अरविंद केजरीवाल एक आम आदमी है. और कुछ भी नहीं.
ओह...ये कैसा आम आदमी है जो नौकरी छोड़कर देश के लिए लड़ रहा है? आम आदमी के लिए तो उसकी नौकरी बहुत अहम होती है और वो उसे बचाने या पाने के लिए ही कई बार भ्रष्टाचार के दलदल में उतरने को मजबूर हो जाता है?
हां, ये बात सही है आपकी। मैं इस मामले में अपने आपको थोड़ा किस्मत का धनी कहूंगा। कुछ लोगों को ईश्वर ऐसी परिस्थितियां देते हैं कि वो अगर नौकरी छोड़ दें तो खास फर्क नहीं पड़ता। मेरे हालात ऐसे थे कि मैंने जॉब छोड़ दी।
जॉब छोडऩे का कारण क्या था? क्या सिस्टम में रहकर सिस्टम से लड़ा नहीं जा सकता?
सिस्टम में रहकर सिर्फ अपने सर्वाइवल के लिए लड़ा जा सकता है। सिस्टम को बदलने के लिए सिस्टम से बाहर आना ही पड़ेगा। तो मैं अपने सर्वाइवल के लिए नहीं इस सिस्टम को बदलने के लिए फाइट करना चाहता था। इसलिए सिस्टम से बाहर आ गया।
जो सिस्टम से बाहर नहीं आ पा रहे हैं, वो क्या करें?
देखिये, लडऩा तो सबको पड़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जो सड़ा हुआ सिस्टम है उसे जैसा वो है वैसा स्वीकार नहीं करना है। मन से उसे नकारना है सबसे पहले। इसके लिए मुश्किलें भी आयेंगी तो उनका सामना करना होगा। दिक्कत ये है कि लडऩे से आसान लोगों को लगता है सिस्टम का हिस्सा बन जाना। उसमें फायदा भी होता है। रिश्वत देकर काम आसानी से हो जाता है और लेकर घर में पैसा आ जाता है। लेकिन यहीं से सिस्टम में, समाज में और हमारे अपने भीतर दीमक लगनी शुरू हो जाती है।
कुछ ब्यूरोक्रेसी के लोगों ने सिस्टम में रहकर सिस्टम से लडऩे की कोशिश की लेकिन उनका हश्र अच्छा नहीं हुआ?
हां, तो कैसे होगा हश्र अच्छा। ब्यूरोक्रेसी का काम क्या है। इंडियन ब्यूरोक्रेसी का काम है स्टेटस को मेनटेन रखना। आप इसके विरुद्ध जायेंगे तो कैसे हश्र अच्छा होगा। समाज को, देश को पॉलिटिकल विज़न देने का काम पॉलिटीशियंस का है। लेकिन हमारे पॉलिटीशियंस कितना और किस तरह का विज़न दे रहे हैं यह तो किसी से छुपा नहीं है।
अरविंद जी, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में पूरे देश के युवा आपके साथ आये हैं। अभी आपने कहा कि विजन देने का काम पॉलिटीशियंस का है तो आपको नहीं लगता कि युवाओं को पॉलिटिक्स को भी अब करियर ऑप्शन के रूप में देखना शुरू करना चाहिए। उनकी भागीदारी बढऩी चाहिए राजनीति में?
भागीदारी जरूर बढऩी चाहिए प्रतिभा जी। मैं इससे सहमत हूं लेकिन करियर ऑप्शन के रूप में देखना चाहिए यह ठीक नहीं है। पॉलिटिक्स करियर नहीं है। यह एक समाज सेवा है। आज यही तो हो रहा है। ज्यादातर पॉलीटीशियंस पॉलिटिक्स को करियर के रूप में ही तो ले रहे हैं। करियर के रूप में लेते ही अपनी ग्रोथ, अपने बेनिफिट्स के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं हम। तो पॉलिटिक्स में युवाओं की भागीदारी बढऩी चाहिए लेकिन करियर के रूप में नहीं, सेवा भाव से।
आप लोकपाल की बात कर रहे हैं। इसी सिस्टम में रहते हुए आपका आदर्श लोकपाल भी इसका शिकार नहीं हो जायेगा, इसकी क्या गारंटी है? कब तक वो बच पायेगा इस पूरे करप्ट माहौल से?
ये बात काफी महत्वपूर्ण है। हमें इसकी गंभीरता का पूरा अंदाजा था इसीलिए हमने ड्राफ्ट में इसके कड़े प्रावधान रखे हैं। सबसे पहले तो सही लोगों का चुनाव जरूरी है। फिर अगर आगे चलकर उनके खिलाफ कोई भी शिकायत आती है तो स्ट्रॉन्ग ऐक्शन लिया जायेगा।
सही लोग से क्या तात्पर्य है आपका?
सही लोग मतलब जिनका रिकॉर्ड रहा हो ईमानदारी का। जिन्होंने करप्शन के खिलाफ कोई लड़ाई लड़ी हो। या फिर जिनके खिलाफ कोई आरोप वगैरह न हों। नीयत के साफ लोग, जो लालची न हों।
क्या लोकपाल आने के बाद सारी समस्या हल हो जायेगी?
नहीं, लेकिन लोकपाल का आना समस्या के बड़े हिस्से पर प्रहार जैसा है। लोकपाल की मुहिम में जिस तरह लोगों की भागीदारी दिख रही है उसे देखकर इतना ही कहूंगा कि हर व्यक्ति के भीतर भी एक लड़ाई की शुरुआत है यह।
अरविंद जी, करप्शन की कई लेयर्स हैं हमारी सोसायटी में। आप एक लेयर के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं? लेकिन दूसरी लेयर्स पर, रिश्ते, भावनाएं, प्रेम भी छलनी हो रहा है। हर जगह धोखा है, फरेब है...इसके बारे में क्या कहेंगे आप?
बिल्कुल सही बात है यह। और गंभीर बात। मैं क्या कहूं इस बारे में। असल में समाज को कई लेयर्स की लीडरशिप की दरकार होती है। पॉलिटिकल, सोशल, स्प्रिचुअल। जिस देश में कबीर, मीरा, बुद्ध, अशोक जैसे न जाने कितने लोग हुए उस देश में इन दिनों तकरीबन सौ सालों से गांधी के बाद कह सकते हैं कोई ऐसी लीडरशिप किसी भी फील्ड में नहीं उभरती दिखती। यही वजह है कि समाज की सारी लेयर्स पर गड़बडिय़ां तारी हैं।
क्या किया जाना चाहिए फिर?
फिलहाल तो यही कह सकता हूं कि हमें अपने भीतर के सुंदर इंसान को पहचानने की जरूरत है। उस सुंदर इंसान को लालच, स्वार्थ से मुक्त करने की जरूरत है।
आपके रोल मॉडल कौन हैं?
महात्मा गांधी
आपका जीवन दर्शन?
लाइफ इज अ जर्नी। इस जर्नी को पूरी ईमानदारी से पूरा करना है।
आपकी जिंदगी में प्रेम की क्या जगह है?
प्रेम...जिंदगी में हर चीज की जगह होती है। प्रेम की भी है। मेरा मानना है कि प्रेम जब एक व्यक्ति के लिए कुछ लोगों के लिए होता है तो वो स्वार्थ का रूप लेने लगता है। प्रेम को खूब विस्तार मिलना चाहिए। समूची सृष्टि से प्रेम। जैसे अन्ना प्रेम करते हैं देश के हर व्यक्ति से।
खाली वक्त में क्या करते हैं?
खाली वक्त में मुझे फिल्में देखना पसंद है। आमिर खान की फिल्में पसंद आती हैं। रंग दे बसंती मेरी फेवरेट फिल्म है।
और पढऩा?
पढऩे का ज्यादा वक्त नहीं मिला कभी। महात्मा गांधी को पढ़ता हूं। फिलहाल लोकपाल के ड्राफ्ट बार-बार पढ़ता हूं और लोगों को पढऩे को कहता हूं।
स्त्रियों की स्थिति के बारे में?
इन दिनों तो स्थिति अच्छी नहीं है। बल्कि एक लंबे समय से अच्छी नहीं है स्थिति लेकिन इसी देश में बुद्ध और अशोक का समय देखिये तो हालात बेहतर भी थे। मुझे लगता है किसी भी लेयर पर बदलाव के लिए भाषण देने से काम नहीं चलेगा। बदलाव की भावना को अपने भीतर लाना जरूरी है।
इन दिनों तो यह भावना खूब दिख रही है?
हां, इन दिनों बदलाव की भावना या कहें इच्छा काफी दिख रही है। मुझे लगता है हर चीज का एक वक्त होता है। आज एक पॉजिटिव माहौल बन रहा है देश में करप्शन के खिलाफ। अन्ना को लोगों के पास जाना नहीं पड़ता लोग खुद उन तक आते हैं। उन पर भरोसा करते हैं। तिरंगे, देशभक्ति के स्लोगन ये सब उनका खुद का चुनाव है। ये माहौल एक दिन में नहीं बना है. सबके भीतर एक लड़ाई चल रही है लंबे समय से। अब वो सही लीडरशिप के साये में बाहर निकल पा रही है। ऐसा ही बाकी मोर्चों पर भी है। सही समय और सही लीडरशिप मिलते ही लोग बाहर आने लगते हैं।
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