15 दिसम्बर 2011
लंदन। कौवे हमारी सोच से कहीं अधिक चतुर होते हैं। उनमें सीखने और नए साधनों का इस्तेमाल करने की समझ होती है। यही कारण है कि जब आप उन पर बंदूक से निशाना लगाने की नकल भी कर रहे हों तो वे छतों और खम्भों से उड़ जाते हैं। विज्ञान पत्रिका 'पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) और कैम्ब्रिज (ब्रिटेन) विश्वविद्यालयों द्वारा कराए गए शोध से पता चला है कि कौवे नए उपकरणों से सीखने की प्रक्रिया में सतत लगे रहते हैं।
एक बहुत पुरानी कहानी के मुताबिक एक प्यासा कौवा मटके में पानी का स्तर उपर लाने के लिए उसमें तब तक पत्थर डालता रहता है, जब तक कि पानी का स्तर उसकी पहुंच में नहीं आ जाता। उस वक्त कौवा पानी का स्तर ऊपर लाने के लिए छोटे पत्थरों मटके में डालता है न कि बड़े पत्थर।
विश्वविद्यालय के एक बयान के अनुसार कुछ प्रयोगों से पता चला है कि कौवों का प्रदर्शन सीखने की साधारण प्रक्रिया पर आधारित नही होता है। कौवों में दरअसल यह समझने की शक्ति होती है कि वास्तव में कोई भी काम किस तरह से किया जा सकता।
इसी वजह से अध्ययन के सह-लेखकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि कौवे के सरल साहचर्य के पीछे उनकी संज्ञानात्मक प्रक्रिया होती है, जिससे वे नये साधनों या फिर उपकरणों की जानकारी जुटाने में सक्षम होते हैं।
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