होली रंगों का पर्व है, जिसका भारत और भारतीयता से खास जुड़ाव है। रंगों के इस त्यौहार को प्रेम और सौहार्द के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार शीतकालीन मौसम के बाद में वसंत ऋतु के शुरू होने का संकेत देता है। इसे पूरे देश में अत्यधिक खुशी के साथ मनाते हैं। भारत में कई अन्य त्यौहारों के समान, यह त्यौहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस मौके पर एक दूसरे के चेहरे पर गुलाल लगाने और फगुआ गीत गाने की परंपरा है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग अपने प्रियजनों के घर जाकर होली की बधाई देते हैं और मिठाई बांटते हैं। इस दिन लोग स्वादिष्ठ पकवान बनाते हैं। बच्चों और युवाओं में होली का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। यह त्यौहार आम तौर पर फाल्गुन पूर्णिमा (फरवरी-मार्च) के दिन मनाया जाता है। साल 2019 में होली का पर्व 21 मार्च को सम्पूर्ण भारत में मनाया जायेगा।
होली का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। प्राचीन विजयनगर राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी के चित्र में भी होली का इतिहास देखने को मिलता है। इसके अलावा विंध्यांचल पर्वत के समीप स्थित रामगढ़ में मिले 300 वर्ष पुराने अभिलेखों में भी होली का उल्लेख मिलता है। ये ऐसे साक्ष्य हैं जो होली की प्राचीन परंपरा को उजागर करते हैं। इसके अलावा का संदर्भ केवल प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं में पाया जाता है। यह हिरण्याकश्य और उनके पुत्र की कथा है। जिनके लिए होली का उत्सव जुड़ा हुआ है।
ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप नाम का राक्षस भगवान विष्णु जी बैर का भाव रखता था। इसलिए उसने अपने राज्य की प्रजा से भगवान की पूजा करने पर रोक लगा दी और स्वयं की उपासना करने का आदेश दे दिया। भय के कारण सारी प्रजा भगवान की बजाय हिरण्यकश्यप की पूजा करने लगी। हिरण्यकश्यप ऐसा करने में तो सफल रहा लेकिन वह अपने घर में ही हार गया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का सच्चा भक्त था। उसे भगवान में अटूट विश्वास था। जब हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला तो उसने अपने पुत्र को विष्णु जी की पूजा करने के लिए मना कर किया। परंतु प्रहलाद ने अपने पिता की एक न सुनी और वह निरंतर विष्णु की आराधना में खो गया। यह सब देखकर हिरण्यकश्यप अक्रोश में आ गया और उसने अपने पुत्र को मारने का प्रयास किया लेकिन हर बार भगवान विष्णु उसे बचा लेते। अंत में प्रहलाद को मारने के लिए उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को आग द्वारा न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्याकश्यप के कहने पर होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लिया और जलती हुई आग पर बैठ गई। आग का प्रकोप बहुत तीव्र था, लेकिन प्रह्लाद की आस्था और तप के आगे आग भी उन्हें नहीं जला सका। बल्कि वरदान के बावजूद होलिका आग में जलकर राख हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जो शक्ति होलिका मिली थी उसे भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को दे दी और होलिका का दहन हो गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इसलिए आज भी लोग इस दिन होलिका का दहन कर दुर्भावना का अंत कर रंग और गुलाल के साथ इस पर्व को मनाते हैं।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, द्वारकाधीश भगवान कृष्ण जी ने होली की परंपरा को लोकप्रिय बनाया था। कहा जाता है कि एकबार कृष्ण जी ने अपनी माता यशोदा से अपने काले होने की वजह पूछ बैठे, उन्होंने माता से पूछा कि वह राधा की तरह गोरे क्यों नहीं है। जिसपर यशोदा मुस्कुराई और राधा को रंग लगाने की सीख मजाक में दे डाली। उन्होंने कहा कि राधा के गाल पर रंग मल दोगे तो वह भी तुम्हारी तरह हो जाएगी। ये बात उन्हें सही लगी और वह रंग लेकर राधा को ढूंढ़ने निकल पड़े। कृष्ण जी ने राधा को रंग लगाया। इसके बाद हर तरफ रंगोत्सव की धूम मच गई। आज भी भगवान की नगरी मथुरा, वृंदावन में रंगों का त्यौहार मनाया जाता है। राधा रानी के गांव बरसाने में लट्ठमार होली काफी प्रचलित है।
होली हिंदू और सनातन परंपरा को मानने वालों का सबसे लोकप्रिय पर्व है, जिसे भारत, नेपाल समेत उन सभी देशों में धूमधाम से मनाया जाता है जहां हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली विश्व प्रसिद्ध है। भगवान कृष्ण की बाल्यकाल की लीलाओं के चलते यहां की होली खास महत्व रखती है। भगवान की नगरी होने के कारण यहां की अलग धार्मिक पहचान भी है। यह त्यौहार भारत सहित जमैका, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मॉरीशस, फिजी आदि तमाम देशों में इस पर्व को मनाया जाता है। हाल के वर्षों में होली रंगों का त्यौहार यूरोप, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी प्यार, उल्लास और रंगों के वसंत उत्सव के रूप में फैल गया है।
होली का त्यौहार आमतौर पर भारत में मनाया जाता है और हिंदू लोगों की आबादी के साथ दुनिया भर के स्थानों में छोटे त्यौहार भी होते हैं। होली पर्व को प्यार का त्यौहार भी माना जाता है। यह पर्व दो दिनों का होता है। पहले दिन रात में होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन उस अग्नि कुण्ड की पूजा होती है। इसके बाद लोग अपने घरों में अच्छे स्वादिष्ठ पकवान बनाते हैं। अपने सगे संबंधियों को भोज देते हैं। इस दिन गुझिया बनाने, खाने और खिलाने की परंपरा है। दोपहर में बच्चे, बड़े और बूढ़े एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर रंगोत्सव की बधाई देते हुए एक दूसरे के गले मिलते हैं। खुशियों और प्यार से भरे इस पर्व के दिन दुश्मन भी बैर भुलाकर आपस में खुशी मनाते हैं। यही इस पर्व की खासियत है। इस दिन अलग-अलग क्षेत्रों और प्रांतों में वाद्य यंत्रों के साथ लोकगीत गाए जाते हैं, जिसे फगुआ गीत के तौर पर जाना जाता है। उत्तर भारत में लोकगीतों गाने की परंपरा काफी प्रचलित और लोकप्रिय है। यहां मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। भगवान की इस नगरी में करीब 15 दिनों तक अलग-अलग तरह से इस पर्व को मनाया जाता है। फूलों की होली, रंग और गुलाल की होली और लट्ठमार होली की परंपरा विश्व विख्यात है। भगवान की जन्मस्थली होने के नाते यह स्थान धार्मिक नगरी के रूप में भी काफी लोकप्रिय है। यहां के लोगों में होली का उत्साह काफी देखने को मिलता है।
प्रेम के इस पर्व में लोग शराब या भांग का नशा कर हुड़दंग मचाते हैं। वे रंग की बजाए कीचड़ और मिट्टी का प्रयोग करते हैं, जिससे माहौल खराब होता है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस पर्व को अपने मूल सिद्धांतों और परंपराओं के तौर पर ही मनाया जाए। इसके लिए सावधानी बरतनी जरूरी है, जो निम्नलिखित हैं।
• प्रेम के इस पर्व को अबीर, गुलाल और प्राकृतिक रंगों के साथ ही मनाएं।
• मदिरापान के सेवन से बचें। शर्बत और अन्य पेय पदार्थ का सेवन करें।
• हुड़दंग न मचाएं, ऐसा काम बिल्कुल भी न करें जिससे आपस में प्रेम की बजाए बैर बढ़े।
• एक दूसरे से गले मिलकर बधाई दें और पुरानी कटुता को दूर करें।
• बड़ों का सम्मान करें, जरूरतमंदों की मदद करें। सही मायने में यही त्यौहार का असली सुख है।
हम उम्मीद करते हैं कि होली से संबंधित हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। हमारी ओर से आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं !
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