कुछ और प्रपंचतंत्र कहानियां
देखकर भौंको
आलोक पुराणिक
कुत्ता कथा -1
एक समय की बात है, एक नगर में एक घर था, उसमें दो कुत्ते निवास करते थे। कुत्तों के स्वामी एक कंपनी में मझोंले लेवल के बास थे, यानी कुछ उनके ऊपर काम करते थे और बहुत सारे नीचे काम करते थे।
एक कुत्ता विशुद्ध कुत्ता था, यानी वह हरेक पर भौंकता था।
बास के बास आयें, उन पर भी भौंकता था, बास के जूनियर आयें, उन पर भी भौंकता था।
हर हाल में भौंकता था।
बास के बास के कुत्तों पर एक बार वह इतनी जोर से भौंका कि बास के बास नाराज हो कर चले गये।
दूसरा कुत्ता स्मार्ट था, वह सूंघ लेता था कि अगर कौन बास का जूनियर है और कौन बास का बास। वह बास के बास और उनके कुत्ते के आगे आटोमैटिक दुम हिलाने लग जाता था।
उसकी ऐसी हरकत देखकर विशुद्ध कुत्ता नंबर एक कहता था कि ये क्या हरकत है। हम कुत्ते हैं, हमारा धर्म है हरेक पर भौंकना। हर कुत्ते पर भौंकना, तू बास के कुत्ते के आगे दुम हिलाने लगता है और जूनियरों के कुत्तों को देखकर दहाड़ने लगता है। लानत है तेरे कुत्ते पर।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता था-देख हम कुत्तों को वक्त के हिसाब से चलना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि बास किस बात से खुश होता है। हमारी नौकरी सिर्फ भौंकने की नहीं है, हमारी नौकरी बास को खुश करने की है। इस बात को समझना चाहिए।
इस पर विशुद्ध कुत्ता कहता, नहीं मैं कुत्तागिरी नहीं छोड़ूंगा। हरेक पर भौंकूंगा।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता-पछतायेगा, वक्त के साथ नहीं बदलेगा तो पिटेगा।
एक दिन बास के बास घर पर आये। उनके साथ उनका बेटा भी आया। बेटा जमाने के चालू चलन के हिसाब से लफंटूश था कभी-कभार चोरी-चकारी में भी हाथ आजमा लेता था। उसने मेजबान के घर में पड़ा एक बहुत फूं-फां किस्म का मोबाइल पार कर लिया।
विशुद्ध कुत्ते और दूसरे कुत्ते दोनों ने इसे सूंघ लिया।
विशुद्ध कुत्ते ने मार मचा दी। उसने बास के बास के बेटे को घसीट दिया, उसकी जेब से मोबाइल निकला। बास के बास बहुत शर्मिंदा हुए। वह मेजबान से नजर नहीं मिला पा रहे थे।
अगले दिन, अगले दिन, कुत्तों के स्वामी ने घर लौटकर विशुद्ध कुत्ते को बहुत पीटा, ठोंक-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। बास ने इसकी वजह अपनी बीबी को यह बतायी-इसकी वजह से मेरा ट्रांसफर हो गया है। बास ने आज मुझे बुलाकर कहा कि कल तुम्हारे एक कुत्ते ने जिस तरह से मेरे बेटे को चोर साबित किया है, वह मेरे लिए शर्मनाक है। कल के हादसे मैं तुमसे नजर नहीं मिला पा रहा हूं। अब या तो तुम इस दफ्तर से जाओ या मैं। चूंकि मैं बास हूं, इसलिए तुम्हे जाना पड़ेगा। मैं तुम्हारा ट्रांसफर जाजऊ नामक कस्बे में करता हूं।
ठुक-पिटकर घर से बाहर निकला विशुद्ध कुत्ता जाते-जाते दूसरे कुत्ते से कहा, मित्र इस घर से निकलते हुए मुझे ये समझ में आ गया है कि कुत्तेगिरी में अगर कुछ आदमीगिरी नहीं मिलायी जाये, तो मामला सीरियस हो जाता है।
हमेशा देखकर भौंकना बनना चाहिए, बास के बास के बंदों पर कभी भी नहीं भौंकना चाहिए।
कुत्ते की असली नौकरी भौंकने की नहीं, हर हाल में बास को खुश रखने की होती है।
कुत्ता कथा-दो
खैर साहब विशुद्ध कुत्ता घर से निकल बाहर भटकने लगा। बहुत ही परेशान था।
घर में रहने वाले कुत्तों को घर से निकल ही पता लगता है कि दुनिया कितनी सख्त है। उसे समझ में आ गया कि दुनिया में फ्री में अगर कुछ मिलता है, वो हैं गालियां। इसके अलावा कुछ भी फ्री नहीं मिलता।
विशुद्ध कुत्ता बहुत ही परेशान होकर दुखी रहने लगा।
शराफत का मारा विशुद्ध कुत्ता किसी से खाना मांगने में भी शरमाता था। चूंकि वह बहुत अच्छे दिन देख चुका था, इसलिए सड़क के ज्यादातर आवारा कुत्ते उससे ईर्ष्या का भाव रखते थे। जिस भाव से नये मारुति 800 वाले पुराने मर्सीडीज वालों को देखते थे,उसी भाव से सड़क के आवारा कुत्ते उसे देखते थे। बहूत परेशान विशुद्ध कुत्ता समझ नहीं पाता था कि आखिर कैसे जीवनयापन किया जाये।
विशुद्ध कुत्ता सड़क के कई आवारा कुत्तों को देखकर याद करता कि अरे, इसे तो मैंने तब दौड़ाया था, इस पर मैं तो तब भौंका था।
कुल मिलाकर विशुद्ध कुत्ते के दिन बहुत खराब बीत रहे थे।
उससे कोई पूछता कि यहां कैसे आ गये।
तो इस सवाल का भी वह सच्ची-सच्ची जवाब दे देता था।
लोग और हंसते थे कि देखो कैसा डबल बेवकूफ है। पहले तो बेवकूफी में घर से बाहर हुआ, उसके बाद अपनी बेवकूफी बताता और है हा हा हा हा।
ऐसे ही दुखी दिन गुजारता हुआ विशुद्ध कुत्ता आवारा भटक रहा था कि।
कि एक दिन एक बुद्धिजीवी टाइप कुत्ते से उसकी मुलाकात हो गयी। बुद्धिजीवी बोले, तो वो कुत्ता हर बात पर नो बोलता था। बेमतलब भौंकता था। रह-रहकर झपटता था, किस पर, यह साफ नहीं हो पाता था। उसने विशुद्ध कुत्ते की कहानी सुनी और बोला-ऐसे काम नहीं चलेगा। तुम ऐसे बोलो, तुम निकाले नहीं गये हो, तुम अपनी मरजी से वहां से आये हो। तुम एक्सपेरीमेंट्स कर रहे हो, फ्राम हाऊस टू रोड्स। इस विषय पर सेमिनार देने के लिए तुम्हे तमाम कुत्तों के बीच बुलाया जायेगा। तुम बताओ कि तुमने एक्सपेरीमेंट्स के लिए शानदार घर की सुविधाएं छोड़ दीं और रोड के कुत्तों के बीच आ गये। डीयर, लाइफ में आगे जाने का फंडा यह है कि अगर प्राबलम में आ जाओ, तो हमेशा यह कहना चाहिए कि ऐसा तो हमने अपनी चाइस से किया है। अपनी इच्छा से किया है, एक्सपेरीमेंट्स के लिए किया है। किसी का माल पार करते हुए पकड़े जाओ और जेल भिजवा दिये जाओ, तो बताओ जेल जाना तो तुम्हारे एक्सपेरीमेंट का हिस्सा है। ऐसा करने से तुम्हारी वैल्यू बढ़ जायेगी, तुम्हे विदेशों तक सेमिनारबाजी के लिये बुलाया जायेगा। अब एक काम करो, इस इलाके से तिड़ी हो जाओ, मुंबई जाने वाली ट्रेन में बैठकर, मुंबई जाकर अपने तजुरबे सुनाओ-फ्राम हाऊस टू रोड्स। चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।
थोड़े दिनों बाद बुद्धिजीवी कुत्ता मुंबई किसी सेमिनार में भाग लेने गया, तो उसने देखा दिल्ली का विशुद्ध कुत्ता फुल मौज में है और सोसाइटी फार कुत्ता एक्सपेरीमेंट्स का अध्यक्ष हो गया है। दिल्ली के बुद्धिजीवी कुत्ते को देखते हुए मुंबई के अध्यक्षजी ने उसके पैर छुए औऱ बोले-हे मित्र मुझे तुमसे ये शिक्षाएं मिलीं हैं- 1-कभी भी सच नहीं बोलना चाहिए।
2-चोरी करते हुए पकड़ जाओ, तो भी बताओ कि एक्सपेरीमेंट कर रहे हैं।
3 -चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।
आदेशपालू और शंकालु की कहानी
आलोक पुराणिक
साहित्य विद्यापीठ में आचार्य टनाटन के दो शिष्य थे।
एक का नाम था-आदेशपालू औऱ दूसरे का नाम था शंकालु।
आदेशपालू जैसा कि नाम से क्लियर है-गुरुवर के समस्त आदेशों का पालन किया करता था। पर शंकालु का मामला अलग था। शंकालु किसी के भी आदेश का पालन यूं ही नहीं किया करता था। वह पहले चैक कर लिया करता था कि आदेश वास्तव में पालन करने योग्य है कि नहीं। आदेश से अपना फायदा कितना होगा।
दोनों में परस्पर इस मसले पर चर्चा हुआ करती थीं कि गुरुजनों की कितनी बातें माननी चाहिए।
आदेशपालू कहता था-गुरु देवतास्वरुप होते हैं। जो वह कहें, वह आंख मूंदकर फालो करना चाहिए।
शंकालु इस पर कहता-देखो, गुरुजन अगर आउटडेटेड बातें कहें, तो नहीं माननी चाहिए। गुरुजन वो ही ठीक हैं, जो खुद भी अपडेट रहते हैं, और चेलों को भी अपडेट रखते हैं। पुराने टाइप की चिरकुटई की बातें करने वाले गुरुजनों की बातें नहीं माननी चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता था-गुरुजी जो भी कहते हैं, चेलों के भले के लिए कहते हैं।
इस पर शंकालु कहता-देखो ये तब की बातें हैं, ट्यूशनबाजी के चक्कर नहीं होते थे। अब गुरुजी अगर चेलों से ट्यूशन पढ़ने के लिए आने के लिए कहते हैं, तो समझो कि अपने भले के लिए कहते हैं। नोट पाने के लिए कहते हैं। गुरुजी अगर तुमसे ज्यादा प्यार दिखायें, तो सतर्क हो जाओ। कहीं ऐसा तो नहीं है कि गुरुजी अपनी कन्या का विवाह तुमसे करवाना चाहते हैं, बिना दहेज के। ये मामला डेंजरस है। सतर्क हो जाना चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता-गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपकी,गोविंद दियो बताय़ अर्थात हमें गुरु और गोविंद में पहले गुरु को नमस्कार करना चाहिए।
इस पर शंकालु कहता-बात बिलकुल सही है, गुरु और गोविंद में से हमेशा गुरु को नमस्कार करना चाहिए, क्योंकि नंबर तो गुरुजी ने ही देने हैं ना। गोविंद के हाथ में तो प्रेक्टीकल, वाइवा के नंबर होते नहीं हैं। सो गुरु और गोविंद के बीच के मामले में प्रीफरेंस हमेशा गुरु को मिलना चाहिए। हां गुरु और शिक्षामंत्री के बीच चुनना हो, तो शिक्षामंत्री के चरण छूने चाहिए, क्योंकि पढ़ने-लिखने के बाद नौकरी का जुगाड़मेंट करवा पाना गुरुजी के हाथ में नहीं होता। उसके लिए मंत्री के पैर छूने जरुरी हैं।
इस पर आदेशपालू कहता कि नहीं -मैं तो गुरुदेव की बात मानूंगा।
इस पर शंकालु कहता-पछतायेगा।
गुरुदेव ने एक दिवस कहा-हे छात्रो हमेशा शाश्वत साहित्य लिखना और अच्छी-अच्छी बातें लिखना। युवा पीढ़ी को प्रेरित करने वाले संदेश देने वाला साहित्य लिखना। बहुत अच्छी बातें ही लिखना। कभी भी कोई ऐसी-वैसी बातें नहीं लिखना। एकदम आदर्श जीवन के लिए प्रेरित करने वाली बातें लिखना।
आदेशपालू ने वैसा ही किया और कहानी लिखी-आदर्श जीवन जीने की कहानी, जिसमें लिखा गया था, हमेशा हमें प्रातकाल ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। फिर शौच जाकर, फिर व्यायाम करने चाहिए। फिर महापुरुषों को स्मरण करके, समस्त कार्य संपन्न करने चाहिए। फिर सम्यक मात्रा में नाश्ता करना चाहिए, नाश्ते में अंकुरित चने खाने चाहिए। ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए। दिन भर अच्छी-अच्छी बातें करके शाम को घर जाकर दुग्ध पान करना चाहिए। फिर रात्रि में सात बजे खाना खाकर पूजा करके आठ बजे सो जाना चाहिए, क्योंकि अगले दिन चार बजे उठना होता है। इसके अलावा मनुष्य को कुछ नही करना चाहिए। यही आदर्श जीवन है। यही आदर्श जीवन की कहानी है। मानव जीवन का उद्देश्य अंकुरित नाश्ते का सेवन करना है और रात्रि में दुग्धपान करके सो जाना है।
आदेशपालू ने यह कहानी कई पत्रिकाओं में छपने भेजी, सब जगह से ये रिजेक्ट हो कर आ गयी।
उधर शंकालु ने गुरुजी की बात नहीं मानी और एक स्मगलर के जीवन पर आधारित उपन्यास लिखा-रंगीन रातें, संगीन दिन। इसमें स्मगलर के जीवन की कहानी बहुत रोचक तरीके से बतायी गयी थी। इसमें बताया गया था कि उस स्मलगर की किस फिल्म अभिनेत्री से कितनी दोस्ती रही। इस किताब में बताया गया था कि दुबई की तमाम पार्टियों में किस-किस तरह के डांस हुआ करते थे। इस किताब की इतनी डिमांड पैदा हुई कि एक साल में पचास एडीशन छप गये। धुआंधार बिकी यह किताब। इस अकेली किताब ने शंकालु को लखपति बना दिया।
आदेशपालू अपनी पहली कहानी छपवाने के लिए ही तमाम प्रकाशकों, अखबारों के दफ्तरों में घूमता रहा।
उधर शंकालु ने छह महीने में दूसरा उपन्यास लिख मारा-हम आवारा बदनाम गली के, यह उपन्यास भी खूब चला।
इसके बाद शंकालु ने क्रमश-अंडरवर्ल्ड में ए के 47, जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी, समुंदर में डकैती, डाकू उर्फ मिनिस्टर, खूनी बंगला, इम्तिहान मुहब्बत का, तेरे संग जीना-उसके संग मरना, ओसामा से टक्कर, जंग इन्साफ की।
ये सारे जासूसी उपन्यास थे, जिसमें शंकालु ने अपनी कलम की धांसू कारीगरी दिखायी थी। इन उपन्यासों को जो भी एक बार लेकर बैठता था, वो फिर इन्हे पढ़कर ही उठता था। इसमें तस्करों, खूनियों की जिंदगी के बारे में विस्तार से बताया जाता था। इसमें किसी जासूसी मिशन के जरिये पाठकों को सिंगापुर और अमेरिका की सैर भी करायी जाती थी।
शंकालु बहुत ही पापुलर हो गया था, वह अपनी मर्सीडीज कार में जब शहर भ्रमण के लिए जा रहा था, तो उसने देखा कि उसका सहपाठी आदेशपालू एक मंदिर के भंडारे की लाइन में लगकर अपने हिस्से के खाने का इंतजार कर रहा है। वह उतरा और आदेशपालू से बात की, तो आदेशपालू ने बताया कि उसकी लिखी पहली कहानी-आदर्श जीवन की कहानी ही नहीं छप पायी है। उसने पूछा हे मित्र तुमने तो बहुत ही चकाचक प्रोग्रेस कर ली।
इस पर शंकालु ने कहा-देखो, अच्छी बातें अच्छी होती हैं, पर बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुराई, स्मगलिंग,चोरी डकैती की होती हैं। अपने गुरुजी भी बातें सत्साहित्य की करते थे, पर पढ़ते थे अपराध कथाएं। यानी इंटरेस्ट हमेशा बुरे जीवन की कहानियों में होता है। सो मैंने यही किया, और आज यहां तक पहुंच गया। ऐसे वचन सुनकर आदेशपालू बोला-हे मित्र तुम्हारे सुवचनों को सुनकर मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- कौन क्या कहता है, इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। कौन क्या करता है, इसे देखना चाहिए। गुरुजी क्या कहते थे, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि वो क्या पढ़ते थे।
2- अच्छी कहानियां, अच्छे लोगों की कहानियां बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुरे लोगों की ही होती हैं।
3- पापुलर बनने के लिए जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी जैसे उपन्यास ही लिखने चाहिए।
आलोक पुराणिक
कुत्ता कथा -1
एक समय की बात है, एक नगर में एक घर था, उसमें दो कुत्ते निवास करते थे। कुत्तों के स्वामी एक कंपनी में मझोंले लेवल के बास थे, यानी कुछ उनके ऊपर काम करते थे और बहुत सारे नीचे काम करते थे।
एक कुत्ता विशुद्ध कुत्ता था, यानी वह हरेक पर भौंकता था।
बास के बास आयें, उन पर भी भौंकता था, बास के जूनियर आयें, उन पर भी भौंकता था।
हर हाल में भौंकता था।
बास के बास के कुत्तों पर एक बार वह इतनी जोर से भौंका कि बास के बास नाराज हो कर चले गये।
दूसरा कुत्ता स्मार्ट था, वह सूंघ लेता था कि अगर कौन बास का जूनियर है और कौन बास का बास। वह बास के बास और उनके कुत्ते के आगे आटोमैटिक दुम हिलाने लग जाता था।
उसकी ऐसी हरकत देखकर विशुद्ध कुत्ता नंबर एक कहता था कि ये क्या हरकत है। हम कुत्ते हैं, हमारा धर्म है हरेक पर भौंकना। हर कुत्ते पर भौंकना, तू बास के कुत्ते के आगे दुम हिलाने लगता है और जूनियरों के कुत्तों को देखकर दहाड़ने लगता है। लानत है तेरे कुत्ते पर।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता था-देख हम कुत्तों को वक्त के हिसाब से चलना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि बास किस बात से खुश होता है। हमारी नौकरी सिर्फ भौंकने की नहीं है, हमारी नौकरी बास को खुश करने की है। इस बात को समझना चाहिए।
इस पर विशुद्ध कुत्ता कहता, नहीं मैं कुत्तागिरी नहीं छोड़ूंगा। हरेक पर भौंकूंगा।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता-पछतायेगा, वक्त के साथ नहीं बदलेगा तो पिटेगा।
एक दिन बास के बास घर पर आये। उनके साथ उनका बेटा भी आया। बेटा जमाने के चालू चलन के हिसाब से लफंटूश था कभी-कभार चोरी-चकारी में भी हाथ आजमा लेता था। उसने मेजबान के घर में पड़ा एक बहुत फूं-फां किस्म का मोबाइल पार कर लिया।
विशुद्ध कुत्ते और दूसरे कुत्ते दोनों ने इसे सूंघ लिया।
विशुद्ध कुत्ते ने मार मचा दी। उसने बास के बास के बेटे को घसीट दिया, उसकी जेब से मोबाइल निकला। बास के बास बहुत शर्मिंदा हुए। वह मेजबान से नजर नहीं मिला पा रहे थे।
अगले दिन, अगले दिन, कुत्तों के स्वामी ने घर लौटकर विशुद्ध कुत्ते को बहुत पीटा, ठोंक-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। बास ने इसकी वजह अपनी बीबी को यह बतायी-इसकी वजह से मेरा ट्रांसफर हो गया है। बास ने आज मुझे बुलाकर कहा कि कल तुम्हारे एक कुत्ते ने जिस तरह से मेरे बेटे को चोर साबित किया है, वह मेरे लिए शर्मनाक है। कल के हादसे मैं तुमसे नजर नहीं मिला पा रहा हूं। अब या तो तुम इस दफ्तर से जाओ या मैं। चूंकि मैं बास हूं, इसलिए तुम्हे जाना पड़ेगा। मैं तुम्हारा ट्रांसफर जाजऊ नामक कस्बे में करता हूं।
ठुक-पिटकर घर से बाहर निकला विशुद्ध कुत्ता जाते-जाते दूसरे कुत्ते से कहा, मित्र इस घर से निकलते हुए मुझे ये समझ में आ गया है कि कुत्तेगिरी में अगर कुछ आदमीगिरी नहीं मिलायी जाये, तो मामला सीरियस हो जाता है।
हमेशा देखकर भौंकना बनना चाहिए, बास के बास के बंदों पर कभी भी नहीं भौंकना चाहिए।
कुत्ते की असली नौकरी भौंकने की नहीं, हर हाल में बास को खुश रखने की होती है।
कुत्ता कथा-दो
खैर साहब विशुद्ध कुत्ता घर से निकल बाहर भटकने लगा। बहुत ही परेशान था।
घर में रहने वाले कुत्तों को घर से निकल ही पता लगता है कि दुनिया कितनी सख्त है। उसे समझ में आ गया कि दुनिया में फ्री में अगर कुछ मिलता है, वो हैं गालियां। इसके अलावा कुछ भी फ्री नहीं मिलता।
विशुद्ध कुत्ता बहुत ही परेशान होकर दुखी रहने लगा।
शराफत का मारा विशुद्ध कुत्ता किसी से खाना मांगने में भी शरमाता था। चूंकि वह बहुत अच्छे दिन देख चुका था, इसलिए सड़क के ज्यादातर आवारा कुत्ते उससे ईर्ष्या का भाव रखते थे। जिस भाव से नये मारुति 800 वाले पुराने मर्सीडीज वालों को देखते थे,उसी भाव से सड़क के आवारा कुत्ते उसे देखते थे। बहूत परेशान विशुद्ध कुत्ता समझ नहीं पाता था कि आखिर कैसे जीवनयापन किया जाये।
विशुद्ध कुत्ता सड़क के कई आवारा कुत्तों को देखकर याद करता कि अरे, इसे तो मैंने तब दौड़ाया था, इस पर मैं तो तब भौंका था।
कुल मिलाकर विशुद्ध कुत्ते के दिन बहुत खराब बीत रहे थे।
उससे कोई पूछता कि यहां कैसे आ गये।
तो इस सवाल का भी वह सच्ची-सच्ची जवाब दे देता था।
लोग और हंसते थे कि देखो कैसा डबल बेवकूफ है। पहले तो बेवकूफी में घर से बाहर हुआ, उसके बाद अपनी बेवकूफी बताता और है हा हा हा हा।
ऐसे ही दुखी दिन गुजारता हुआ विशुद्ध कुत्ता आवारा भटक रहा था कि।
कि एक दिन एक बुद्धिजीवी टाइप कुत्ते से उसकी मुलाकात हो गयी। बुद्धिजीवी बोले, तो वो कुत्ता हर बात पर नो बोलता था। बेमतलब भौंकता था। रह-रहकर झपटता था, किस पर, यह साफ नहीं हो पाता था। उसने विशुद्ध कुत्ते की कहानी सुनी और बोला-ऐसे काम नहीं चलेगा। तुम ऐसे बोलो, तुम निकाले नहीं गये हो, तुम अपनी मरजी से वहां से आये हो। तुम एक्सपेरीमेंट्स कर रहे हो, फ्राम हाऊस टू रोड्स। इस विषय पर सेमिनार देने के लिए तुम्हे तमाम कुत्तों के बीच बुलाया जायेगा। तुम बताओ कि तुमने एक्सपेरीमेंट्स के लिए शानदार घर की सुविधाएं छोड़ दीं और रोड के कुत्तों के बीच आ गये। डीयर, लाइफ में आगे जाने का फंडा यह है कि अगर प्राबलम में आ जाओ, तो हमेशा यह कहना चाहिए कि ऐसा तो हमने अपनी चाइस से किया है। अपनी इच्छा से किया है, एक्सपेरीमेंट्स के लिए किया है। किसी का माल पार करते हुए पकड़े जाओ और जेल भिजवा दिये जाओ, तो बताओ जेल जाना तो तुम्हारे एक्सपेरीमेंट का हिस्सा है। ऐसा करने से तुम्हारी वैल्यू बढ़ जायेगी, तुम्हे विदेशों तक सेमिनारबाजी के लिये बुलाया जायेगा। अब एक काम करो, इस इलाके से तिड़ी हो जाओ, मुंबई जाने वाली ट्रेन में बैठकर, मुंबई जाकर अपने तजुरबे सुनाओ-फ्राम हाऊस टू रोड्स। चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।
थोड़े दिनों बाद बुद्धिजीवी कुत्ता मुंबई किसी सेमिनार में भाग लेने गया, तो उसने देखा दिल्ली का विशुद्ध कुत्ता फुल मौज में है और सोसाइटी फार कुत्ता एक्सपेरीमेंट्स का अध्यक्ष हो गया है। दिल्ली के बुद्धिजीवी कुत्ते को देखते हुए मुंबई के अध्यक्षजी ने उसके पैर छुए औऱ बोले-हे मित्र मुझे तुमसे ये शिक्षाएं मिलीं हैं- 1-कभी भी सच नहीं बोलना चाहिए।
2-चोरी करते हुए पकड़ जाओ, तो भी बताओ कि एक्सपेरीमेंट कर रहे हैं।
3 -चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।
आदेशपालू और शंकालु की कहानी
आलोक पुराणिक
साहित्य विद्यापीठ में आचार्य टनाटन के दो शिष्य थे।
एक का नाम था-आदेशपालू औऱ दूसरे का नाम था शंकालु।
आदेशपालू जैसा कि नाम से क्लियर है-गुरुवर के समस्त आदेशों का पालन किया करता था। पर शंकालु का मामला अलग था। शंकालु किसी के भी आदेश का पालन यूं ही नहीं किया करता था। वह पहले चैक कर लिया करता था कि आदेश वास्तव में पालन करने योग्य है कि नहीं। आदेश से अपना फायदा कितना होगा।
दोनों में परस्पर इस मसले पर चर्चा हुआ करती थीं कि गुरुजनों की कितनी बातें माननी चाहिए।
आदेशपालू कहता था-गुरु देवतास्वरुप होते हैं। जो वह कहें, वह आंख मूंदकर फालो करना चाहिए।
शंकालु इस पर कहता-देखो, गुरुजन अगर आउटडेटेड बातें कहें, तो नहीं माननी चाहिए। गुरुजन वो ही ठीक हैं, जो खुद भी अपडेट रहते हैं, और चेलों को भी अपडेट रखते हैं। पुराने टाइप की चिरकुटई की बातें करने वाले गुरुजनों की बातें नहीं माननी चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता था-गुरुजी जो भी कहते हैं, चेलों के भले के लिए कहते हैं।
इस पर शंकालु कहता-देखो ये तब की बातें हैं, ट्यूशनबाजी के चक्कर नहीं होते थे। अब गुरुजी अगर चेलों से ट्यूशन पढ़ने के लिए आने के लिए कहते हैं, तो समझो कि अपने भले के लिए कहते हैं। नोट पाने के लिए कहते हैं। गुरुजी अगर तुमसे ज्यादा प्यार दिखायें, तो सतर्क हो जाओ। कहीं ऐसा तो नहीं है कि गुरुजी अपनी कन्या का विवाह तुमसे करवाना चाहते हैं, बिना दहेज के। ये मामला डेंजरस है। सतर्क हो जाना चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता-गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपकी,गोविंद दियो बताय़ अर्थात हमें गुरु और गोविंद में पहले गुरु को नमस्कार करना चाहिए।
इस पर शंकालु कहता-बात बिलकुल सही है, गुरु और गोविंद में से हमेशा गुरु को नमस्कार करना चाहिए, क्योंकि नंबर तो गुरुजी ने ही देने हैं ना। गोविंद के हाथ में तो प्रेक्टीकल, वाइवा के नंबर होते नहीं हैं। सो गुरु और गोविंद के बीच के मामले में प्रीफरेंस हमेशा गुरु को मिलना चाहिए। हां गुरु और शिक्षामंत्री के बीच चुनना हो, तो शिक्षामंत्री के चरण छूने चाहिए, क्योंकि पढ़ने-लिखने के बाद नौकरी का जुगाड़मेंट करवा पाना गुरुजी के हाथ में नहीं होता। उसके लिए मंत्री के पैर छूने जरुरी हैं।
इस पर आदेशपालू कहता कि नहीं -मैं तो गुरुदेव की बात मानूंगा।
इस पर शंकालु कहता-पछतायेगा।
गुरुदेव ने एक दिवस कहा-हे छात्रो हमेशा शाश्वत साहित्य लिखना और अच्छी-अच्छी बातें लिखना। युवा पीढ़ी को प्रेरित करने वाले संदेश देने वाला साहित्य लिखना। बहुत अच्छी बातें ही लिखना। कभी भी कोई ऐसी-वैसी बातें नहीं लिखना। एकदम आदर्श जीवन के लिए प्रेरित करने वाली बातें लिखना।
आदेशपालू ने वैसा ही किया और कहानी लिखी-आदर्श जीवन जीने की कहानी, जिसमें लिखा गया था, हमेशा हमें प्रातकाल ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। फिर शौच जाकर, फिर व्यायाम करने चाहिए। फिर महापुरुषों को स्मरण करके, समस्त कार्य संपन्न करने चाहिए। फिर सम्यक मात्रा में नाश्ता करना चाहिए, नाश्ते में अंकुरित चने खाने चाहिए। ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए। दिन भर अच्छी-अच्छी बातें करके शाम को घर जाकर दुग्ध पान करना चाहिए। फिर रात्रि में सात बजे खाना खाकर पूजा करके आठ बजे सो जाना चाहिए, क्योंकि अगले दिन चार बजे उठना होता है। इसके अलावा मनुष्य को कुछ नही करना चाहिए। यही आदर्श जीवन है। यही आदर्श जीवन की कहानी है। मानव जीवन का उद्देश्य अंकुरित नाश्ते का सेवन करना है और रात्रि में दुग्धपान करके सो जाना है।
आदेशपालू ने यह कहानी कई पत्रिकाओं में छपने भेजी, सब जगह से ये रिजेक्ट हो कर आ गयी।
उधर शंकालु ने गुरुजी की बात नहीं मानी और एक स्मगलर के जीवन पर आधारित उपन्यास लिखा-रंगीन रातें, संगीन दिन। इसमें स्मगलर के जीवन की कहानी बहुत रोचक तरीके से बतायी गयी थी। इसमें बताया गया था कि उस स्मलगर की किस फिल्म अभिनेत्री से कितनी दोस्ती रही। इस किताब में बताया गया था कि दुबई की तमाम पार्टियों में किस-किस तरह के डांस हुआ करते थे। इस किताब की इतनी डिमांड पैदा हुई कि एक साल में पचास एडीशन छप गये। धुआंधार बिकी यह किताब। इस अकेली किताब ने शंकालु को लखपति बना दिया।
आदेशपालू अपनी पहली कहानी छपवाने के लिए ही तमाम प्रकाशकों, अखबारों के दफ्तरों में घूमता रहा।
उधर शंकालु ने छह महीने में दूसरा उपन्यास लिख मारा-हम आवारा बदनाम गली के, यह उपन्यास भी खूब चला।
इसके बाद शंकालु ने क्रमश-अंडरवर्ल्ड में ए के 47, जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी, समुंदर में डकैती, डाकू उर्फ मिनिस्टर, खूनी बंगला, इम्तिहान मुहब्बत का, तेरे संग जीना-उसके संग मरना, ओसामा से टक्कर, जंग इन्साफ की।
ये सारे जासूसी उपन्यास थे, जिसमें शंकालु ने अपनी कलम की धांसू कारीगरी दिखायी थी। इन उपन्यासों को जो भी एक बार लेकर बैठता था, वो फिर इन्हे पढ़कर ही उठता था। इसमें तस्करों, खूनियों की जिंदगी के बारे में विस्तार से बताया जाता था। इसमें किसी जासूसी मिशन के जरिये पाठकों को सिंगापुर और अमेरिका की सैर भी करायी जाती थी।
शंकालु बहुत ही पापुलर हो गया था, वह अपनी मर्सीडीज कार में जब शहर भ्रमण के लिए जा रहा था, तो उसने देखा कि उसका सहपाठी आदेशपालू एक मंदिर के भंडारे की लाइन में लगकर अपने हिस्से के खाने का इंतजार कर रहा है। वह उतरा और आदेशपालू से बात की, तो आदेशपालू ने बताया कि उसकी लिखी पहली कहानी-आदर्श जीवन की कहानी ही नहीं छप पायी है। उसने पूछा हे मित्र तुमने तो बहुत ही चकाचक प्रोग्रेस कर ली।
इस पर शंकालु ने कहा-देखो, अच्छी बातें अच्छी होती हैं, पर बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुराई, स्मगलिंग,चोरी डकैती की होती हैं। अपने गुरुजी भी बातें सत्साहित्य की करते थे, पर पढ़ते थे अपराध कथाएं। यानी इंटरेस्ट हमेशा बुरे जीवन की कहानियों में होता है। सो मैंने यही किया, और आज यहां तक पहुंच गया। ऐसे वचन सुनकर आदेशपालू बोला-हे मित्र तुम्हारे सुवचनों को सुनकर मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- कौन क्या कहता है, इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। कौन क्या करता है, इसे देखना चाहिए। गुरुजी क्या कहते थे, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि वो क्या पढ़ते थे।
2- अच्छी कहानियां, अच्छे लोगों की कहानियां बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुरे लोगों की ही होती हैं।
3- पापुलर बनने के लिए जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी जैसे उपन्यास ही लिखने चाहिए।