12 मई 2011
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन अध्यक्ष केशब महिंद्रा और छह अन्य को ज्यादा कठोर सजा दिलाने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दायर की गई याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
गैस पीड़ितों के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं कहना है कि वे न्यायालय के फैसले से निराश हैं लेकिन हताश नहीं। न्यायालय के इस फैसले के बाद केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि सरकार न्यायालय के फैसले का पालन करेगी।
ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1996 के अपने फैसले में गैस त्रासदी मामले के आरोपियों के खिलाफ लगाई गई गैर इरादतन हत्या की कड़ी धारा को बदलकर लापरवाही से मौत की धारा में तब्दील कर दिया।
भोपाल की एक अदालत ने पिछले वर्ष मामले की सुनवाई करते हुए आरोपियों को लापरवाही से मौत का दोषी करार देते हुए उन्हें दो वर्षो की सजा सुनाई। इसके बाद सातों को शीघ्र ही जमानत मिल गई।
सीबीआई आरोपियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा चलाए जाने की अनुमति देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसके तहत आरोपियों को कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, 'यह गलत एवं आधारहीन' होगा।
सीबीआई ने दलील दी थी कि मामले की जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ अतिरिक्त साक्ष्य सामने आए थे लेकिन निचली अदालत सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के फैसले की वजह से असहाय थी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "यह मानना (निचली अदालत वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के चलते विवश हो गई) गलत है।" खंडपीठ में प्रधान न्यायाधीश के अतिरिक्त न्यायाधीश अल्तमस कबीर, न्यायाधीश आर.वी. रवींद्रन, न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी एवं न्यायाधीश आफताब आलम शामिल थे।
ज्ञात हो कि दो और तीन दिसम्बर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसे मिथाइल आइसोसाइनेट (मिक) गैस से तत्काल 3000 लोगों की मौत हो गई जबकि यह संख्या बाद में 25,000 तक पहुंच गई। यही नहीं इस गैस ने 100,000 लोगों को प्रभावित किया और अनुमान है कि इसके बुरे प्रभाव की चपेट में अभी भी 500,000 से अधिक लोग हैं।
पीड़ितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने त्रासदी के शिकार लोगों को न्याय दिलाने में असफल होने पर सीबीआई को जिम्मेदार ठहराया।
त्रासदी में बचने वाले एवं भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा, "हम धमार्थ की मांग नहीं कर रहे हैं, हम न्याय की मांग कर रहे हैं।"
उधर, सरकार का कहना है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करेगी।
मोइली ने कहा, "इस मामले के सामने आने के बाद मंत्रियों के समूह ने उपचारात्मक याचिका दायर करने का निर्णय लिया। भारत के महान्यायवादी की राय प्राप्त करने के बाद हमने उपचारात्मक याचिका दायर की थी और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। हम न्यायालय के फैसले का पालन करेंगे।"
सीबीआई के प्रवक्ता धरणी मिश्रा ने कहा, "इस मामले की सुनवाई अभी भी भोपाल की एक अदालत में चल रही है और हमें उम्मीद है कि हम मामले को वहां बेहतर तरीके से रख सकेंगे।"
भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि सरकार त्रासदी के शिकार लोगों को न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रही है।
इस मामले के आरोपियों में केशब महिंद्रा के अलावा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक विजय गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदर, कर्मशाला प्रबंधक जे.एन. मुकुंद, उत्पादन प्रबंधक एस.पी. चौधरी, संयंत्र अधीक्षक के.वी. शेट्टी और उत्पादन सहायक एस.आई. कुरैशी का नाम शामिल है।
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