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आतंकवाद पर दुनिया से आखिर कैसा समर्थन चाहता है पाकिस्तान?

पाकिस्तान इन दिनों आतंकवाद को लेकर भीषण संकट के दौर से गुज़र रहा है। पाकिस्तान में आतंकवाद न केवल गत् तीन दशकों से संरक्षित,फल-फूल व पनप रहा है बल्कि पाकिस्तान में अपनी जड़ें गहरी कर चुके इस आतंकवाद को लेकर स्वयं पाक शासक भी अब अपनी बेचारगी का इज़हार करते हुए दुनिया से बार-बार यह कहते फिर रहे हैं कि 'दुनिया में पाकिस्तान तो स्वयं आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार है।' ज़ाहिर है पाकिस्तान को बारूद के इस ढेर तक ले जाने में किसी अन्य देश की उतनी भूमिका नहीं रही है जितनी कि स्वयं पाकिस्तान हुकूमत वहां के हुक्मरानों की या उनकी गलत नीतियों की रही है। और इन शासकों की गलत नीतियों ने ही आज के हाकिमों को इस बात के लिए मजबूर किया है कि वे अपने देश में फैले आतंक वाद से निपटने के लिए स्वयं को असमर्थ समझें तथा दुनिया से मदद की दरकार करें। गत् 2 मई को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में स्थित राष्ट्रीय सैन्य अकादमी के निकट एबटाबाद में अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लाडेन को अमेरिकन कमांडो द्वारा मारे जाने के बाद पाकिस्तान के शासकों से दुनिया को जवाब देते नहीं बन पा रहा है। पाकिस्तान की अवाम तथा हुक्मरान इन दिनों अपनी अलग-अलग किस्म की उलझनों के शिकार हैं। पाक नागरिक इस बात को लेकर बड़े अचंभे में हैं कि आखिर इस्लामाबाद में आकर अमेरिकी कमांडो लाडेन को मार कर उसकी लाश अपने साथ लेकर चले भी गए और पाकिस्तानी सेना,सुरक्षा तंत्र, खुफिया तंत्र  तथा निगरानी तंत्र कुछ भी न कर सका। पाकिस्तान अवाम इसे पाक संप्रभुता पर अमेरिकी सैनिकों का सीधा हमला मान रही है।

कहने को तो पाक शासक भी सार्वजनिक रूप से मजबूरन पाक अवाम की ही भाषा बोल रहे हैं। परंतु उनकी इस ललकार में कोई दम हरगिज़ नहीं है। क्योंकि अमेरिका न सिर्फ इस्लामाबाद में ओसामा बिन लाडेन को मार गिराने के लिए किए गए आप्रेशन जेरोनिमो को उचित ठहरा रहा है बल्कि यह भी कह रहा है कि ज़रूरत पडऩे पर ऐसी ही कार्रवाई पाकिस्तान में दोबारा भी की जा सकती है। यही नहीं बल्कि लाडेन को मारने के अगले ही दिन अमेरिका ने पाक सीमा के भीतर आतंकवादियों को निशाना बनाकर ड्रोन विमान से हमला भी किया। हां इतना ज़रूर है कि पाक सेना ने पाकिस्तानी अवाम को दिखाने के लिए तथा उनका हौसला बढ़ाने के लिए पिछले दिनों अफगानिस्तान सीमा के निकट वायुसीमा का उल्लंघन करने के नाम पर एक अमेरिकी हेलीकॉप्टर पर  गोलीबारी ज़रूर की। यह अलग बात है कि इसके जवाब में अमेरिकी हेलीकॉप्टर से भी गोलियां बरसाई गईं जिससे कई पाकिस्तानी सैनिक घायल हो गए। यही नहीं बल्कि लाडेन की मौत के बाद अमेरिका व पाक के मध्य उपजे तनावपूर्ण वातावरण के बीच गत दिनों अमेरिकी सीनेटर जॉन कैरी ने पाकिस्तान का दौरा किया। उन्होंने भी दो टूक शब्दों में पाकिस्तान को यह बता दिया कि अमेरिका को आप्रेशन जेरोनिमो करने में न कोई अफसोस है न शर्मिंदगी। और वे इसके लिए माफी मांगने पाकिस्तान नहीं आए हैं।
 
उपरोक्त हालात में पाकिस्तानी शासकों को यह मंथन ज़रूर करना चाहिए कि पाकिस्तान को आज इस नौबत का सामना आखिर क्योंकर करना पड़ रहा है। आज केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को इस बात का लगभग यकीन हो चुका है कि पाकिस्तान आतंकवाद का दुनिया में सबसे बड़ा पोषक संरक्षक तथा इसकी पनाहगाह है। विश्व मीडिया तो पाकिस्तान को 'आतंकवादियों का स्वर्ग' कहकर संबोधित करने लगा है। पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों के प्रशिक्षण केंद्र व शिविर इस समय पूरी दुनिया की नज़रों में हैं। अब यदि यह आतंकी शिविर पाकिस्तान में बेरोक-टोक व बेखौफ संचालित हो रहे हैं तथा इनके सरगऩा व आक़ा पाकिस्तान में खुलेआम सशस्त्र आतंकियिों के साथ घूमते फिर रहे हैं और कहीं-कहीं तो इन्हें पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई जा रही है। फिर आखिर पाकिस्तान के इन सब हालात के लिए कोई दूसरा देश कैसे और क्यों जि़ मेदार हो सकता है। पाकिस्तान में लाडेन की गत् 5 वर्षों से मौजूदगी प्रमाणित होने के बाद यह पहला अवसर था जबकि पाकिस्तान को दुनिया को यह दिखाना पड़ा कि हम आतंकवाद को लेकर गंभीर हैं तथा इस विषय को लेकर पाकिस्तान पर लगने वाले  आरोपों को लेकर अत्यंत चिंतित हैं।

इसी गरज़ से पाक संसद का विशेष सत्र पिछले दिनों बुलाया गया तथा आईएसआई प्रमु ा शुजा पाशा को संसद में पेश किया गया। संसद में हुई इस कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग भी की गई। आईएसआई प्रमुख शुजा पाशा पर तमाम संासदों ने सवालों की झड़ी लगा दी। अधिकांश सांसदों के प्रश्र इसी विषय को लेकर थे कि आई एस आई व आतंकवाद तथा आईएस आई व अलकायदा के मध्य गुप्त समझौते का आखिर क्या औचित्य है? ऐसा है या नहीं और है तो क्यों? तथा किन हालात में पाकिस्तान को दुनिया में इतनी रुसवाई, अपमान का सामना करना पड़ रहा है,आदि? शुजा पाशा सांसदों के सवालों में इस कद्र घिरे कि आजिज़ होकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश तक कर डाली। जिसे प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी ने अस्वीकार कर दिया। गिलानी ने खुलकर आई एस आई तथा पाक सुरक्षा व्यवस्था व सरकार की पैरवी की। उन्होंने दुनिया के इन इल्ज़ामों को खारिज किया कि अमेरिका द्वारा पाकिस्तान में ओसामा बिन लाडेन को मारा गिराया जाना पाकिस्तान सुरक्षा व्यवस्था की अक्षमता व अयोग्यता को दर्शाता है। गिलानी ने आईएसआई व अलकायदा के मिलीभगत के आरोपों का भी खंडन किया। दूसरी तरफ़ इन सबके बीच पाक तालिबानों ने पाक सुरक्षाकर्मियों का निशाना बनाकर एक बड़ा धमाका किया जिसमें 80 से अधिक लोगों की मौत हो गई। तालिबानों ने धमाके के बाद यह संदेश भी दिया कि यह घटना लाडेन की मौत के बदले की शुरुआत है।

पाकिस्तान लगभग प्रतिदिन किसी न किसी आतंकवादी घटना का शिकार बनता रहता है। आत्मघाती दस्तों की पाकिस्तान में गोया बाढ़ सी आ गई है। उधर 9/11 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद इसी पाकिस्तान ने आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका को सहयोग देने के नाम पर अरबों डॉलर तथा हथियारों का बड़ा ज़खीरा हासिल कर लिया है। अब क्या इसे महज़ एक इत्तेफाक समझा जाए या फिर पाकिस्तान हुक्मरानों की सोची-समझी साजि़श अथवा रणनीति कि जबसे पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर अमेरिका से पर्याप्त धन व शस्त्र लेता आ रहा है लगभग इसी समयावधि के दौरान पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के पास शस्त्रों का भंडार भी बढ़ता जा रहा है तथा यह ताकतें आर्थिक रूप से भी दिन-प्रतिदिन सुदृढ़ होती जा रही हैं। ऐसे में क्या पाक शासकों को दुनिया को इस बात का स्पष्टीकरण नहीं देना चाहिए कि आतंकवाद के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध में पाकिस्तान का रचनात्मक रूप से क्या योगदान रहा है। और जब बात ओसामा बिन लाडेन को मारने की आई तो इसकी पूरी गुप्त योजना व मिशन अमेरिका ने अकेले तैयार किया तथा पाकिस्तान को इस आप्रेशन की कानों-कान भनक तक नहीं लगने दी। यानी लाडेन की पाकिस्तान में मौजूदगी ने पाकिस्तान को जितना शर्मसार किया उतना ही शर्मनाक पाकिस्तान के लिए यह भी रहा कि अमेरिका ने पाक सुरक्षा तंत्र को अविश्वास के चलते इस आप्रेशन की कानों-कान भनक तक नहीं लगने दी। अब आप्रेशन जेरोनिमो के बाद पाकिस्तान के हालात इस हद तक बदतर हो गए हैं कि अमेरिकी कार्रवाई से भयभीत पाक शासक अपनी खिसियाहट भारत जैसे शांति व अहिंसा के पुजारी समझे जाने वाले पड़ोसी देश पर उतार रहे हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो अफगानिस्तान में भारतीय जनता के भारी दबाव के बावजूद गत् दिनों यह बयान दे रहे थे कि भारत अपने वांछित भगोड़ों को भारत लाने के लिए एबटाबाद जैसी किसी कार्रवाई का कोई इरादा नहीं रखता तो इसके जवाब में आई एस आई प्रमुख शुजा पाशा फरमाते हैं कि भारत ने यदि एबटाबाद जैसी कार्रवाई की तो उसका माकूल जवाब दिया जाएगा। तथा भारत पर हमला कर दिया जाएगा। शुजा पाशा ने यह तक कहा कि भारत में उन लक्ष्यों की पहचान भी कर ली गई है जहां पाकिस्तान को हमला करना है। अब यहीं से गौर कीजिए पाकिस्तानी हुक्मरानों व जि़ मेदार लोगों के वक्तव्यों में कितना अंतर्विरोध छुपा हुआ है। अमेरिका एबटाबाद कार्रवाई के बाद पुन: ऐसी ही कार्रवाई करने की बात कर रहा है तथा जॉन कैरी पाकिस्तान में आकर भी अमेरिका की आतंकवाद के विरुद्ध आक्रामक नीतियों पर अडिग दिखाई देते हैं तब भी पाकिस्तानी शासक अमेरिका के आगे भीगी बिल्ली बने रहते हैं जबकि भारत को आंखें दिखाने में वे अपनी बहादुरी समझते हैं। पाकिस्तान के शासक 1971 के दुनिया के अब तक के सबसे बड़े सैन्य समर्पण को भी बड़ी जल्दी भूल जाते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भी यह महसूस करते हैं कि पाकिस्तान को भारत को अपना दुश्मन न० 1 नहीं समझना चाहिए। उधर प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी इन्हीं हालात के बीच फिर आतंकवाद के विरुद्ध लडऩे में पाकिस्तान को सहयोग देने की दुनिया से अपील करते हैं। ऐसे में क्या यह सवाल मुनासिब नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद के विरुद्ध दुनिया से किस प्रकार के सहयोग की उ मीद करता है? क्या पाकिस्तान को आतंकवाद के नाम पर लडऩे के लिए दुनिया से सिर्फ पैसा और हथियार ही चाहिए? यदि हां तो इसके पिछले परिणाम ठीक नहीं रहे हैं। और यदि अमेरिका एबटाबाद जैसी कार्रवाई कर लाडेन जैसे दुनिया के सबसे बड़े आतंकी सरगऩा व इस्लामी दुश्मन ओसामा बिन लाडेन को मार गिराए तो यही पाकिस्तान इस कार्रवाई को अपनी संप्रभुता पर हमला भी बताने लगता है। ऐसे में पाकिस्तान को दुनिया के सामने एक ऐसा चार्टर्ड पेश करना चाहिए जिससे दुनिया यह जान सके कि आतंकवाद के विरुद्ध परिणामदायक युद्ध लडऩे के लिए पाकिस्तान को दुनिया से आखिर किस प्रकार के सहयोग की दरकार है?

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