साल 2019 में महाशिवरात्रि का पर्व 4 मार्च सोमवार को मनाया जाने वाला है। भगवान शिवजी देवों के देव हैं। महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के जन्म के रूप में मनाया जाता है। भगवान शिव को कई नामों से जाना जाता है। जैसे— भोलेनाथ, वशंकर, शिवशम्भू, शिवजी, नीलकंठ, रूद्र आदि। शिवशंकर हिंदू धर्म के लोगों के सबसे लोकप्रिय देवता हैं। इनकी इस लोकप्रियता का कारण इनका भोलापन और इनकी सरलता है। कहते हैं कि शिवजी बहुत भोले हैं, उनसे सच्चे दिल से कुछ मांगो तो वह जरूर मिलता है। सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि हिंदू देवी-देवता और असुरों के राजा भी इनके उपासक हैं। आज भी दुनिया भर में हिंदू धर्म को मानने वालों के लिये भगवान शिव पूज्य हैं।
महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त, New Delhi, India के लिए | |
निशीथ काल पूजा मुहूर्त्त | 24:08:03 से 24:57:24 तक |
अवधि | 0 घंटे 49 मिनट |
महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त | 06:43:48 से 15:29:15 तक 5th, मार्च को |
दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को इस पर्व का आयोजन होता है। जबकि दूसरी ओर पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही
दिन पड़ती है। इस दिन शिव के भक्त पूरे विधि-विधान से व्रत रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इस दिन शिव को बेल पत्थर और दूध चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे दिल से व्रत रखने वालों के सारे कष्ट और दुख-दर्द भगवान भोले हर लेते हैं और उसका जीवन खुशियों से भर देते हैं।
वैसे तो भगवान शिव की पूजा करने या उन्हें रिझाने के कोई कड़े नियम नहीं है। क्योंकि हर सोमवार को भगवान शिव का दिन होता है, लोग इस दिन भी साधारण तरह से उनकी पूजा करते हैं। शिवरात्री के दिन भी केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर जागरण करने मात्र से यह व्रत संपन्न हो जाता है और भगवान शिव मेहरबान हो जाते हैं। ज्योतिषियों का मानना है कि यदि शिवरात्रि के एक दिन पहले चतुर्दशी निशीथव्यापिनी हो तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। अर्थात् जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो जाए और रात का आठवां मुहूर्त चतुर्दशी तिथि को पड़े तो उसी दिन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। जबकि यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो इसके एक दिन पहले ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने के दौरान सिर्फ एक समय भोजन करना चाहिए और पूरी तरह से सात्विक जीवन जीना चाहिए।
वैसे तो देशभर में करोड़ों लोग शिवरात्रि का व्रत रखते हैं। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिन्हें इसकी सही व्रत ओर पूजा विधि की जानकारी होती है। इस दिन यदि पूरे विधि विधान से भगवान शिव की पूजा की जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि का व्रत रखने से पूर्व सबसे पहला नियम यह है कि आपको बाहर के साथ अंदर से भी शुद्ध होना चाहिए। अर्थात् मन में किसी प्रकार का द्वेष, बुराई और नकारात्मकता नहीं होनी चाहिए।
इस व्रत की शुरुआत करते वक्त आपका पूजा स्थल पूर्व दिशा में होना चाहिए।
पूजा के लिए मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरें और इसके ऊपर बेलपत्र या बेर रखें।
पूजा में आक-धतूरे के फूल, चावल, फल, दही आदि शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए।
यदि आपके घर में शिवलिंग नहीं है तो मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा कर सकते हैं। अगर आपके घर के आस-पास कोई शिव मंदिर है तो वहां भी एक बार जाकर भगवान के दर्शन करें और शिवलिंग की पूजा करें।
इसके बाद शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। इस दिन शिव के नाम का जागरण करने का भी विधान है।
शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना बेहतर होता है। हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं। रात को व्रत खोलने से पहले मंदिर के दर्शन जरूर करने चाहिए।
भोले भंडारी का दिन शिवरात्रि हिंदू धर्म का एक बड़ा पर्व है। भोले की सरलता और उनकी निष्पक्ष भावना के चलते लोगों की इनमें गहरी आस्था है। इसलिए इस पर्व को लोग पूरी श्रद्धा और लगन के साथ मनाते हैं। शिव का व्रत भांग, धतूरे और बेर के बिना अधूरा माना जाता है। हांलांकि महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है लेकिन प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर इसे मनाया जाता है। ज्योतिषियों का कहना है कि शिवरात्रि का दिन बहुत शुभ और खास होता है। कोई भी व्यक्ति बिना मुहूर्त के इस दिन अपना शुभ कार्य संपन्न करा सकता है।
गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आता है जिसके चलते किसी पर भी इस दिन का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है, इसलिए कहते हैं कि शिव की पूजा करने से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। शिव की पूजा करने और शिवरात्रि का व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार होता है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर साफ जल से स्नान करें और पुष्पों से भगवान शिव के लिए सुंदर मंडप तैयार करें। अब मंदिर में कलश स्थापित करें और फल फूल आदि से मंदिर को संपन्न करें। अब गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति व नंदी की चांदी की मूर्ति की स्थापना करें। यदि आपको ये मूर्तियां न मिलें तो आप घर पर मिट्टटी का शिवलिंग बनाकर भी पूजा कर सकते हैं। पूजा में फल, फूल, कपूर, रोली, मोली, चावल, दूध, दही, सुपारी, कमल गटटे, धतूरा, विल्वपत्र, विजया, नारियल, प्रसाद और घी रखें। बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए इसे पूजा में रखना न भूलें। इस दिन जागरण और कीर्तन भजन भी किए जाते हैं। जागरण के दौरान भगवान शिव का चार बार रूद्राभिषेक करना चाहिए और चार बार
आरती करनी चाहिए। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंज्य मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।। इस दौरान नीचे दिए गए मंत्र का जाप करना भी बहुत शुभ होता है।
“ ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं,
वन्दे जगत्कारणम्l वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ll
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्l वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं,
वन्दे शिवंशंकरम् ll”
शिवरात्रि के दिन विधि विधान से पूजा करने से भूत प्रेत डरते हैं और घर में यदि नकारात्मक शक्तियों मौजूद हों तो उनका भी खात्मा होता है। धन धान्य की वृद्धि होती है और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
शिवरात्रि त्यौहार को मनाने के पीछे कई कथाएं जिम्मेदार हैं। सबसे पुरानी कथा यह है कि इस दिन निषादराज नाम का व्यक्ति अपने कुत्ते के साथ शिकार के लिए गया किन्तु दुर्भाग्यवश उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह निराश और थक हारकर भूखा प्यासा एक तालाब के किनारे बैठ गया, जहां बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। उसने अंजाने में बिल्व-
पत्र के कुछ फूल तोड़े जो शिवलिंग पर गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का, इस दौरान जल की कुछ बूंदे शिवलिंग पर जा पहुंची। ऐसा करते वक्त उसका एक तीर नीचे गिर गया। इसे उठाने के चक्कर में वह नीचे झुका और उसका सिर शिव लिंग को छू गया। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की
पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के दौरान जब यमराज उसे लेने आए तो भगवान शिव ने उसके प्राणों की रक्षा की। तभी से यह बात जगजाहिर हो गई कि भोले शंकर जब अंजाने में हुई इस पूजा से इतने प्रसन्न हुए कि उसके प्राणों की रक्षा की तो यदि कोई दिल से उनकी पूजा करेगा तो वह कितने खुश होंगे और उनकी कितनी कृपा होगी। तभी से शिवरात्रि पर्व को लेकर लोगों में गहरी आस्था है।
शिवजी बहुत भोले हैं वह छोटी-मोटी गलतियों को आसानी से माफ कर देते हैं। इसलिए उन्हें भोले भंडारी भी कहते हैं। लेकिन यह भी जान लें कि शिव जी जितने सरल हैं उनका गुस्सा उतना ही कठिन भी है। शिव के गुस्से के आगे पूरा ब्रह्मांड हाथ खड़े कर देता है। इसलिए इस दिन कोई भी ऐसा काम न करें जिससे शिवजी को गुस्सा आए। इस दिन यदि आप मीट, मुर्गो, शराब या धूम्रपान आदि करते हैं तो शिवजी आपपर क्रोधित हो सकते हैं इसलिए ऐसा न करें।
आशा करते हैं कि ऊपर दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। आपको महशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
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