Guest Corner RSS Feed
Subscribe Magazine on email:    

हिंदी के शोकधुन पर नाचती दुनिया

importance of hindi


आलोक कुमार
 
हिंदी दिवस पर एक से बढकर एक संवेदनशील टिप्पणियां सामने आ रही हैं। आईए तीन मिसालों पर गौर करें और मसले को समझने की कोशिश करें। एक साथी ने फेसबुक पर झकझोरते हुए लिखा - की-पैड पर अंग्रेजी में अक्षरो से हिंदी लिखने का दर्द, मेले में मां की अंगुलियों से छूटकर गुम जाने जैसा है। जाहिर तौर पर साथी ने हिंदी को लेकर काले अंग्रेजों के आगे हमारे नत मस्तक हो जाने की टीस नहीं झेल पाए। दर्द का बारीकी से इजहार कर डाला । साथ ही हमारी संवेदना की शिथिल पडी डोर को खिंच डाला । हिंदी लिखने वाले हममें से ज्यादातर लोग अंग्रेजी वाले की-पैड के लिखे अक्षर को लगातार धोखा दे रहे हैं। अंग्रेजी की-पैड से हिंदी उकेरने के खेल में तल्लीन हैं। स्वाभाविक तौर पर भूल गए कि इतिहास में कभी कम्प्यूटर में हिंदी अक्षरों का की-पैड भी हुआ करता होगा। और इसकी आगे भी जरूरत है। इस तल्लीनता ने मां को सम्मान देने के संस्कार को ही खत्म कर दिया है। खासकर जब हम मोबाइल से एसएमएस भेजते हैं,तो हिंदी में खुद को अभिव्यक्त करने की जरूरत की हत्या कर रहे होते हैं।


दूसरा, फेसबुक पर ही 'जुबां पर सच और दिल में इंडिया' की दुहाई देने वाली न्यू देहली टीवी, इंडिया के एक गणमान्य एंकर ने मुंह चिढाते हुए हिंदी दिवस की जरूरत पर ही सवाल कर दिया । बदलाव की आंधी को हवा देने का भाव भरते हुए जनाब ने हिंदी दिवस को घिसी पिटी रीत करार दिया। साथ ही आह्वान कर डाला कि इस मौके पर हिंदी बोलने के बजाए कोई और भाषा बोली जाए। बेबाकी से बात रखने में माहिर इस एंकर दोस्त ने बडी चालाकी से टीस देने वाली असली बात दबा ली। उनको भी टीस होती ही होगी कि न्यू देहली टी वी इंडिया के जिस दफ्तर में वो काम करते हैं वहां का दफ्तरी कामकाज देवनागरी के बजाए रोमन हिंदी के जरिए होता है।


काश, हिंदी बाजार के आसरे दशकों से गाढी कमाई करने वाले इस संस्थान के मालिक यह प्रयोग बंग्ला के साथ करते तो दुस्साहसी होने का वास्तविक परिचय देते। कोलकाता से बारास्ता ढाका, चटगांव से अगरतला तक की आबादी ऐसा इलाज करती कि टैम पर मानहानि का मुकदमा करने की हैसियत नहीं रहती। एनडीटीवी इंडिया का हिंदी के प्रति अनुराग का आलम है कि कार्यक्रम वाचक के लिेए प्रोक्सी स्क्रिप्ट तक रोमन में ही स्क्रीन पर लिखा सामने आता है। पब्लिक स्कूल में हिंदी पढकर आने वालों के आगे यहां सरकारी स्कूल में हिंदी पढने वाले वास्तव में हीनभावना में जीने को विवश होते हैं।


तीसरा, हिंदी दिवस के ऐन पहले प्रमुख दैनिक समाचार पत्र हिंदी में विस्मित करने वाला आलेख पढने को मिला। लेख में हिंदी के मुख्यधारा के अखबारों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के बाद अब प्रोफेसरी करने पहाड पर चले गए विद्वान लेखक ने हिंदी को रोमन में लिखने की पुरजोर पैरवी की। ऐसा धर्मनिरपेक्षता के लिए जरूरी बताया गया। दलील दी गई कि हिंदू- उर्दू के भेद को खत्म किया जाना चाहिए। अपनी बात रखने के लिए लेखक ने पश्चिम में जा बसे भारतीयों के सहुलियत का हवाला दिया। साथ ही अप्रत्याशित प्रलोभन के साथ अपनी बात रखी कि रोमन लिपि अपनाकर हिंदी- उर्दू को एक करने से यह भाषा दुनिया में सबसे बडी आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा बन जाएगी। फिलहाल चीन की मंदारिन सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।


ऐसी और भी विचलित करने वाली कई टिप्पणियां सामने आईं । हिंदी दिवस के खिलाफ बात को मजबूती से रखने के लिए सरकारी फिजुलखर्ची का हवाला दिया गया। जाहिर है, ऐसा कहते और सोचते वक्त लोग सहज भूल गए कि हिंदी दिवस मनाना हमारी बाध्यता है।। हमारी मजबूरी है। हिंदी दिवस शौक से नहीं बल्कि खुद की वजूद की बचाव के लिए हम मनाते हैं। आत्मरक्षा के लिए मनाते हैं। सच तो ये है कि घिसी पिटी रीत से ही सही हिंदी को बचाने का संकल्प तो ले रहे हैं। हिंदी की इस तरह से सुध नहीं ली गई, तो मंहगाई रूपी डायन सरीखी अंग्रेजी हमारी हिंदी को लील जाएगी। रोमन लिपि का देवनागरी पर राज कायम हो जाएगा। अंग्रेज जो काम चार सौ साल के शासन में नहीं कर पाए उसे हम महज साठ सत्तर साल में पूरा कर देंगे। हिंदी और देवनागरी हमारी जरूरत है। पब्लिक स्कूल में पले बढे लोग इसे जरूरत को अब सहज नहीं समझ पाते। पत्रकार के नाते हमें हिंदी पर गुमान है। हिंदी बाजार में काम करते हैं। हिंदी की वजह से रोटी मिलती है। आजीविका चलती है। हम इस अहसास के बावजूद विचलित नहीं होते कि अंग्रेजी में काम करने वाले पत्रकार हिंदी वाले से बेहतर पगार पाता है। अंग्रेजी की किताब कारोबार करती है। अंग्रेजी लेखन आजीविका का आधार बन जाती है जबकि हिंदी में किताब लिखकर किसी का घर नहीं चल सकता है। हिंदी में किताब छपवाने के लिए लेखक से पैसे मांगा जाता है। हिंदी के प्रति समाज और बाजार के दोहरे चरित्र को देखते समझते हुए भी ना जाने क्यों हिंदी वाले ही हिंदी दिवस के विरोध की हिम्मत कर लेते हैं ? क्या यह हिम्मत उस फैशन के तहत किया जाता है जिसमें खुद मॉर्डन कहलाने के लिए लोग उलूल जलूल हरकत पर उतर आए हैं?

More from: GuestCorner
32799

ज्योतिष लेख

मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।

Holi 2020 (होली 2020) दिनांक और शुभ मुहूर्त तुला राशिफल 2020 - Tula Rashifal 2020 | तुला राशि 2020 सिंह राशिफल 2020 - Singh Rashifal 2020 | Singh Rashi 2020