इस वर्ष राखी का त्योहार 15 अगस्त, 2019 को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार होता है। इस दिन बहन अपने भाई की लंबी उम्र और खुशहाल जिंदगी की प्रार्थना करती है और भाई की कलाई में राखी बांधती है। कहते हैं कि इस दिन बहन द्वारा बांधा गया एक पतला सा धागा इतना मजबूत और अनोखा होता है कि भाई को हर मुश्किल से बचाता है और नकारात्मक प्रभावों से उसकी रक्षा करता है। वहीं भाई भी अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है। यह त्यौहार इतना पवित्र होता है कि बहन अपने कुल और रिश्तेदारी के सभी भाईयों को राखी बांधती है। रक्षाबंधन का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं, यही कारण है कि इसे राखी पूर्णिमा भी कहते हैं। रक्षाबंधन के त्यौहार को कुछ क्षेत्रों में राखरी भी कहते हैं। यह सबसे बड़े हिन्दू त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार को जितनी हिंदू धर्म में मान्यता प्राप्त है उतना ही इसे जैन धर्म के लोग भी मानते हैं। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। आजकल बाजारों में कई फैन्सी राखियां भी मिलती है। लोग अपनी-अपनी पसंद के अनुसार इसे खरीदते हैं।
राखी बांधने का मुहूर्त : | 05:49:59 से 18:01:02 तक |
अवधि : | 12 घंटे 11 मिनट |
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त : | 13:44:36 से 16:22:48 तक |
रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास में अपराह्ण काल में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। कहते हैं कि इस तारीख को पड़ने वाले रक्षाबंधन का मुहूर्त बहुत शुभ होता है। ऐसी मान्यता है कि अपराह्ण काल में भद्रा हो तो रक्षाबन्धन नहीं मनाना चाहिए। ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए। जबकि यदि अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों के अगले दिन भी पूर्णिमा न हो तो रक्षा बंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल में मनाना चाहिए। इससे भाई और बहन की जोड़ी हमेशा बनी रहती है। हालांकि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे शहरों में अपराह्ण काल को अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है। इन जगहों में अक्सर मध्याह्न काल से पहले राखी का त्यौहार मनाने का चलन है। हालांकि हिंदू ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार भद्रा पड़ने पर रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाना चाहिए। इससे प्रतिकूल प्रभाव होने का डर रहता है। यदि ग्रहण सूतक या संक्रान्ति हो तो बिना परहेज के यह त्यौहार मना सकते हैं।
रक्षा बंधन का त्यौहार जितना पवित्र और स्वच्छ है उतने ही स्वच्छ इससे जुड़े नियम और कायदे भी हैं। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांधती हैं। इस दिन बहन अपने भाईयों की दीर्घायु, समृद्धि व ख़ुशी आदि की भगवान से प्रार्थना करती है। कहते हैं कि यदि रक्षाबंधन का त्यौहर पूरे तौर तरीकों के साथ मनाया जाए तो भाई बहन
की जोड़ी अमर हो जाती है। आज हम आपको कुछ ऐसे नियमों के बारे में बता हरे हैं जिन्हें हर किसी को अपनाना चाहिए। इन नियमों में रक्षा-सूत्र या राखी बांधते हुए पढ़े जाने वाले मंत्र से लेकर कई अन्य चीजें भी शामिल हैं।
“ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।”
अगर आप सोच रहे हैं कि यही मंत्र क्यों पढ़ा जाना चाहिए तो आपको बता दें कि इस मंत्र के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहते हैं कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से ऐसी कथा को सुनने की इच्छा प्रकट की, जिससे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हो। ऐसी चाहत के चलते श्री कृष्ण ने उन्हें कथा सुनाते हुए कहा कि प्राचीन काल में करीब 12 वर्षों तक देवों और असुरों के बीच एक युद्ध चला। ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि इस युद्ध में असुरों की विजय हो सकती है। दानवों के राजा ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर स्वयं को त्रिलोक का स्वामी घोषित कर लिया था और कहा कि अब उसे कोई नहीं हरा सकता है। दैत्यों के सताए देवराज इन्द्र गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंचे और उन्होंने उनसे समर्थन की मांग की। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा-विधान पूर्ण किया गया। सहयोग मांगने पर भगवान गुरु बृहस्पति ने ऊपर उल्लेखित मंत्र का पाठ किया, इस दौरान इन्द्र और उनकी पत्नी ने भी पीछे-पीछे इस मंत्र को दोहराया।
इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणों को रक्षा सूत्र बांधा और उनसे उनकी रक्षा करने का वचन भी लिया। रक्षा-सूत्र में शक्ति का संचार कराया और इन्द्र के दाहिने हाथ की कलाई पर उसे बांध दिया। कहते हैं कि इस रक्षा सूत्र के बल पर इन्द्र ने असुरों को हरा दिया और खोया हुआ शासन पुनः प्राप्त किया। तभी से यह त्यौहार भाई बहनों को समर्पित हो गया और आज यह हिंदू धर्म के बड़े त्यौहारों में से एक है। कुछ लोग इस दिन उपवास रखने की परंपरा को भी अपनाते हैं। कहीं-कहीं यह त्यौहार मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की याद में मनाया जाता है, जो भूल से राजा दशरथ के हाथों मारे गए थे। दक्षिण भारत में इस दिन श्रवण पूजन का चलन है।
रक्षाबंधन के त्यौहार से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इस त्यौहार से जुड़ी सबसे पुरानी कथा यह है कि एक दिन भगवान श्री कृष्ण के हाथ में चोट लगी थी और माता द्रौपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उनके हाथ में बांध दिया था। ऐसे में अपने प्रति द्रौपदी की इस उदारता और प्यार को देखते हुए भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उनकी रक्षा
करने का वचन दिया और कहा कि वह हर बुरे और अच्छे समय में उनके साथ रहेंगे। इसीलिए दुःशासन द्वारा चीरहरण की कोशिश के समय भगवान कृष्ण ने आकर द्रौपदी की रक्षा की थी। कहते हैं कि जब बहन अपने भाई के लिए कुछ करती है और भाई उसे रक्षा का वचन देता है तो वह सच हो जाता है।
इसके अलावा एक कथा यह भी प्रचलित है कि मदद हासिल करने के लिए चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमांयू को राखी भेजी थी। हुमांयू ने इस राखी को सम्मान के साथ स्वीकार किया और अपनी बहन को रक्षा का वचन देते हुए गुजरात के सम्राट से अपनी बहन की रक्षा की थी। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी ने सम्राट बाली की कलाई पर राखी बांधी थी।
रक्षाबंधन के दिन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना करने का नियम है। इस दिन लोग भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करते हैं। इस दिन लोग गंगाजल और भगवानों की मूर्तियां लेकर मीलों चलते हुए शिवजी को जल चढ़ाते हैं। इस दिन कंधे पर कांवर लेकर चलने का दृश्य बड़ा ही अनुपम होता है। इस यात्रा में बच्चे से लेकर बड़े तक हर कोई शामिल होता है। कई लोग तीर्थ स्थलों पर भंडारा भी आयोजित करते हैं। कहते हैं कि इस दिन गरीबों को भरपेट भोजन खिलाने से पुण्य प्राप्त होता है। इस मौके पर पंडित पुराहितों को भोजन कराया जाता है तथा दान-दक्षिणा दी जाती है। इस त्यौहार को पारिवारिक समागम और मेल-मिलाप बढ़ाने वाला त्योहार भी कहते हैं। इस अवसर पर परिवार
के सभी सदस्य इकट्ठे होते हैं और साथ में पाठ पूजा भी करते हैं। घर के छोटे बच्चे इस दिन नए वस्त्र पहनकर घर के आंगन में खेल-कूद करते हैं। वैसे तो आमतौर पर लोग इसे अपने घरों में मनाते हैं लेकिन यदि कोई इच्छुक हो तो इसे किसी धार्मिक स्थल या किसी पवित्र स्थान पर भी मना सकते हैं। इस मौके पर लोग एक पंडित को बुलाकर मंत्रों का
जाप कराते हैं और बहन भाई की कलाई में राखी बांधती है।
रक्षाबंधन के दिन बहनें प्रातःकाल उठकर स्नान अवश्य करें। इसके बाद भगवान की पूजा कर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधें। इस दिन मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की माला लगाएं और अपने घर में गंगाजल छिड़के। यदि आपके घर में इस दिन कोई मेहमान आता है तो उसका बिल्कुल भी अपमान न करें। रक्षाबंधन के दिन घर में तामसी भोजन से परहेज करना चाहिए और मदिरापान व धूम्रपान से भी दूर रहें।
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