मैं हमेशा ही आपके मकसद भरयरहित और उद्देश्यपूर्ण रिपोर्टिंग का प्रशंसक हूँ. गिनती के उन चंद भारतीय पत्राकारों में से एक हैं, जो मेरी उम्मीदों की लौ को बचाये हुए हैं और जिसकी वजह से भारत के चैथे खंभे पर मेरा भरोसा अब भी बना हुआ है. बावजूद इसके कि आज यह अपनी दिशा खो चुका है और निहित स्वार्थों और टीआरपी की कठपुतली बन चुका है. चैबीसों घंटे चलने वाले खबरिया चैनल सभी तरह की खबरों में पत्राकारिता के तमाम मानदंडों और नैतिकताओं को न सिर्फ नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि जानबूझ कर छोड़ते चल रहे हैं.
लेकिन आपने न सिर्फ मेरी सारी उम्मीदों के साथ धोखा किया है, बल्कि अपने गैरजिम्मेदार बयानों और राय से एक तरह का वहम और डर पैदा किया है. आतंकवादियों ने मुझे किसी जहन्नुम की तरह डराया है, लेकिन आपकी रिपोर्टिंग ने मुझे उससे ज्यादा आतंकित किया है. क्योंकि आप ठीक वही काम कर रही थीं जो आतंक पैदा करने वाले लोग आपसे कराना चाह रहे थे.
आपने एनडीटीवी की रिपोर्टिंग के लिए नारायण मूर्ति और सलमान रश्दी की ओर से मिली बधाइयों का जिक्र किया था. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि आप इस तरह के बयानों को गंभीरता से नहीं लेती हैं और न ही वे आपके चैनल की रिपोर्टिंग की गुणवत्ता को समझेंगे. आप खुद देख सकती हैं कि इन लोगों का नजरिया बेहद सिमटा और निम्न दर्जे का है और वे चीजों को संपूर्णता में नहीं देख सकते.
पाँच अलग-अलग मौकों पर आपने 26.11 की तुलना न्यूयॉर्क पर 9.11 के हमले से की थी. आपने यहां तक कहा कि कुछ मामूली गलत फैसलों के अलावा अमेरिका ने आतंकवादी हमलों पर काबू पाने में कामयाबी हासिल कर ली. बरखा, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपके जैसा एक समझदार और अनुभवी पत्राकार यह अच्छी तरह जानता होगा कि अमेरिका ने यह कामयाबी इराक, अफगनिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले हजारों लोगों की जान लेकर हासिल की है. उसने हजारों मासूम लोगों को गुआंतानामो बे की जेलों में बंद कर रखा है. क्या आप ये कह रही हैं कि हम भी अमेरिका की तरह एक दुष्ट फासिस्ट देश बन जाएं? सच तो ये है कि आप भारत को जंग की ओर धकेल रही थीं. क्या इसका अहसास है आपको?
क्या आप यह मानती हैं कि आपने 26.11 की रिपोर्टिंग करनेवाली बाकी मीडिया का सुर भी तय कर दिया था? आपके अंदाज और लच्छेदार भाषा के बाद अचानक टाईम्स नाउ, आइबीएन, सीएनएन, हेडलाइन्स टुडे, आजतक और स्टार न्यूज जैसे बड़े चैनलों ने अपना सुर बदल लिया और राजनीतिज्ञों को कोसने लगे.
जब सिमी गिरेवाल ने मुंबई के स्लम में हरेक डर पर पाकिस्तानी झंडे को लेकर एक बेहद गैरजिम्मेदाराना, और तकलीफदेह बयान दिया था., उसी वक्त पृष्ठभूमि में जलते हुए ताज पर आपका “वी द पिपल” का जुमला दूसरा खतरनाक कारनामा था. उसी वक्त कोई सफाई देने के बजाय आपने यह सब होने दिया और दूसरे या तीसरे दिन आपके चैनल ने महज एक लाइन में स्पष्टीकरण दे दिया. क्या आप इस बात से इत्तफाक रखती हैं कि इस तरह के अतिसंवेदनशील हालात में यह बेहद गैरजिम्मेदाराना चूक है?
इन सबके बावजूद यह अभी भी सच है कि आप एक अच्छी पत्राकार हैं और मैं आपके पहले के बहुत सारे काम की इज्जत करता हूँ. लेकिन 26.11 के वाकये के दौरान आपका काम मुझे बहुत ज्यादा खुश नहीं करता. मुझे भरोसा है कि आप इसके भीतर झाँकेंगी, अपने फुटेज देखकर आत्मविश्लेषण करंेगी और एक बार फिर बेबाक और बामकसद पत्राकार के तौर पर सामने आएंगी. सिर्फ एक पत्राकार. मेहरबानी करके एक उद्धारक या मसीहा का लबादा मत ओढ़ें.
आपका
सईद हैदर
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