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दशहरा 2019: दिनांक एवं महत्व

दशहरा, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में विजयादशमी भी कहा जाता है। यह हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। विजयादशमी शब्द दो शब्दों से बना है- विजया का अर्थ विजय और दशमी का अर्थ दसवां है। वहीं दशहरा शब्द भी संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है - जिसमें दश का अर्थ दस और हरा का अर्थ है हार। पौराणिक मान्यता के अनुसार दशहरा का त्यौहार अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान राम ने भी रावण को इसी दिन मारा था। देश के विभिन्न हिस्सों में लोग इस पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाते हैं। जैसे बंगाल में इस मौके पर माँ दुर्गा विसर्जन किया जाता है। वहीं उत्तर भारत में जगह-जगह रावण, कुंभ करण और मेघनाथ के पुतलों को दहन किया जाता है। इस​ ​दिन शस्त्र पूजन का भी विधान है।

2019 में कब है दशहरा?

दशहरा पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और साल 2019 में यह तिथि 8 अक्टूबर दिन मगलवार को पड़ रही है। इसलिए इस वर्ष दशहरा पर्व 8 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

विजयादशमी मुहूर्त

विजयादशमी मुहूर्त 14:05:40 से 14:52:29 बजे तक
अवधि 46 मिनट
अपराह्न मुहूर्त 13:58:52 से 15:39:18 बजे तक

मुहूर्त से जुड़ी ज़रुरी बातें

पंचांग के अनुसार, यदि दशमी दो दिन पड़ रही है और दूसरे ही दिन अपराह्नकाल में व्याप्त हो रही है तो दशहरा दूसरे दिन मनाया जाएगा। यदि ​दशमी दो दिन के अपराह्न काल में हो तो दशहरा पहले दिन मनाया जाएगा। यदि दशमी दोनों दिन पड़ रही है, परंतु अपराह्न काल में नहीं है तो उस समय में भी यह त्यौहार पहले दिन ही मनाया जाएगा।

श्रवण नक्षत्र भी विजयादशमी के मुहूर्त को प्रभावित करता है जिसके तथ्य निम्नलिखित हैं:-

  • यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है, (चाहे अपराह्ण काल में हो या ना हो) लेकिन श्रवण नक्षत्र पहले दिन के अपराह्न काल में पड़े तो दशहरा पर्व प्रथम दिन में मनाया जाएगा।

  • यदि दशमी तिथि दो दिन की है (चाहे अपराह्न काल में हो या ना हो) लेकिन श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में पड़े तो दशहरा का त्यौहार दूसरे दिन मनाया जाएगा।

  • यदि दशमी तिथि दोनों दिन पड़े, लेकिन अपराह्ण काल केवल प्रथम दिन हो तो उस स्थिति में दूसरे दिन दशमी तिथि पहले तीन मुहूर्त तक मौजूद रहेगी और श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में व्याप्त होगा। ऐसे में विजयादशमी का त्यौहार दूसरे दिन मनाया जाएगा।

  • यदि दशमी तिथि प्रथम दिन के अपराह्न काल में हो और दूसरे दिन तीन मुहूर्त से कम हो तो उस स्थिति में दशहरा का पर्व पहले दिन ही मनाया जाएगा। ऐसे में श्रवण नक्षत्र की किसी भी परिस्थिति को नहीं माना जाएगा।

दशहरा पूजा एवं महोत्सव

दशहरा में अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है जिसकी विधि इस प्रकार है:-

पूजा शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें। हमेशा घर के पूर्वोत्तर दिशा में ही आपका मंदिर या पूजा का स्थान होना चाहिए। पूजा के समय घर के सभी सदस्यों को शामिल होना चाहिए।

घर के पूजा स्थल को पवित्र और शुद्ध करने के बाद चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुडियाँ) बनाएं। पूजा करने से पहले संकल्प लें।

अब आप अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ देवी अपराजिता का आह्वान करें, उनका ध्यान करें। इसके बाद मां जया को दायीं ओर ॐ क्रिया शक्त्यै नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए उनका आह्वान करें और बायीं ओर विजया माता का ॐ उमायै नम: का जाप करते हुए ध्यान करें। इसके बाद एक साथ ॐ अपराजिताय नम:, ॐ जयायै नम:, और ॐ विजयायै नम: मंत्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें।

अब देवी माता का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें और कहें, हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार पूरी की है। कृपया जाने अनजाने कोई गलती हुई हो तो क्षमा करें और हमारी पूजा को स्वीकार करें। ऐसा कहकर पूजा संपन्न होने के बाद देवी मां को प्रणाम करें।

“हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम।
अंत में इस मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।”

विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसके अतिरिक्त सूर्यास्त होने के बाद जब आसमान में कुछ तारे दिखने लगें तो समझ लें ये विजय मुहूर्त है। यह वह शुभ समय माना जाता है जब आप पूजा या कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। इसका आपको अच्छा परिणाम मिलता है। दरअसल, हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम ने रावण को पराजित करने के लिए इसी मु​हूर्त में युद्ध आरंभ किया ​था। एक और मान्यता के अनुसार, इसी समय शमी नामक पौधे ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप धारण किया था। इसीलिए हिंदू घरों में इस पौधे की पत्तियों को भगवान को अर्पित किया जाता है।

विजयादशमी का दिन साल का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह समय किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए सबसे उचित समय होता है। इस दिन पूजा का सबसे अच्छा मुहूर्त होता है।

विजयादशमी के दिन सैनिक और योद्धा अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। खासकर देश के वीर जवान इस दिन आयुध पूजा करते हैं। इस दिन शमी पूजन भी किया जाता है। प्राचीन काल में राजा महराजाओं के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता था। दशहरा के लिए ब्राह्मण माता सरस्वती की पूजा करते हैं। वैश्य अपने बहीखाते और धन की पूजा अर्चना करते हैं।

इन सब के अलावा यह दिन रामलीलाओं के मंचन का अखिरी दिन होता है। आमतौर पर ज्यादातर जगहों में नवरात्र से रामलीला का मंचन शुरू होता है और दशहरा के दिन रावण का वध होने के साथ लीला समाप्त हो जाती है। ऐसी परंपरा सदियों से भारत में विद्यमान हैं। इसके अलावा उन देशों में भी रामलीला का मंचन होता है जहां भगवान राम के अनुयायी रहते हैं। विजयादशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम द्वारा बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी मनाते हैं। इसके अलावा अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां रामलीला से ज्यादा मां दुर्गा की पूजा भव्य तरीके से होती है। जब कि राम लीला का मंचन मैसूर में बहुत ही वृहद तरीके से होता है। अगर आप रामलीला का भव्य मंचन देखना चाहते हैं तो ये जगह आपके लिए सबसे अच्छी होगी।

दशहरा से संबंधित पौराणिक कथाएं

रामायण की कथा के अनुसार, दशहरा पर्व इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान ​श्रीराम ने दस सिर वाले रावण का वध कर माता सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसलिए आज भी प्रतीक के रूप में रावण के पुतले को जलाया जाता है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक के साथ ही सारी पृथ्वी पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया था। महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे न तो कोई पुरुष मार सकता है और न ही कोई देवता। उसकी दुष्टता को रोकने के लिए त्रिदेवों के साथ मिलकर अन्य सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों से देवी आदिशक्ति की रचना की और उन्हें अपनी शक्तियों के साथ अपने सभी अस्त्र-शस्त्र भी प्रदान किये। इसके बाद माँ आदिशक्ति दुर्गा ने महिषासुर के साथ नौ रात और दस दिन तक भयंकर युद्ध किया और अंततः दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर दिया। माँ आदिशक्ति दुर्गाजी की इस महान विजय को ही 'विजयादशमी' के रूप में भी मनाया जाता है।

हम उम्मीद करते हैं कि दशहरा से संबंधित हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हमारी ओर से आप सभी को विजयादशमी पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं !

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