9 मई 2011
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवादित स्थल के सम्बंध में सुनाए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को अजीब और आश्चर्यजनक करार देते हुए सोमवार को उस पर रोक लगा दी।
30 सितंबर 2010 को उच्च न्यायालय ने स्थल को मामले के तीनों पक्षकारों के बीच बराबर-बराबर भाग में बांटने का आदेश दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अफताब आलम और न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा ने कहा कि विवादित स्थल को बांटने का आदेश देकर उच्च न्यायालय ने मामले में पूरी तरह से नया आयाम दे दिया।
न्यायालय ने कहा, "यह एक असाधारण फैसला है जिसके क्रियान्वयन पर रोक लगानी पड़ेगी।"
न्यायाधीशों ने कहा, "यह एक अजीब और आश्र्चयजनक फैसला है जिसकी किसी भी पक्ष ने सराहना नहीं की और इस लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
मामले के सभी पक्षों की अपील को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक पीठ के सात जनवरी 1993 और 13-14 मार्च 2002 के विवादित स्थल पर यथा स्थिति बनाए रखने का फैसला अब भी प्रभावी रहेगा।
उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए खंडपीठ ने कहा कि इस समय कम से कम उच्च न्यायालय के फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के बारे में सभी पक्ष एकमत हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में बने अस्थाई मंदिर में पूजा की अनुमति देते हुए केंद्र सरकार द्वारा विवादित स्थल के चारों ओर अधिग्रहित 67.703 एकड़ क्षेत्र में किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगा दी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितम्बर 2010 के अपने फैसले में कहा था कि वर्ष 1528 में एक मंदिर को गिराकर वहां पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया गया और उस स्थल पर 1992 में मस्जिद को ढाहकर एक अस्थाई राम मंदिर का निमार्ण करवाया गया था, जहां वास्तव में भगवान राम का जन्म हुआ था।
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