वक़्त अगर ‘महान’ संकट का हो तो यकीकन आप कुछ भी छोड़ने को तैयार हो जाएंगे सिवाय ‘वहां’ जाने के। आप कोहिनूर को ठुकरा देंगे। आप मुफ्त में टूजी-थ्रीजी घोटाले में हिस्सा मिलने के प्रस्ताव को ठुकरा देंगे। सरकार जिस दशा में है उसमें आप मंत्री यूं भी नहीं बनना चाहेंगे, लेकिन ‘महान’ संकट की घड़ी हुई तो यकीकन आप वित्त मंत्री-रक्षा मंत्री और हाल के दिनों में इमानदारी की मलाई से सनी प्रधानमंत्री की कुर्सी को भी लात मार देंगे। आप सिर्फ वहां जाएंगे, जहां लेटना कतई नहीं होता अलबत्ता उसका नाम ज़रुर टॉयलेट है।
टॉयलेट से महत्वपूर्ण स्थान इस धरा पर कोई नहीं है। खेत-वेत टाइप की जगह को सिर्फ कोर्स की किताबों का हिस्सा मानने वाले परमज्ञानी इस बात की सहमति में 100 रुपए के स्टांप पेपर पर दस्तखत कर दे सकते हैं। टॉयलेट किसी चारदीवारी का नाम भर नहीं है। यह जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्ति के आनंद को प्राप्त करने का धाँसू स्थान है। अकसर इस चारदीवारी में प्रवेश से पहले बंदा जिस संकट को महसूस कर रहा होता है, वह अभूतपूर्व होता है। चूंकि यह अभूतपूर्व संकट वर्तमान में दो पाए के जीव का अस्तित्व झटके में भूत बनाने के लिए बैचेन होता है, लिहाजा इस संकट के निपटारे के लिए भविष्य का मुंह नहीं देखा जाता।
पेट की गड़बड़ी को आत्मा की तरह धारण किए हुए लोग टॉयलेट को मानव सभ्यता की सबसे बड़ी खोज बता सकते हैं। यूं योजना आयोग इस अविष्कार को किस श्रेणी का आँकता है-इसका खुलासा अगली आरटीआई से होगा अलबत्ता इस विशिष्ट स्थान की अहमियत का अंदाजा उसे है। आखिर योजना आयोग ने योजना भवन में दो टॉयलेट बॉक्स बनाने में 35 लाख रुपए खर्च हैं। विरोधी इसी बात पर हल्ला काटे हैं। राजनीतिक विरोध के पतन की यह पराकाष्ठा है। स्विस बैंक में रखे ख़रबों रुपए से 1,76,000 करोड़ के टूजी घोटाले के बाद हल्ला काटने के लिए 35 लाख के टॉयलेट। छी...। इतना ही नहीं गरीबी-विकास दर-मुद्रास्फीती-रुपए का अवमूल्यन जैसे अल्ल बल्ल भारी भरकम शब्दों को इन दो टॉयलेट के दरवाजों को खड़ा कर टेलीविजन चैनल वालों ने प्राइम टाइम में घंटा-घंटा भर बहस कर डाली। टीआरपी चैनलों से क्या-क्या नहीं कराती ! मुए बली-खली-राखी-भूत-चुड़ैल से होते हुए अब टॉयलेट तक पहुंच गए।
कित्ता भी बवाल हो लेकिन अपन योजना आयोग के पक्ष में हैं। योजना आयोग चाहता है कि टॉयलेट करते वक्त बंदा सुकून महसूस करे। वातानुकूलित माहौल हो, पानी झरझरा कर आए, कोई डिस्टर्ब न करे तो चिंतक कायदे से चिंतन कर सकता हैं। योजना आयोग का काम योजना बनाने का है। बंदा बदबू युक्त, पानी की समस्या से जूझते और फिर हाथ धुलाने के लिए बाहर 100 बार चपरासी को पुकारने के बाद योजना बनाने बैठेगा तो देश का बंटाधार होना तय है। मुझे लगता है कि 28-30 रुपए प्रतिदिन कमाने वाला अमीर है-यह परिभाषा योजना आयोग के सदस्यों ने उस मानसिक हालात में तय की होगी-जब विचित्रतम बदबू से उनका मानसिक संतुलन लगभग बिगड़ चुका होगा।
योजना भवन में अभी तक इक्का दुक्का टॉयलेट थे। महान संकट घंटे के हिसाब से किसी न किसी का इम्तिहान लेता था। इस इम्तिहान में जो फेल हुए, आप उनकी जगह खड़े होकर देखिए और सच कहिए कि क्या बेहतर टॉयलेट जरुरी नहीं। अब मामला चकाचक है। योजना आयोग चाहता है कि देश के हर गांव-कस्बे में इसी तरह के आधुनिक आरामास्थान बनें। योजना भवन में 35 लाख खर्च कर इन्हीं आरामास्थानों का शानदार मॉडल बनाया गया है। टेस्टिंग जारी है। यह प्रगति की निशानी है। विपक्षी फिलहाल चुप बैठें। आखिरकार अभी इन टॉयलेट को बनाने में किसी घोटाले की कोई ख़बर नहीं आई है। क्या हम सही रास्ते पर नहीं हैं?