“एक रिपोर्ट लिखिए”
एक मरियल सी आवाज कानों में पड़ते ही डायरी लिखने में मशगूल थानेदार ने सर उठाकर देखा सामने हड्डियों का ढांचा वाला शरीर लेकर एक व्यक्ति खड़ा है.
“का हुआ है तुमको.”
“मैं भूखा हूँ... सरकार के खिलाफ रिपोर्ट लिखिये आजाद देश में भूखा क्यों हूँ... उसको कटघरे में खड़ा करना है.” वह एक ही साँस में बक गया.
थानेदार झटके से कुर्सी पीछे धकेलकर खड़ा हुआ. टेबुल पर रखे डंडे की ओर अपने आप हाथ चला गया. डंडे की मूठ को कसकर पकड़ा. लेकिन उसने खदबदाये मिजाज पर काबू पा लिया. खुद को संयत किया, यही मानकर कि फरियादी पागल है.
“रामहीन, इसको बाहर करो!” उसने अपने मातहत एक सिपाही को हुक्म दिया. वह उसे घसीटते हुए बाहर ले जाकर छोड़ आया.
थानेदार अपना सर झटककर डायरी लिखने में पुनः मशगूल हो गया. लिखते-लिखते उसकी कलम रुक गयी. दिमाग में कुछ चलने लगा, ‘सचमुच, वह अगर भूखा है तो कहीं लुढ़क न जाये’... सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. कागजी खानापूर्ति करते-करवाते मस्ती वाली रात का कबाड़ा निकल जाएगा... आज तो विधायक जी के घर दावत में शामिल होना है. उनके विदेशी नस्ल के कुत्ते के जन्म दिन का जश्न मनाया जाएगा... ऐसे मौज मस्ती के मौके तो कभी-कभार मिलते हैं’
“रामदीन” उसने चिल्लाया.
रामदीन दौड़ता हुआ हाजिर हुआ. ”फौरन खोजो उस पागल को और उसे कुछ खिला पिला दो. कम-से-कम आज तक तो जिन्दा रहे कम्बख्त.“ रामदीन हुक्म की तामील की खातिर निकल पड़ा. आधे-घंटे बाद लौटा, ”हाकिम, ऊ तो कहीं नहीं मिला. सगरो खोजा. जाने कहाँ बिला गया.“
थानेदार सर थामकर बैठ गया, ”ससुरा पूरा मूड बिगाड़ दिया.“ उधर वह भूखा व्यक्ति खुद को घसीटते-घसीटते ले आया बस-स्टैंड तक. वहाँ एक बंद पड़ी पान की गुमटी के नीचे लेट गया.
सहसा उसकी नजर बस-स्टैंड पर अभी-अभी आकर रुकी पुलिस वैन पर पड़ी, वैन से विधायक रामलाल के दो गुर्गों के साथ दो जवान और थानेदार उतरे. उतरते साथ ही वे अपनी खोजी निगाहें यहाँ-वहाँ दौड़ाने लगे. अंततः जा पहुँचे उस भूखे व्यक्ति के पास. फटाफट उसे उठाकर बिठाया गया. उसके हाथ में खाद्य सामग्रियों से भरी पॉलीथीन की थैली-थमा दी-गयी. वह टूट पड़ा खाद्य सामग्रियों पर.
उसे खाते देख थानेदार ने राहत की साँसें ली. फिक्रमंद विधायकजी को खुशखबरी सुनायी ”बर्थडे पार्टी में अब कोई बाधा नहीं.’
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