24 अप्रैल 2011
वाराणसी। दुनिया भर में धर्मनगरी के नाम से मशहूर भारत के प्रचीनतम शहर वाराणसी में एक अनूठा बैंक है, जो पैसे से नहीं बल्कि राम नाम से चलता है। इस बैंकसे कर्ज के रूप में पैसे नहीं, बल्कि राम नाम का ऋण मिलता है। राम रमापति बैंक के नाम से जाना जाने वाला यह बैंक वाराणसी के दशाश्वमेध घाट इलाके में है। 84 वर्ष पहले शुरू किए गए इस बैंकके कई लाख खातेदार (सदस्य) हैं। बैंक के व्यवस्थापक सुमित मेहरोत्रा ने आईएएनएस से कहा कि राम रमापति बैंक का उद्देश्य लोगों में राम के प्रति आस्था जगाना और उन्हें सांसारिक समस्याओं से मुक्ति दिलाना है।
उन्होंने बताया कि पांच पीढ़ी पहले के उनके पूर्वज (दादा के दादा) दास छन्नू लाल ने अपने गुरु के कहने पर इसकी शुरुआत की थी। तब से यह परम्परा चली आ रही है। हर पीढ़ी में परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बैंक का प्रबंधक होता है।
इस बैंक में खाता खोलना और ऋण लेना काफी आसान है। अपनी मनोकामना को बैंक के आवेदन-पत्र में भरने के बाद बैंक आपको सवा लाख राम नाम का ऋण देता है। मेहरोत्रा के मुताबिक सवा लाख राम नाम के ऋण का मतलब यह है कि आपको आठ महीने और 10 दिन के अंदर सवा लाख राम नाम लिखकर बैंक को वापस करना होता है। बैंक अपने हर खातेदार (सदस्य) को कागज, स्याही और कलम उपलब्ध कराता है।
मेहरोत्रा कहते हैं कि नियमों के अनुसार प्रतिदिन नहा-धोकर 500 बार रामनाम लिखा जा सकता है। खाताधारियों को इस निर्धारित अवधि के दौरान लहसुन, प्याज, मांसाहार और मद्यपान से भी दूर रहना होता है।
बैंक के प्रबंधक दास कृष्ण चंद्र के मुताबिक इस समय बैंक के पास 18 अरब 96 करोड़ 40 लाख हस्तलिखित रामनाम की लिपियां हैं, जो भक्तों ने लिखकर वापस की है।
बैंककर्ज देने में जाति, धर्म का भेदभाव नहीं करता। कृष्ण चंद कहते हैं कि राम का अवतार किसी एक धर्म के लिए नहीं, बल्कि जीव मात्र के लिए हुआ। इसलिए किसी भी धर्म से कोई भी महिला-पुरुष बैंक का खाताधारक बनकर राम नाम का ऋण ले सकते हैं।
यह पूछने पर कि क्या आज के वैज्ञानिक और सूचना प्रौद्योगिकी के जमाने में इस तरह की आस्था रूढ़िवादिता नहीं कही जानी चाहिए, मेहरोत्रा ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि इस बैंक के सदस्य डॉक्टर, इंजीनियर, आला-अफसर और यहां तक कि बॉलीवुड के सितारे भी हैं। बैंक अपने हर सदस्य का नाम गोपनीय रखता है।
बैंक की देखभाल करने वाले मेहरोत्रा परिवार के सदस्य अपनी जरूरतों के लिए अन्य काम करते हैं और साथ ही इस बैंक के लिए भी समय निकालते हैं, ताकि इस परंपरा को कायम रखा जा सके।
राम रमापति बैंक से कर्ज लेने वाले अतुल कुमार ने बताया कि उनके माता-पिता की केवल तीन बेटियां थीं। अतुल की मां ने 40 वर्ष पहले इस बैंक से राम नाम का ऋण लिया था और तब उनका जन्म हुआ।
इस बैंक में आस्था रखने वाली संध्या बताती हैं कि उनकी बेटी की शादी नहीं हो रही थी। उन्होंने इस बैंक से राम-नाम का ऋण लिया और फिर कर्ज चुकाने से पहले ही बेटी की शादी हो गई।
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