दिवंगत हास्य कलाकार जसपाल भट्टी थे। वह जो कहानियां कहते थे, उनमें हास्य था। व्यक्ति में पहले खुद पर हंसने की योग्यता होनी चाहिए उसके बाद उसे हास्यात्मक परिस्थतियों को मजेदार तरीके से कहना आना चाहिए।" उन्होंने कहा 'ये जो है जिंदगी' और 'जाने भी दो यारों' जैसी फिल्मों में हास्य था।
अंग्रेजी साहित्य में स्नातक जयंत ने थियेटर छोड़ने से पहले एक विज्ञापन एजेंसी में वरिष्ठ रचनात्मक निर्देशक के रूप में काम किया था।
उन्होंने कहा, "मैं वह व्यक्ति हूं जिसने स्वतंत्र रूप से काम किया और उसका आनंद लिया।"
उनकी स्वतंत्रता वाली छवि उनके उपन्यास 'न्यू मार्केट टेल्स' में भी दिखती है। यह उपन्यास ब्रिटिश साम्राज्य के समय के कोलकाता के 139 साल पुराने न्यू मार्केट पर लिखा गया है।
जयंत ने बताया, "न्यू मार्केट मेरे पालन-पोषण की जगह थी। वह स्थान जहां मैंने खाना खाया और बड़ा हुआ। उपन्यास में जितने चरित्र हैं, मैं उन सभी को जानता हूं, वे सब हमेशा मेरी यादों में थे।"
जयंत ने बताया कि साधारण भाषा में चरित्र का विस्तृत परिचय देने और दृश्य कल्पना की कला उन्होंने अपनी मां और बहन से सीखी है।