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मूवी रिव्यूः रब्बा मैं क्या करूं

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3 Aug, 2013
Mumbai.
बरसों पहले बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी का रेकॉर्ड बना चुकीं 'आरजू', 'गीत', 'आंखें' जैसी फिल्मों के मेकर रामानंद सागर की अगली पीढ़ी बेशक स्मॉल स्क्रीन पर अपनी पहचान बनाने में कुछ हद तक कामयाब रही। इस फिल्म को देखकर लगता है कि कुछ नया करने के बजाय अगर सागर फैमिली रामानंद सागर की किसी पुरानी सुपर हिट म्यूजिकल फिल्म का रीमेक बनाए तो शायद उनकी फिल्म कमाई और कामयाबी का नया इतिहास रच पाए।

इस फिल्म में एक बार फिर कहानी के नाम पर वही मसाले परोसे गए, जो इससे पहले आप दर्जनों बार देख चुके हैं। दरअसल, फिल्म मेकर को किसी फैमिली में होने वाली शादी के माहौल में ऐसा प्लॉट मिल जाता है, जहां हिट होने वाला हर मसाला फिट किया जा सकता है। इन दिनों दिल्ली हर फिल्म मेकर की पहली पसंद बनती जा रही है। प्रॉड्यूसर मोती सागर की इस फिल्म का तानाबाना भी दिल्ली की लोकेशन पर रचा गया है। लेकिन डायरेक्टर ने दिल्ली की खूबसूरती को शूट करने के बजाय फिल्म को फाइव स्टार होटल और फार्महाउस में निबटाकर दिल्ली की ब्यूटी को नजरअंदाज किया है।

कहानी: स्नेहा (ताहिरा कोचर) ने जब से होश संभाला, तब से अपने मम्मी-पापा को एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते ही देखा। अपने मम्मी-पापा का ऐसा हाल देखकर उसने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि वह अपने दोस्त साहिल (आकाश चोपड़ा) के साथ ही शादी करेगी। स्कूल, कॉलेज की स्टडी पूरी करने के करीब 15 साल के लंबे वक्त में साहिल और स्नेहा एक दूसरे को दिल से चाहने लगे थे।

स्नेहा के पापा (राकेश बेदी) और साहिल की मां (अनुराधा पटेल) भी इन दोनों की दोस्ती को अच्छी तरह से जानते थे। इसलिए दोनों फैमिली ने इनकी शादी को मंजूरी दे दी। अब स्नेहा और साहिल के घर में शादी की तैयारियां शुरू होती हैं। साहिल का चचेरा भाई श्रवण (अरशद वारसी) खुद को लव गुरु समझता है। श्रवण खुद शादीशुदा है और अपनी खूबसूरत बीवी (रिया सेन) की आंखों में धूल झोंककर खूबसूरत लड़कियों के साथ वक्त गुजारता है। श्रवण साहिल को भी अपने जैसा बनाना चाहता है, इसलिए शादी से पहले उसे बीवी को बेवकूफ बनाने की कला सिखाने में लगा है।

इसी बीच शादी में शामिल होने के लिए साहिल के मामा पोपट भाई (परेश रावल) भी आ जाते हैं, जो अपनी पत्नी बबीता (सुष्मिता मुखर्जी) को बेवकूफ बनाकर उसी की आंखों के सामने दूसरी महिलाओं के साथ मौज मस्ती करने में बिजी रहते हैं। साहिल के मामा, अंकल सूर्या (शक्ति कपूर) भी अपनी बीवियों को बेवकूफ बनाकर अय्याशी करते हैं। साहिल को भी लगता है कि अगर श्रवण के बताए रास्ते पर शादी के बाद चला जाए तो लाइफ को फुल मस्त बनाया जा सकता है। लेकिन अपने लव गुरु के चक्रव्यूह में फंसकर साहिल की शादी अब टूटने के कगार पर जा पहुंची है।

ऐक्टिंग: लीड जोड़ी आकाश चोपड़ा और ताहिरा कोचर को अभी ऐक्टिंग की एबीसी सीखनी चाहिए। साहिल के मामा के रोल में परेश रावल खूब जमे हैं। लव गुरु बने अरशद वारसी निराश नहीं करते। कलाकारों की भीड़भाड़ के बीच राज बब्बर इकलौते ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी दमदार एंट्री दर्ज कराई है।

डायरेक्शन: करीब दो घंटे की फिल्म भी अगर दर्शकों को सीट से बांध न पाए तो इसे डायरेक्शन की कमजोरी कहा जाएगा। बेशक, डायरेक्टर ने शादी के माहौल पर बनी इस फिल्म में लव गुरु का तड़का भी लगाने की कोशिश की है। लेकिन यहां भी डायरेक्टर अमृत सागर कुछ खास नहीं कर पाए। ऐसे में अरशद वारसी, परेश रावल और शक्ति कपूर जैसे मंझे हुए कलाकारों ने अपने दम पर फिल्म को कुछ रफ्तार देने की कोशिश जरूर की है। लेकिन इसका क्रेडिट डायरेक्टर के बजाय इन्हीं को मिलना चाहिए।

संगीत: पंजाबी लोकगीतों को बैकग्राउंड में डिस्को की धुनों पर पेश करने के अलावा डायरेक्टर जोड़ी सलीम-सुलेमान ने कुछ नया नहीं किया।
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