द्वारा: गौरी पालीवाल
हिन्दी सिनेमा में चरित्र अभिनेताओं के संघर्ष की राह आसान नहीं होती। इन्हीं रास्तों में से गुज़र रहे हैं इमरान हसनी। 'पान सिंह तोमर' में इरफान खान के बड़े भाई की भूमिका निभाकर चर्चा में आए इमरान हसनी अब इंडस्ट्री में नयी पहचान गढ़ रहे हैं। यूं कशिश व रिश्तों की डोर जैसे सीरियल और ए माइटी हार्ट जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्में उनके झोले में पहले ही थीं। एक ज़माने में सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे इमरान से अभिनय के शौक व उनकी चुनौतियों के बारे में बात की गौरी पालीवाल ने।
सवाल-इमरान जी, आपके बारे में मुझे मालूम पड़ा है कि आप सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। यह एक्टिंग का कीड़ा कहां और कब लग गया?
जवाब-एक्टिंग का कीड़ा बचपन से ही लगा हुआ है। मैं स्कूल के वक्त घर के भीतर दीवाली पर एक 'प्ले' करते थे। भोपाल में बहुत बड़ा घर था। लोग आ जाते थे आसपास के। इस नाटक में एक्टिंग भी करता और डायरेक्ट भी करता था। स्कूल पूरा करने के बाद परिवार जयपुर आ गया। यहां भी इसी तरह का काम करता था। हालांकि, उस वक्त एक्टिंग को प्रोफेशन बनाने जैसा कोई ख्याल दिमाग में नहीं था। उस दौर में हर माता-पिता चाहते थे कि बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बने। मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहता थ। कुछ अलग करना चाहता था। उसी वक्त कंप्यूटर आना शुरु हुए थे। वो क्षेत्र बड़ा रोचक लगा है। कंप्यूटर की फील्ड बहुत तेजी से बदलती है। आपको बदलती तकनीक से साथ कदम मिलाना होता है। एक रचनात्मकता की जरुरत वहां भी होती है। तो बस आठ-नौ साल उसी फील्ड में लगा दिए।
सवाल-तो फिल्मी दुनिया में आना कैसे हुआ।
जवाब-मैं मॉरीशस में था। वहां अपनी आईटी कंपनी का प्रमुख था। कंपनी में एक ग्राफिक्स सेक्शन था। केएफसी के लोग आए। मैं उनसे मिला तो बातों बातों में केएफसी ने मुझे एक विज्ञापन करने का ऑफर दे दिया। वहां से एक्टिंग की तरफ मुड़ गया। वैसे, मॉरीशस के बाद मुंबई भी नौकरी के सिलसिले में ही आना हुआ था। जीडो कंपनी का मुंबई ऑपरेशन हेड करने के लिए यहां आया। लेकिन, किस्मत ने एक्टिंग की तरफ ऐसा मोड़ा कि सब काम छोड़ कर इसी में लग गया।
सवाल-आपका ताल्लुक छोटे और हिन्दी भाषी शहर से है। तो हिन्दीभाषियों के लिए बॉलीवुड की मायावी दुनिया क्या है।
जवाब-फिल्म तो हिन्दी में ही बनती है। हिन्दी माहौल से होने की वजह से जानकारी अच्छी खासी है। हालांकि, मेरी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी रहा, लेकिन हिन्दी भी अच्छी है। और मुझे लगता है कि हिन्दी का ज्ञान होने की वजह से मुझे सहायता ही मिली है। साफ हिन्दी बोलना एक गुण है। हां, ये अजीब लगता है कि स्क्रिप्ट रोमन में आती है। मैं तो कहता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए। मुझे तो बॉलीवुड शब्द से भी चिढ़ है। हॉलीवुड की नकल। क्या हम अपनी इंडस्ट्री के लिए एक कायदे का शब्द नहीं खोज सकते।
सवाल-एक्टिंग में बड़ा ब्रेक कैसे मिला?
जवाब-मेरे एक्टिंग करियर की शुरुआत टेलीविजन से हुई। मैं रवि राय से मिलने गया था। मैंने फोटो दिखाए तो उन्होंने सीधे कहा कि एक किरदार है सीरियल में एंड्रू का, उसे कर लो। उन्होंने न ऑडिशन किया। कशिश सीरियल था, जिसमें मुख्य विलेन था। उन्होंने बस मेरी चाल देखी थी, और इसी के आधार पर शायद यह फैसला किया था। तो पहले ब्रेक के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ी। इसके बाद पहली फिल्म तिंग्माशु धूलिया की गुलामी थी। पीरियड फिल्म थी। पिंडारियों पर। सनी देओल, समीरा रेड्डी वगैरह थे, और मेरा भी बहुत महत्वपूर्ण रोल था। लेकिन फिल्म बंद हो गई। इस फिल्म में काम सिर्फ कुछ सवालों के बाद मिल गया था। मसलन-तिग्मांशु ने पूछा कि घोड़ा चलाना आता है क्या? मैंने कहा, हां। घोड़ा चलाना भी आता है और तलवारबाजी भी आती है।
सवाल-फिल्मों में अमूमन आप चरित्र अभिनेता के तौर पर दिखायी दिए हैं। चरित्र अभिनेता के रुप में बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाना कितना आसान या मुश्किल है। और एक चरित्र अभिनेता का संघर्ष किस तरह का है।
जवाब-देखिए, यह आसान तो नहीं है। कुछ लोग अपना एक सर्किल बनाते हैं और उसी की मदद से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। मैं यह नहीं करना चाहता और न किया। मैं सिर्फ इसलिए किसी से दोस्ती नहीं कर सकता कि वो भविष्य में शायद फिल्म बनाएगा तो मुझे काम देगा। लेकिन, मुझे लगता है कि मैं चरित्र अभिनेताओं की भीड़ में अलग दिखता हूं। मेरे लुक्स में पश्चिमी और भारतीय का मिश्रण है। तो लुक की वजह से मुझे काम मिलता है और थोड़ी बहुत एक्टिंग तो कर ही लेता हूं...वरना सिर्फ दिखने की वजह से कौन काम देगा। (हँसते हुए)
सवाल-आपने 'अ माइटी हार्ट' और 'स्लमडॉग मिलिनियर' जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्में भी हैं। उनसे जुड़ना कैसे हुआ।
जवाब- 'अ माइटी हार्ट' का काम एक महिला देख रही थीं। मैं नाम भूल गया उनका। उनसे मैं मिला था। उन्हें तस्वीरें दी थीं। बाद में लंदन से फोन आया कि आप फिल्म कर रहे हैं। स्लमडॉग के लिए लवलीन टंडन से मुलाकात के बाद काम मिला। लेकिन, मेरा किरदार आखिर में इतना छोटा हो गया कि उसका जिक्र भी बेकार है।
सवाल-अंतरराष्ट्रीय फिल्मों और बॉलीवुड फिल्मों को शूट करने के तौर तरीकों में कितना फर्क देखते हैं और क्या।
जवाब-जमीन आसमान का अंतर है। यहां सैट पर जाकर तय किया जाता है कि कौन सा शॉट कैसे लेना है। वहां हर बात कागज पर तय होती है, और उसी योजना को क्रियान्वित किया जाता है। वहां पेपर वर्क बहुत होता है। खाने में क्या मिलेगा से लेकर कितने मिनट का ब्रेक होगा तक सभी बातें पहले से तय होती हैं। कुछ फ्रेंच फिल्में की हैं मैंने तो वहां भी यही होता है। यहां ऐसा नहीं होता। हालांकि, लोग बदल रहे हैं,लेकिन अभी वहां से तुलना नहीं की जा सकती।
सवाल-आपने डैनी बॉयल के साथ काम किया है। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा।
जवाब-बहुत अच्छा लगा। डैनी में कोई अहम नहीं दिखा। शूटिंग के दौरान जब मैं उनके साथ काम कर रहा था तो अगर वो जूस का कैन लेकर आते एक मेरे लिए भी लाते। वो शूटिंग के दौरान बैठते नहीं हैं। उन्होंने एक बार मुझसे कहा कि मैं शूटिंग के दौरान बैठता नहीं हूं। बाद में मैंने नोटिस भी किया कि वो बैठते नहीं है। हां, लंच वगैरह हो तो शायद बैठते ही होंगे। सारा काम आराम से करता है। चूंकि सब तय होता है, इसलिए कोई हड़बड़ी नहीं। सैट पर कोई शोर नहीं। हर आदमी को अपना काम मालूम है और बस वो ही करता है।
सवाल-पान सिंह तोमर बिलकुल अलग किस्म की फिल्म थी। इरफ़ान खान को तो फिल्म से नयी पहचान मिली ही, आपको भी उनके बड़े भाई के रुप में दर्शकों ने पहचाना। तो इस फिल्म को अपने करियर के लिए कितना महत्वपूर्ण मानते हैं।
जवाब- बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है मेरे लिए। पान सिंह के बाद मुझे बताना नहीं पड़ता कि मैं कौन हूं।
सवाल-इरफ़ान खान के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा। कुछ लोग कहते हैं कि वो बहुत झक्की हैं।
जवाब-बिलकुल झक्की नहीं है। बहुत ही सामान्य और हँसमुख है। बीहड़ में हम लोग शूटिंग करते थे, तो कई बार जरुरी चीजें नहीं पहुंच पाती थी, तो हम जमीन पर बैठकर ही अपनी बहस करते थे। वो शानदार एक्टिंग करते हैं या यूं कहें कि एक्टिंग करते ही नहीं हैं। कभी कभी किरदार से जुड़ा कोई सुझाव दे देते हैं और मैंने देखा है कि उनके सुझाव बहुत महत्वपूर्ण होते थे।
सवाल-बात पान सिंह तोमर की हुई तो हमें मालम है कि इस फिल्म को काफी दिनों डिब्बे में बंद रहना पड़ा। इस तरह की अलग फिल्मों को लेकर कॉरपोरेट हाउस नगेटिव एप्रोच क्यों रखते हैं।
जवाब-देखिए लोगों की मानसिकता है लव स्टोरी ही चलती है। अलग फिल्म आती है तो बनाने से लेकर रिलीज करने तक संघर्ष करता पड़ता है। इसके अलावा जो लोग तय करते हैं कि कौन सी फिल्म बनानी है कॉरपोरेट हाउस में, उनका अनुभव कम है या वे उस तरह की फिल्म बनाते हैं, जो उन्हें पसंद है। तो यहीं से गड़बड़ होती है।
सवाल-आपने टेलीविजन पर भी काफी काम किया है। कशिश, रिश्तों की डोर वगैरह में। टेलीविजन सीरियल्स को लेकर आपकी क्या सोच है। टेलीविजन में पैसा बहुत है, जबकि फिल्मों में सिर्फ अस्थिरता।
जवाब-टीवी से एक नियमित आय होती है, इसमें शक नहीं। यह बड़ी बात है। और मुझे लगता है कि टेलीविजन में भी कलाकार एक्टिंग करते हैं तो पता नहीं क्यों इसे हल्के में लिया जाता है। हां, टीवी में थोड़ी अर्जेंसी रहती है। हर काम तेजी से निपटाना है। फिल्म में ऐसा नहीं होता। मुझे तो सीरियल करने में बहुत मजा आया।
सवाल-फिलहाल कौन कौन से प्रोजेक्ट्स कर रहे हैं।
जवाब-कुछ प्रोजेक्ट्स हैं। निखिल आडवाणी का भी एक है। लेकिन, अभी किसी के बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकता।
सवाल-किस तरह का रोल करने की चाहत है, क्योंकि करेक्टर आर्टिस्ट के लिए अमूमन रोल लिखे नहीं जाते। और क्या इस बात की पीड़ा होती है?
जवाब-कोई एक रोल नहीं करना चाहता। मैं अपने स्वभाव के विपरित नकारात्मक किरदार निभाता बहूं तो मुझे मजा आता है और इक्तिफाक से इस तरह के रोल मिलते भी रहे हैं। तो उन्हें करना चाहता हूं।
सवाल-बॉलीवुड में कम बजट की फिल्मों को लेकर जो नया ट्रेंड पनप रहा है, उसे किस तरह से देखते हैं।
जवाब-छोटे बजट की फिल्में 'सेफ बिजनेस' हैं। अच्छी कहानी है तो फिल्म पैसा वसूल कर लेती है। कम से कम छोटे बजट की फिल्मों के जरिए नए प्रयोग हो रहे हैं, जो अच्छा है।
सवाल-कंप्यूटर की दुनिया से पूरी तरह दूर हो गए-या अभी भी कोई तार जुड़ा है।
जवाब-नहीं। मैं अब तो कुछ नहीं कर रहा हूं। हां, मेरे दोस्त-रिश्तेदार मुझसे सलाह माँगते रहते हैं तो मैं अब सलाहकार की भूमिका में रहता हूं।
सवाल-और क्या शौक हैं।
जवाब- शौक बदलते रहे हैं। शुरुआती दौर में संगीत का था तो गिटार बजाना सीखा। फिर हारमोनियम। कुछ दिन शिकार का शौक भी फरमाया, जिसका मुझे अफसोस है। इसके बाद घुड़सवारी भी की और मार्शल आर्ट भी...
गौरी-चलिए,इमरान जी...आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। उम्मीद है कि आप जल्द नए और सशक्त किरदार में फिर फिल्मों में दिखायी देंगे।
इमरान-धन्यवाद....
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