भारत में तीज का त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। तीज का अर्थ होता है ‘तृतीया’। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। उत्तर भारत में इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। तीज व्रत सम्पूर्ण भारत में बहुत ही धूमधाम और श्रद्धापूर्वक मनाया जाने वाला पर्व है। उत्तर भारत में इस पर्व की खासी धूम होती है। सावन और भादो के महीने में आने वाला यह पर्व उत्तरी भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में मनाया जाता है। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसे विवाहित स्त्रियां रखती हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि तीज का व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं के घर में धन, संपत्ति और सुख तो आता ही है साथ ही संतान सुख भी प्राप्त होता है। तीज के अवसर पर प्रकृति की विशेष कृपा होती है। इस मौके पर प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर बिछा देती है। इस मौके पर लोग अपने घरों में गीत गाते हैं, र्कीतन कराते हैं और जगह-जगह मेले लगते हैं जहां बच्चों के लिए विशेष प्रकार के झूले और पकवानों का आयोजन होता है। इस त्यौहार की छटा देखते ही बनती हैं। कहते हैं कि जो स्त्री तीज का व्रत रखती है उसका सुहाग हमेशा सुरक्षित रहता है। तीज का पर्व तीन तरह का होता है। इनमें हरियाली, हरतालिका एवं कजरी तीज शामिल हैं।
तीज का पर्व सावन के महीने जुलाई-अगस्त में शुक्लपक्ष के तीसरे दिन मनाई जाती है। श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं। इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ मां पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। तीज का महत्व हिंदू धर्म में शिखर पर है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ था। माता पार्वती नियमित रूप से यह व्रत रखती थी, जिसके चलते वह सदा सुहागन रहीं और उन्हें हमेशा अपने पति का साथ मिला। ऐसे में कहा जाता है कि तीज का व्रत रखने से हर स्त्री को भगवान शिव जैसा जीवनसाथी मिलता है। तीज पर्व का सबसे बड़ा महत्व यह भी है कि यह व्रत रखने से पति की दीर्घायु होती है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर पाने की इच्छा से तीज का व्रत रख सकती हैं। हालांकि ऐसा बहुत कम कन्याएं करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिन शादीशुदा महिलाओं को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है इस व्रत को रखने के बाद वह पूरा हो जाता है। यह व्रत पारिवारिक सुख समृद्धि का प्रतीक है और महिलाओं के लिए सुख संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
हरियाली तीज
हरतालिका तीज
कजरी तीज
तीज तीन प्रकार की होती है। हरतालिका तीज, हरियाली तीज और कजरी तीज। तीनों तीज का अपना-अपना विशेष महत्व है। एक ओर जहां हरतालिका तीज, हरियाली तीज और कजरी तीज की अपनी अलग पूजा विधि है तो वहीं उनका पूजा करने का तरीका भी अलग है। ऐसी मान्यता है कि तीनों तीजों का उपवास रखने से सुहागिन स्त्रियों का सौभाग्य हमेशा बना रहता है तथा घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आइए जानते हैं क्या है इन तीन तरह की तीज का महत्व और पूजा विधि।
हरियाली तीज 2019 में 3 अगस्त को मनाई जाएगी। यह तीज उत्तर भारत के पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य में बहुत प्रचलित है। इन शहरों में लगभग हर सुहागिन महिला यह व्रत रखती है। इस पर्व के मौके पर प्रकृति चारों ओर हरियाली करती है इसलिए भी इसे हरियाली तीज कहते हैं। हरियाली तीज के मौके पर देशभर में मेले लगते हैं जहां बच्चे झूलों और पकवानों का आनंद लेते हैं। इस पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
तीज प्रारंभ | 3 अगस्त, 2019 | 01:37:23 बजे से |
तीज समापन | 3 अगस्त, 2019 | 22:06:45 बजे तक |
हरियाली तीज मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे और उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था। शिव जी के इस वाक्य से माता पार्वती इतनी प्रसन्न हुई कि उनके मन में खुशी की हरियाली छा गई और वह आनंद से झूम उठी। इसी कारण तृतीया तिथि को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। अन्य महिलाएं भी भगवान शिव की तरह पति पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं।
इस मौके पर महिलाओं के पास सोलह श्रृंगार करने और सजने संवरने का अच्छा मौका होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर शिव-पार्वतीजी की पूजा-अर्चना करती है तथा अपने पति की दीर्घायु और उसके मान-सम्मान के लिए प्रार्थना करती हैं। हमारे देश में सुहागिन महिलाओं के लिए उनके ससुराल से कपड़े आते हैं जिसे सिंधारा कहते हैं। इस दिन महिलाओं का अपने मायके जाने का रिवाज है। इस व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नृत्य करती हैं। इस दिन माता पार्वती की झांकी धूमधाम से निकाली जाती है।
पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का पुनर्मिलन हुआ था। इसलिए सुहागिन महिलाएं शिव जैसा पति पाने के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं महादेव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। हरियाली तीज की पूजा विधि इस प्रकार है—
सुबह जल्दी उठकर साफ पानी से स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
इस दिन घर की साफ सफाई कर घर को तोरण-मंडप से सजाना चाहिए। एक चौकी पर मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता पार्वती और उनकी सखियों की प्रतिमा बनायें।
मिट्टी की प्रतिमा बनाने के बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें।
हरियाली तीज की व्रत कथा की पूजा पूरी रात होती है। इस दौरान आस-पड़ोस की सभी महिलाएं मिलकर जागरण और कीर्तन करती हैं।
इस वर्ष यह पर्व 1 सितंबर, 2019 को मनाया जाएगा। हरतालिका तीज हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। श्रावण मास में आने के कारण ही इसे श्रावणी तीज कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। कन्याओं के लिए भी इस तीज का विशेष महत्व माना जाता है। इस मौके पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ ही भगवान गणेश जी की भी पूजा का विधान है। यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता है। कहते हैं कि भगवान शिव जैसा पति पाने के लिए माता पार्वती ने कठिन प्रतिज्ञा की थी।
प्रातः काल मुहूर्त | 5:58:51 से 18:31:45 बजे तक |
अवधि | 2 घंटे 32 मिनट |
प्रदोष काल मुहूर्त | 18:43:16 से 20:58:30 बजे तक |
हरतालिका तीज को मनाने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। सबसे पहला तो यह कि भगवान शिव जैसे संपन्न पति पाने के लिए हरतालिका तीज मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती की सहेलियों ने उन्हें छिपा रखा था तभी अचानक उनकी भगवान शिव से मुलाकात हुई। हरतालिका का यदि हम संधिविच्छेद करेंगे तो हरत मतलब अगवा और तालिका मतलब सहेली। अर्थात् सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों खासकर राजस्थान में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।
यह पर्व मुख्य रूप से महिलाओं के लिए सोलह श्रृंगार करने का मौका होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर में कन्या पूजन करने से घर में बरकत आती है और मां पार्वती का आर्शीवाद मिलता है। पति के साथ किसी धार्मिक स्थल की यात्रा करने से भी पति की लंबी आयु होती है और घर में खुख शांति होती है।
हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। अर्थात् यह वह समय होता है जब दिन और रात मिलते हैं। इस पूजा के लिए भगवान शिव, पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा बालू और काली मिट्टटी से बनाई जाती है। इन तीनों प्रतिमाओं को केले के पत्तों पर रखा जाता है। इस पूजा में एक विशेष प्रकार का कलश भी बनाया जाता है जिसके चारों और आम के पत्ते लगाए जाते हैं। कलश का इतना महत्व होता है कि सबसे पहले उसी की पूजा होती है। उसके बाद भगवान गणेश की पूजा की आती है और फिर भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस तरह हरतालिका पूजा विधि को संपन्न किया जाता है।
कजरी तीज को कजली तीज भी कहा जाता है। इस वर्ष यह पर्व 17अगस्त, 2019 को मनाया जाएगा। यह भादो मास की कृष्ण पक्ष को मनाई जाने वाली तीज है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि जुलाई या अगस्त के महीने में आती है। कजरी तीज का व्रत ज्यादातर शादीशुदा महिलाएं ही रखती हैं। इस त्यौहार की धूम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत उत्तराखंड जैसे अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में देखी जाती है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इसे बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज भी कहते हैं। हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है। कहते हैं कि कजरी व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है और पारिवारिक जीवन में भी सकारात्मकता आती है। इस वर्ष 18 अगस्त को कजरी तीज का पर्व मनाया जा रहा है।
तीज प्रारंभ | 17 अगस्त, 2019 | 22:50:07 बजे से |
तीज समापन | 17 अगस्त, 2019 | 01:15:15 बजे तक |
कजरी तीज को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं जिम्मेदार हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मध्य भारत में एक घने जंगल का नाम कजली था। इस जंगल के आसपास के क्षेत्र पर राजा दादूरई का शासन था। दादूरई के आदेशों पर ही यह क्षेत्र चलता था। यहां रहने वाले लोग खूब गाना बजाना करते थे, ताकि इससे उनके क्षेत्र का नाम मशहूर हो सके। कुछ समय बाद राजा दादूरई का निधन हो गया। इसके बाद उनकी पत्नी ने भी खुद को सती प्रथा के तौर पर अर्पित कर मृत्यु को गले लगा लिया था। रानी का अपने पति के प्रति यह प्यार देखकर लोग उन्हें कजरी के रूप में सम्मानित करने लगे। तभी से कजरी तीज मनाई जाती है। इसके अलावा इस दिन माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। क्योंकि यह तीज अपने पति के प्रति प्यार और समर्पण को दर्शाती है।
कजरी तीज महिलाओं के लिए बहुत खास होती है। हालांकि इस तीज का महत्व हरतालिका के जितना नहीं होता है लेकिन फिर भी इस तीज में महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और अपने पति व बच्चों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान करती हैं ओर फिर श्रृंगार करती हैं। इसके बाद वह मंदिर जाती हैं, जहां वह एक दीपक जलाकर भगवान से प्रार्थना करती हैं। कुछ महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत भी रखती हैं, हालांकि ऐसा कोई खास नियम नहीं है। रात में महिलाएं शिव-पार्वती का श्रंगार करती हैं और अपने घर में कीर्तन भजन करती हैं। कई जगहों पर शादीशुदा महिलाएं अपने सास ससुर और ससुराल के अन्य लोगों को उपहार भेंट करती हैं। महिलाओं द्वारा दिए जाने वाले इन उपहारों को सिंधारा या श्रिजनहारा भी कहते हैं।
कजरी तीज की पूजा विधि बहुत खास होती है। इसमें नीमड़ी माता की पूजा करने का नियम है। पूजा करने से पहले एक दीवार पर मिट्टी व गोबर से तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है। इसके चारों ओर नीम की टहनियों को रोपा जाता है। मिट्टी से बनाए इस तालाब में कच्चा दूध और जल डाला जाता है और इसके किनारे घी का दीपक जलाने का भी विधान है। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं। इतना ही नहीं एक लोटे में कच्चा दूध रखकर और सोलह श्रृंगार रखकर माता नीमड़ी की पूजा की जाती है।
पूजा आरंभ करने से पहले माता नीमड़ी को जल चढ़ाएं और रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं।
अब नीमड़ी माता के पीछे एक दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदू बनाइए और उन्हें अंगुली से सजाएं। याद रखें यह बिंदू अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगाएं।
अब नीमड़ी माता को मेहंदी और काजल लगाकर उन्हें वस्त्र चढ़ाएं। नीमड़ी माता को कोई फल या दक्षिणा चढ़ाएं। कजरी तीज के अगले दिन इन फल और दक्षिणा को कन्याओं में दान करें।
हम उम्मीद करते हैं कि तीज से संबंधित हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हमारी ओर से आप सभी को तीज पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं !