24 मार्च 2012
कोलम्बो | जेनेवा में श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव के पारित होने के बाद कोलम्बो भारत के खिलाफ कभी गरम तो कभी नरम तेवर दिखा रहा है। प्रस्ताव में तमिल लड़ाकों के खिलाफ संघर्ष के दौरान हुए मानवाधिकार उल्लंघनों पर सवाल उठाए गए हैं। राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने जहां प्रस्ताव का समर्थन करने वाले देशों को चेतावनी दी है कि उन्हें आतंकवाद के खामियाजे भुगतने को लेकर चिंतित होना पड़ेगा, वहीं सरकार के एक मंत्री ने प्रस्ताव के असर को हल्का करने के लिए भारत की थोड़ी प्रशंसा की है।
प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वाले 24 देशों में भारत भी शामिल था। लेकिन भारत ने ऐसे महत्वपूर्ण संशोधनों के बाद प्रस्ताव का समर्थन किया, जो श्रीलंकाई मामलों में संयुक्त राष्ट्र या अन्य की दखल रोकते हैं।
लंकापेजडॉटकॉम ने राजपक्षे के हवाले से कहा है कि बाहरी ताकतों को देश की सम्प्रभुता को खतरा पैदा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
राजपक्षे ने शुक्रवार को संकल्प लिया कि उनकी सरकार देश के उत्तरी हिस्से में विकास और सुलह कार्यक्रमों को जारी रखेगी। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि उन्हें साजिशकर्ताओं, अवसरवादियों और देशद्रोहियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
राजपक्षे ने 47 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने वाले 15 देशों की उनके समर्थन के लिए तथा आठ देशों की मतदान में हिस्सा न लेने के लिए प्रशंसा की।
लेकिन राजपक्षे सरकार के मंत्री मैत्रीपाला सिरिसेना ने कहा कि प्रस्ताव भारत द्वारा पेश संशोधनों के साथ पारित हुआ, ताकि संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न कर सकें।
सिरिसेना ने कहा कि इन संशोधनों ने यह सुनिश्चित कराया है कि सरकार की सहमति के बगैर कोई दखल नहीं किया जा सकता।
एक अन्य मंत्री डुल्लास अलहप्पेरुमा ने श्रीलंकाई जनता से आग्रह किया कि उन्हें प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए भारत से घृणा नहीं करनी चाहिए।
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