शर्मीला के अनशन के मायने !
आन्दोलन और अनशन का रास्ता लोग तभी चुनते हैं जब शासन-प्रशासन का फैसला आम लोगों के लिए गले की हड्डी बन जाती है। हाल के दिनों में अन्ना हजारे देश के करीब सवा अरब लोगो की आवाज़ बने और उनके मुद्दों को उठाया। रास्ता था अनशन का। भूख हड़ताल का। लेकिन क्या हमें पता है कि हमारे अपने ही देश में दुनिया की सबसे लम्बे समय से भूख हरताल कर रही इरोम चानू शर्मीला के बारे में शायद ही देश के ज्यादा लोगों को ही पता है। दोष देश के आम लोगो का भी नहीं हैं क्यूंकि इस मुद्दे को मीडिया ने भी कभी तवज्जो दी ही नहीं। शायद इसलिए क्योंकि देश का उत्तर पूर्व इलाका 'टीआरपी जोन' में नहीं आता। किसी को कोई फर्क पड़ता भी नहीं। मुझे भी इसलिए फर्क परता हैं क्यूंकि मैं उत्तर पूर्व का हूं। वहां की समस्याओं के साथ बड़ा हुआ हूं। नहीं तो शायद मुझे भी शर्मीला के अनशन के कोई फर्क नहीं पड़ता। देश के इस हिस्से को इतना अलग थलग कर दिया गया है कि जब यहाँ के बच्चे दिल्ली या देश के किसी हिस्से में पढ़ने जाते हैं तो उन्हें नाम दिया जाता हैं चिंकी।
अन्ना के अनशन के दौरान फेसबुक जैसे सोशल मीडिया में एक्का दुक्का लोगों ने शर्मीला का नाम जरुर लिया था लेकिन मुद्दा कभी संसद में नहीं जाता। शर्मीला जिस Arms Force Special Powers Act, जो सुरक्षा कर्मियों को बिना किसी के इज़ाज़त के किसी भी आम आदमी को गिरफ्तार और गोली चलाने का हक़ देती हैं और इसी के विरोध में पिछले 11 साल से बिना कुछ खाया पिए अनशन कर रही हैं। सही माने तो इस कानून की कोई जरुरत ही नहीं है। सरकार ये नज़र जरुर रखती हैं कि कहीं ये लड़की मर न जाए इसलिए जबरन नाक के जरिये शर्मीला के शारीर के अन्दर खाने की खुराक पहुंचायी जाती है। 2 नवम्बर 2000 को मणिपुर के मालोम शहर में अस्सं रिफ्फ्लेस के जवानों ने १० निहत्थे लोगों को दिन दहाड़े गोली मर दी थी। इसमें 18 साल की सिनाम चंद्रमणि भी शामिल थी, जिसे 1988 में भारत सरकार के तरफ से बहादुरी का पुरस्कार भी दिया गया था। इसी अन्याय के विरोध में शर्मीला ने भी महात्मा गाँधी का विरोध करने का यह अनोखा रास्ता आपनाया। लेकिन सरकार ने शर्मीला के अनशन पर कभी तवज्जो ही नहीं दिया।
क्यूंकि सरकार को भी पता हैं शर्मीला के मामले में छोटे से राज्य मणिपुर के ही कुछ लोग विरोध करेंगे और देश के बाकी हिस्सों में भी इस अनशन पर कोई आवाज़ नहीं उठेगी। मीडिया गलती से अपनी TRP जोन से आगे नहीं निकली सो इस आन्दोलन को किसी का समर्थन ही नहीं मिला। मीडिया की संवेदनहीनता के बारे में कहीं कोई आवाज नहीं। अकेली शर्मीला अपनी लड़ाई लड़ रही है...उसे भरोसा हैं की जीत जरुर एकदिन उसी की होगी... भले ही देश के आम नागरिक... सरकार और मीडिया को उसके इस आन्दोलन से कोई सरोकार न हो।