‘मैं यहां टीवी लेने नहीं, अपने मरे हुए बेटे की चिता की राख लेने आया हूं। क्या मैं बेटे की अस्थियों के लिए भी घूस दूं?’ कस्टम अधिकारी कहता है कि उससे गलती हो गई। वह शिक्षक को बताता है कि वह उनका शिष्य रह चुका है। उसके बाद अनुपम का संवाद है कि ‘भूल तो हमसे ही हो गई। मैं ही तुम्हें सही शिक्षा नहीं दे पाया।’ 'सारांश' के इस सीन ने फिल्म देखने वाले हर शख्स को भीतर तक हिलाकर रख दिया था। इस सीन में एक अवकाश प्राप्त अध्यापक कस्टम अधिकारी से मुखातिब होता दिखाई देता है।
अनुपम खेर की यह पहली फिल्म थी। और महज 28-29 साल की उम्र में उन्होंने एक वृद्ध की चुनौतीपूर्ण भूमिका न सिर्फ स्वीकार की, बल्कि उसे बखूबी जिया भी। अपनी अदाकारी के दम पर किरदार की व्यथा को इस हद तक जीवंत कर दिया कि देखने वाले आज भी जब उस फिल्म को देखते हैं तो भीतर-भीतर कुछ रिसने लगता है।
कहते हैं कि हुनर उम्र के साथ और निखरता जाता है, तो अनुपम इसका जीवंत प्रमाण हैं। अपने अनुभव के दम पर उन्होंने सफलता की वो राह तय की है जिस पर कम ही कलाकारों को कदम रखने का मौका मिलता है। अगर बॉलीवुड के सौ करोड़ी आंकड़े के लिहाज से देखा जाए तो अनुपम को आप सितारा नहीं कह सकते, लेकिन बात अगर अभिनय की करें, उसकी गहराई की करें, उसकी परिपक्वता की करें तो अनुपम, 'बेमिसाल' नजर आते हैं।
रंगमंच पर अपने अभिनय को मांझने के बाद उन्हें सिने जगत का रुख किया। रंगमंच में तराशी गयी इस प्रतिभा का बड़े पर्दे ने भी खुली बाहों से स्वागत किया। हर अच्छे अभिनेता की ही तरह अनुपम को अगर अपनी ताकत का अंदाजा है, तो वे अपनी सीमाएं भी जानते हैं। उन्हें शायद इस बात का अंदाजा रहा होगा कि परंपरागत भारतीय सिनेमा दर्शक वर्ग शायद उन्हें कभी नायक की भूमिका में स्वीकार नहीं कर पाएगा, तो उन्होंने उस ओर कभी प्रयास ही नहीं किया। उन्होंने उन भूमिकाओं को निभाया जिन्हें लेकर वे पूरी तरह आश्वस्त थे।
'कर्मा' के डॉक्टर डेंग में वे अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ नजर आए। इस नकारात्मक भूमिका को निभाते समय उन्होंने किरदार में जान डाल दी थी। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में वे एक ऐसे पिता की भूमिका में नजर आए जो अपने बेटे की खुशी के लिए पूरी शिद्दत से कोशिश करता है। इसके अलावा भी उन्होंने कई तरह की भूमिकाएं कीं। एक लाचार पति, एक वकील से लेकर एक ड्र्ग माफिया सभी किरदारों में अनुपम खेर ने अपनी छाप छोड़ी। बीते तीन दशकों के अपने अभिनय सफर में अनुपम कई फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं।
अनुपम का जन्म सात मार्च 1955 को शिमला में हुआ। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से स्नातक करने के बाद उन्होंने थियेटर से ही अपना कॅरियर शुरू किया। बाद में 'सारांश', 'मोहब्बतें', 'कुछ-कुछ होता है', 'वीर-जारा' और 'मैंने गांधी को नहीं मारा' जैसी फिल्मों में उनकी अदाकारी का हुनर खुलकर सामने आया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुपम 'बेंड इट लाइक बेकहम', 'ब्राइड एंड प्रिज्यूडाइस', 'द मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसिज' और 'द अदर इंड ऑफ द लाइन' जैसी विश्व विख्यात फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। वह फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
अनुपम खेर को आठ बार अलग-अलग श्रेणियों में फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है जिसमें 1984 की फिल्म “सारांश” के लिए मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी है। उन्हें दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी नवाजा गया है। अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर भी एक बेहतरीन अदाकारा हैं।
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