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रामचरितमानस और रामायण अब भोजपुरी में भी

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7 मई 2011

पटना। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन को लेकर विभिन्न भाषाओं में कई पुस्तकों तथा ग्रंथों की रचना हुई, जिनमें सर्वाधिक चर्चित रामचरितमानस और रामायण है। ये दोनों ग्रंथ अब लोगों को भोजपुरी में भी उपलब्ध हैं। इनका भोजपुरी अनुवाद बिहार के बक्सर जिले के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने किया है।
 
क्षेत्र के लोग भोजपुरी में अनुवादित 'राम रसायन' का श्रद्धापूर्वक पाठ कर रहे हैं। भोजपुरी भाषा को भले ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सका हो, लेकिन यहां के लोगों को गर्व है कि उनकी अपनी भाषा में इस महान धार्मिक ग्रंथ का तो सृजन हो ही गया।

बक्सर जिले के राजपुर थाना क्षेत्र के दुदुरा गांव में जन्मे पंडित बद्री नारायण दुबे ने भगवान राम के चरित्र को उकेरने वाली अपनी पुस्तक का नाम 'राम रसायन' रखा है।

उन्होंने बताया कि शुरू में साहित्य से उनका कोई लगाव नहीं था। लेकिन 31 जुलाई, 1993 को जब वह राजस्व पदाधिकारी के रूप में कार्यरत थे, भगवान राम के भक्त हनुमान ने उनके सपने में आकर उन्हें भोजपुरी में रामचरितमानस लिखने का आदेश दिया।

उन्होंने इस बात की जानकारी अपने गुरु वृंदावन के महामृत्युंजय मौनी बाबा को दी। उन्होंने कहा कि यह आशीर्वाद है। वह बताते हैं कि तभी से अचानक उनके मन में कविता के भाव आने लगे और छंद बनने लगे। इसके बाद उन्होंने राम की सम्पूर्ण लीलीओं को भोजपुरी छंदों में पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध किया।

वह बताते हैं कि 'राम रसायन' महर्षि वाल्मीकि के 'रामायण' तथा गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' का भोजपुरी भाषा में रूपांतर है। इस पुस्तक के प्रथम खंड में बाल कांड, द्वितीय खंड में अयोध्या कांड, तृतीय खंड में अरण्य कांड, किष्किंधा एवं सुंदर कांड और चौथे खंड में युद्ध कांड तथा उत्तर कांड शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि 'राम रसायन' को दोहा एवं छंद के माध्यम से भोजपुरी भाषा में तैयार किया गया है, जिसमें 1802 छंद, 710 दोहा, 100 सोरठ, 331 चौपाई शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इसमें 99 भजन भी शामिल किए गए हैं। दुबे प्रारंभ से ही रामभक्त रहे हैं। इन दिनों वह राम के जीवन पर आधारित प्रवचन भी करते हैं। वह कहते हैं कि प्रवचन से राम के आदर्शो को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।

बक्सर एवं आसपास के लोग भी उनके सादे विचार और आदर्श मूल्यों की प्रशंसा करते हैं। स्थानीय निवासी उमाकांत त्रिपाठी के अनुसार अपनी भाषा में रामचरित मानस आ जाने से वह प्रतिदिन इसका पाठ करने लगे हैं

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