22 अगस्त 2011
कोलकाता। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को विदेशों के मुकाबले देश में पेटेंट आवदेनों की कम संख्या पर अफसोस जताया और कहा कि देश को और अधिक नोबेल पुरस्कार हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
साहा इन्स्टिच्युट आफ न्यूक्लियर फिजिक्स के हीरक जयंती समारोह के समापन मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा, "यह दुख की बात है कि भारत से होने वाले पेटेंट आवेदनों की संख्या विकसित देशों और कई विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।"
देश के विकास में परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने देश के परमाणु संयंत्रों के सुरक्षा मानक मजबूत बनाने का आह्वान किया।
उन्होंने हालांकि देश में परमाणु संस्थानों की सुरक्षा को जरूरी बताया और कहा कि इस मुद्दे पर समझौता नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा, "हमें भारत में परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल अति सुरक्षित मानकों के साथ सुनिश्चित करना है। इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा बढ़ाने में योगदान के लिए मैं साहा संस्थान और इस तरह के अन्य संस्थानों का आह्वान करूंगा।"
उन्होंने कहा कि देश के शोध संस्थानों और विदेशी शोध संस्थानों के बीच बेहतर सहयोग स्थापित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शोध संस्थान अलग-थलग रहकर काम नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि देश के शिक्षा संस्थानों और विदेशी शोध संस्थानों के साथ सीधा रिश्ता बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार इसके लिए हर स्तर पर काम कर रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा, "हमारा उद्देश्य देश में और नोबेल पुरस्कार विजेता बनाने की होनी चाहिए।"
मनमोहन सिंह ने जोर देकर कहा कि उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए दरवाजे भारत के लिए खुले हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि देश के वैज्ञानिक एक अंतर्राष्ट्रीय मानसिकता एवं दृष्टिकोण विकसित करने के लिए अवसरों का इस्तेमाल करेंगे।
उन्होंने कहा, "हमारे देश के शोध संस्थानों और विदेश के शोध संस्थानों के बीच महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग होना चाहिए।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "शोध संस्थान अलग-थलग पड़कर अपना कार्य नहीं कर सकते। अकादमी और संस्थानों के बीच करीबी सम्पर्क होना चाहिए। हमारी सरकार इस प्रक्रिया को प्रत्येक स्तर पर बढ़ा रही है।"
उन्होंने कहा कि देश की समग्र अर्थव्यवस्था में अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अधिक निवेश को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि विज्ञान और अनुसंधान की दिशा में युवाओं को आकृष्ट किया जा सके।
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