13 सितंबर 2011
8 दिसंबर 2008, अंजलि गुप्ता को देश की प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था ने कोर्ट मार्शल करते उसे बर्खास्त कर दिया था और 11 सितंबर 2011,जब अंजलि ने जिंदगी से खुद को टर्मिनेट कर दिया। तब और आज की अंजलि में बहुत फर्क है। इन 4 सालों में अंजलि का पूरा व्यक्तित्व बदल चुका है। कहां वो सम्मान के लिए लड़ने वाली, कभी न झुकने वाली, हक के लिए आवाज़ उठाने वाली अंजलि और कहां ये खामोश अंजलि जो अपने पीछे अपनी कितनी ही अनकही कहानी छोड़ गई। चुपचाप खामोश इस दुनिया से विदा हो गई। कैसे..
2008 से लेकर 2011 के बीच वक्त बदल गया। 4 साल बीत गये। खबरों के कई दौर आये। अंजलि गुप्ता और उसकी लड़ाई अखबारों के मुख्य पन्नों से लेकर हाशिये तक पहुंच गये। लेकिन अंजलि के लिए जैसे सब कुछ वहीं ठहर चुका था। अंजलि ने करीब 6 साल पहले अपने वरिष्ठ अधिकारीयों पर यौन शोषण का आरोप लगाया। उन्होंने इसके लिए एक बार नहीं बार बार वरिष्ठों से गुहार लगाई। तारीख दर तारीख,चिट्ठी दर चिट्ठी। हर बार उनकी आवाज़ अनसुनी कर दी गई। अंजलि ने ट्रेनिंग कमांडेंट एयर मार्शल एस भोजवानी से गुहार लगाई कि उनके सीनियर का उनके प्रति बर्ताव अच्छा नहीं है। भोजवानी अंजलि से मिलने तक के लिए समय नहीं निकाल सके। अंजलि बार बार कहती रही कि उनके साथ सेना के अफसरों का रवैया अच्छा नहीं है, लेकिन उनकी आवाज़ अनुशासन की दीवार के बीच गूंजकर खुद की दम घोंटने लगी।
अंजलि ने फिर वरिष्ठ अधिकारियों को खत लिखा। अपनी आप बीती उसमें लिखी। इस उम्मीद से की कोई तो उनकी गुहार सुनेगा। कोई तो उनके सम्मान की रक्षा के लिए आगे आएगा। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। कितनी चिट्ठियां तो वापस लौट आयीं। अंजलि ने एयर चीफ मार्शल तक से मिलने की कोशिश की। हालत ये हो गई कि अंजलि की बात सुनना तो दूर लोग उनसे बात करना तक बंद करने लगे। उनके कमरे से टेलिफोन लाइन तक काट दी गई।
अंजलि के आरोप सही हैं या गलत इसपर जांच हुई। निर्णय आ गया कि अंजलि के आरोप बेबुनियाद हैं। कहा गया कि असल में अंजलि खुद ही लड़ने वाली महिला हैं। और आरोपों के घेरे में फरियादी अंजलि खुद ही आ गई। अंजलि पर दर्जनभर आरोप लगाये गये जिसमें उनपर गलत तरीके से ट्रांसपोर्ट एलॉयेंस लेना,अपने अधिकारी के ब्रेकफास्ट की चोरी करना, ट्रेनिंग में हाजिर नहीं होना, बिना छुट्टी के डियूटी से गैरमौजूद रहना शामिल है। अंजलि ने इन आरोपों का खंडन भी किया। लेकिन जब लड़ाई पूरी व्यस्था से अकेली लड़नी होती है और वो भी एक महिला की। अंजलि का संघर्ष कठिन से कठिन होता गया। और फिर एक दिन देश की पहली महिला फ्लाइंग अफसर अंजलि का कोर्ट मार्शल हुआ और अंजलि पर अनुशासन हीनता,नियमों का उल्लंघन, पैसों की हेरा फेरी का आरोप लगा। 7 में से 5 आरोपों में अंजलि दोषी पायी गईं। अंजलि ने जो आरोप अपने वरिष्ठों पर लगाये थे वे सब निराधार साबित हुए। और अंजलि को 8 दिसंबर 2008 को वायु सेना से निकाल दिया गया।
अंजलि इस समय अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही थी। नौकरी से बर्खास्त किये जाने के बाद वो काफी मानसिक दबाव से भी गुजर रही थीं। बर्खास्तगी के बाद अंजलि बंगलुरु के एक कॉल सेंटर से जुड गईं। हार गई थी लेकिन टूटी नहीं थी। सम्मान के लिए अब भी उनमें वहीं जिद् थी। तभी तो वे अपने सहयोगी ग्रुप कैप्टेन अमित गुप्ता के साथ रहने लगीं। अंजलि अमित से प्यार करती थीं। लेकिन उसे नहीं मालूम था कि एक बार फिर अपने हक की लड़ाई में वो हारने वाली हैं। अमित पहले से शादीशुदा है फिर भी वो अपनी पत्नी को छोड़ कर अंजलि के साथ लिव इन रिलेशन में रहा। अंजलि को यही कहता रहा कि वो अपनी पत्नी से तलाक ले लेगा। लेकिन 6 सालों के उनके संबंध में वो दिन कभी नहीं आया। अंजलि पहले सेना में कोर्टमार्शल का सामना करती रही और अब समाज ने उनका कोर्टमार्शल शुरू कर दिया।
हर बार आरोपों के घेरे में अंजलि,हर बार हारती अंजलि, हर बार अपनी मर्यादा की खातिर लड़ती अंजलि.... शायद इसलिए उन्होंने दुनिया के कोर्टमार्शल में खुद को सस्पेंड होते देखने की बजाये खुद को ही टर्मिनेट करना बेहतर समझा।
आखिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके कारण अंजलि इतनी नाउम्मीद, इतनी हतोत्साहित हो गईं। क्यों उन्हें जिंदगी से ज्यादा मौत प्यारी लगी। क्यों अंजलि सामाजिक व्यवस्था पर यकीन नहीं कर सकीं। सेना हो या समाज, हर जगह अपने कंपोर्माइज़ औरतों को ही क्यों करना पड़ता है,वो भी जान दे देने की हद तक !!! क्या सेना को कैरियर बनाने वाली अंजलि इतनी कमजोर थी !!! अंजलि पर खबरें बनेंगी, हम सभी कुछ देर के लिए बेचैन होगें। व्यवस्था को कोसेंगे। लेकिन फिर हर तरफ खामोशी छा जाएगी। शोर सुनने को मिलेगा तो फिर किसी दूसरी अंजलि की मौत पर।
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