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बाज़ार रियलिटी शो के पीछे का

market behind the reality show

 

पीयूष पांडे

आप ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में हिस्सा लेना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए? कार्यक्रम के लिए आपका चयन हो गया है तो सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए क्या किया जाए? ‘फास्टेस्ट फिंगर’ राउंड में किस तरह उंगलियां पटल पर रखी जाए कि तेजी से जवाब दिया जा सके? और हॉट सीट पर बैठने के बाद सदी के महानायक के समक्ष बैठते वक्त आत्मविश्वास में कमी न आए इसके लिए क्या उपाय किए जाए? ऐसे तमाम सवालों के जवाब आपको रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से करोड़पति बने अनिल कुमार सिन्हा के कोचिंग सेंटर में मिल सकते हैं। जी हां, केबीसी में एक करोड़ रुपए जीत चुके अनिल कुमार सिन्हा ने पटना में अपना कोचिंग सेंटर आरंभ किया है, जिसमें कौन बनेगा करोड़पति में जाने के इच्छुक लोगों को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। अनिल कुमार सिन्हा कहते हैं,“ कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम को अपना पहला करोड़पति पहले सत्र में ही मिल गया था। साल 2000 में। लेकिन, मुझे 11 साल लग गए। क्यों ? क्योंकि मुझे धीरे-धीरे अपनी राह बनानी पड़ी। आज केबीसी के कई प्रतियोगी मेरे संपर्क में हैं, लेकिन एक करोड़ रुपए जीतने से पहले ऐसा नहीं था। मैंने जीत से पहले ही सोच लिया था कि मुझे सफलता मिलती है तो ऐसा रास्ता बनाऊंगा ताकि बाकी प्रतियोगियों को इधर-उधर भटकना न पड़े।”


‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर की बात थोड़ा चौंकाती ज़रुर है, लेकिन हकीकत में इसमें चौकने जैसी कोई बात नहीं है। देश में लाखों लोग केबीसी की हॉट सीट पर बैठने का ख्वाब लिए हैं, लेकिन उन्हें तैयारियों का कखग भी नहीं पता। लेकिन, सवाल सिर्फ अनिल कुमार सिन्हा के कोचिंग सेंटर का नहीं है। सवाल है रियलिटी शो में हिस्सा लेने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण के बहाने तैयार हुए नए बाज़ार का। रियलिटी शो से जुड़े कई सवालों को प्रमुखता से उठाने वाली फिल्म ‘ब्लू माउंटेन्स’ के निर्माता राजेश जैन कहते हैं, “आज देश में एक वक्त में अलग-अलग भाषाओं के चैनलों पर करीब 25 से ज्यादा रियलिटी शो चल रहे हैं। इन शो में हिस्सा लेना स्टेटस सिंबल बन रहा है। रियलिटी शो आम लोगों को प्रसिद्धी दिला रहे हैं, लिहाजा हिस्सा लेने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा है।“

 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कौन बनेगा करोड़पति,डांस इंडिया डांस,सारेगामापा,इंडियास गॉट टेलेंट जैसे रियलिटी शो प्रतियोगियों को नाम और दाम दोनों दे रहे हैं। टेलीविजन के पर्दे के जरिए कभी चंद मिनट तो कभी चंद दिनों में मिलती ख्याति ने अनेक प्रतियोगियों की ज़िंदगी बदल दी है। कलर्स चैनल के रियलिटी शो ‘डांसिंग क्वीन’ में कोरियोग्राफी कर चुकीं अरुणिमा रॉय कहती हैं,”डांस इंडिया डांस जैसे रियलिटी शो के कई प्रतियोगी अब अपना डांसिल स्कूल चला रहे हैं। इंडियन आइडल और सारेगापापा के कई गायकों के स्टेज शो हो रहे हैं यानी उन्हें रोजगार मिल रहा है। नृत्य-गायन की फील्ड में कोई सरकारी नौकरी तो है नहीं, लेकिन रियलिटी शो से मिली पब्लिसिटी ने कई लोगों की जिंदगी को नयी दिशा दे दी है।”

    
हुनरमंदों को हुनर के प्रदर्शन का मंच मुहैया कराते रियलिटी शो में हिस्सा लेने की तैयारियों के बहाने खड़े हो रहे नये बाज़ार का फलक महानगरों से लेकर कस्बों तक फैल गया है। फिरोज़ाबाद के एक स्कूल में अध्यापिका रुचि शर्मा कहती हैं,” फिरोजाबाद जैसे छोटे शहर में रेमो डिसूजा की वर्कशॉप होती है, तो बच्चों की भीड़ टूट पड़ती है। उन्हें लगता है कि रेमो ने सिखा दिया तो उन्हें बड़े मंचों पर अपने हुनर का जलवा दिखाने से कोई रोक नहीं सकता।“ एक अनुमान के मुताबिक बीते दस साल में देश में दस हजार से ज्यादा प्रशिक्षण केंद्र खुले हैं, जहां रियलिटी शो के लिए संभावित प्रतियोगी तैयार किए जा रहे हैं। इंडियन आइडल के चौथे सत्र में ‘छोटे डॉन’ के नाम से खासी प्रसिद्धी बटोर चुके गायक रेमो घोष कहते हैं,” टेलीविजन आज हर घर में है। युवा अपनी प्रतिभा को बड़े मंचों तक ले जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोई सही राह दिखाने वाला नहीं है, लिहाजा ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की बाढ़ आ गई है। हालांकि, मैंने कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन मुझे लगता है कि ट्रेनिंग से युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है। हां, कई ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की फर्जीवाड़े से होती है। मसलन नागालैंड की दीमापुर, जहां का मैं रहने वाला हूं, वहां कई इंस्टीट्यूट यह दावा करते हैं कि मैंने उनके यहां सीखा और इस आधार पर वे दूसरे छात्रों को जाल में फाँस रहे हैं।” समाज शास्त्री मधुरिमा सिंह कहती हैं,” रियलिटी शो ख्वाबों का कारोबार कर रहे हैं। इन कार्यक्रमों के जरिए मिलती लोकप्रियता और धन को भुनाने का खेल महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक खूब चल रहा है। परेशानी सिर्फ इतनी है कि कई बार बच्चों व युवाओं को भ्रम में रख सिर्फ और सिर्फ धंधा किया जा रहा है। ”

 

बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है कि क्या रियलिटी शो की तैयारियों के नाम पर सिर्फ कारोबार हो रहा है? क्या बच्चों के मासूम ख्वाबों का दोहन किया जा रहा है? और क्या रियलिटी शो की पौध कोचिंग इंस्टीट्यूट में तैयार हो सकती है? इन सवालों का सीधा जवाब नहीं है। लेकिन, यह मानने वाले कम नहीं है कि तैयारियों के नाम पर न  सिर्फ कारोबार हो रहा है बल्कि बच्चों व युवाओं को भरमाया जा रहा है। ‘चक्रव्यूह’ फिल्म के ‘महंगाई..’ गाने से सुर्खियों में आए संगीतकार विजय वर्मा कहते हैं, “ मैं मूलत: छपरा का हूं। छोटे शहरों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसे सही दिशा नहीं मिल पाती। ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट यह दिशा दे सकते हैं, लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है। मसलन गायकी सिखाने वाले कोई ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट बेसुरे गायक से यह नहीं कहता कि तुम अपना वक्त बर्बाद मत करो।” मनोचिकित्सक मनीषा श्रीवास्तव कहती हैं, “कच्ची उम्र में अधिक नाम-दाम की चाह कई बार बच्चों को जीवन की राह से भटका देती हैं। वे सिर्फ और सिर्फ रियलिटी शो का हिस्सा बनने को बेकरार दिखते हैं, और जब उन्हें होश आता है, काफी देर हो चुकी होती है। और इसमें माँ-बाप भी कम दोषी नहीं है।“ दिल्ली के स्टैंड-अप कॉमेडियन अपूर्व गुप्ता कहते हैं,”आज आपको कई एक्टिंग स्कूल कॉमेडी सिखाते हुए मिल जाएंगे। लेकिन,क्या कॉमेडी सिखायी जा सकती है? फिर, टेलीविजन पर कॉमेडी के रियलिटी शो में हम जो देखते हैं,वह कई री-टेक के बाद हुई परफोरमेंस होती है।”

 

टेलीविजन के पर्दे पर आने वाले रियलिटी शो के पीछे आज अपना अलग बड़ा बाज़ार खड़ा हो रहा है। इसमें हिस्सा लेने के बाबत तैयारियों से जुड़े ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं तो किताब-सीडी से लेकर कई दूसरे उत्पाद भी। रियलिटी शो को अपने कुल राजस्व का 30 से 40 फीसदी मोबाइल एसएमएस से मिलता है,तो यह अलग बाज़ार है। इसके लिए प्रतियोगियों के हुनर और व्यक्तित्व को इतनी चतुराई से बेचा जाता है कि दर्शक उनसे जुड़ा महसूस करे। 

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि रियलिटी शो आज सैकड़ों लोगों के हुनर को मंच देकर उनके ख्वाबों को पूरा कर रहे हैं। एक दूसरा सच यह भी है कि इन रियलिटी शो का हिस्सा बनने के लिए लाखों लोग इस कदर बेकरार हैं कि वे बिना आत्म-निरीक्षण के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के जाल में फँस रहे हैं। कई बच्चे रियलिटी शो के जरिए ‘कम मेहनत में बड़े फल’ का अरमान देख रहे हैं। करीब एक साल पहले एसोचैम के एक सर्वे में यह बात सामने आई भी थी कि 76 फीसदी बच्चे घर में अकेले होने पर टेलीविजन पर रियलिटी शो देखते हैं।

 

टेलीविजन चैनलों को कम मगजमारी में विज्ञापनों के बाज़ार में बड़ा हिस्सा बटोरने के लिए रियलिटी शो मुफीद लगते हैं। और कम वक्त में अधिक धन और विशाल लोकप्रियता की चाह लोगों को रियलिटी शो का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करती है। एक लिहाज से इसमें गलत कुछ नहीं है। रियलिटी शो की तैयारियों के लिए ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुल रहे हैं, कंप्यूटर सीडी व किताबें आ रही हैं तो इसमें भी गलत कुछ नहीं है। लेकिन, किसी भी रियलिटी शो का हिस्सा बनने से पहले प्रतियोगियों को पहला सवाल खुद से पूछना होगा कि क्या वास्तव में उनकी मंजिल की राह रियलिटी शो से होकर गुजरती हैं और क्या इस राह पर चलने की वास्तविक योग्यता उनमें है?

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